Monday, June 11, 2018

पुरुष सत्ता . .


पुरुष सत्ता . .

नारी को लेकर एक सोच परंपरागत , पुरुष सत्ता वाली है , जो नारी के पूर्व के तरह के जीवन को ही न्यायसंगत सिध्द करने में लगी होती है , जो अपनी बातों को कभी धर्म से कभी इतिहास हवाले से साबित करने की कोशिश में रहती है। दूसरी सोच जिसे नारीवाद बताया जाता है - आज के परिवेश में नारी-पुरुष जीवन को परखती है। इसलिए कितने ही तर्क के बाद ये दोनों परस्पर विपरीत विचार किसी बात पर आपस में सहमत नहीं होते हैं। परंपरागत , पुरुष सत्ता यह सोचती है कि उसने उदार रुख अख़्तियार किया तो उसके सामाजिक / धार्मिक अधिकारों में कमी होगी। अपने लिए कमी स्वीकार करना एक साहासिक कार्य होता है। समाज का हर व्यक्ति इतना साहसी नहीं होता।

जहाँ तक नारी पक्ष की बात है - नारी को इस बात की अब परवाह नहीं कि इतिहास या पूर्व धार्मिक रिवाजों में उसे क्या सुख थे। आज की नारी यह जानती है कि उसे पुरुष की अपेक्षा ज्यादा बंदिशों में ज़िंदगी गुजारनी होती है। अब उसे एकतरफा मर्यादा , जिसमें सब बंदिशें नारी पर हैं मंजूर नहीं। अगर समाज में मर्यादा ही जरूरी है तो वह पुरुष और नारी पर एकसी लागू हों। जो बात नारी के लिए कलंक , उसी कलंक में शामिल पुरुष पर कलंक होना चाहिए।

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
12-06-2018

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