Thursday, June 14, 2018

चाहे कितने ही दक़ियानूसी हों - हम पढ़ें

चाहे कितने ही दक़ियानूसी हों -  हम पढ़ें
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"नारी , पुरुष जैसी और समान ही एक मनुष्य है" , इस प्रगतिवादी विचार पर लिखीं पोस्ट अवश्य पढ़ें उन पर चिंतन करें. निश्चित है कि मानव यात्रा सभ्यता की दिशा में ही बढ़ना है। अतः इस यात्रा में वह मुक़ाम भी आएगा जहाँ यह सच सभी को स्वीकार्य होगा। इसलिए यह तय है कि हम दकियानूसी और अपनी जिद में इसे स्वीकार करें या न करें लेकिन इसे हमारे बच्चे या उनके बच्चे इस प्रगतिशील - न्यायसंगत , सत्य को स्वीकार कर लेंगे. हम चाहें तो अपनी समझदारी में ज़माने से पहले इसे मंजूर कर सकते हैं।
वैसे तो इंसानों में अनेक भेद हैं जिसमें अपने से भिन्न कर हम औरों को देखते समझते हैं। दरअसल किंतु यह सब हमारे मज़हबी या सामाजिक संकीर्णतायें हैं। प्रकृति से मनुष्य में सिर्फ एक ही भिन्नता मिली है जो लिंगीय अर्थात पुरुष और नारी में शारीरिक (जिस्मानी) बस होती है। यह प्राकृतिक भिन्नता भी मात्र संतति क्रम चलाये रखने के लिए की गई है। बाकि अन्य सभी दृष्टि से पुरुष और नारी समान हैं। जब भी या जिस दिन भी हम सभी यह समझ लेंगे उस दिन मानव निर्मित मज़हबी या सामाजिक सारे भेद या उनमें व्याप्त कटुतायें अस्तित्व में नहीं रह जायेगीं। मानव सभ्यता अपनी पूर्णता पर पहुँचेगी - जिसमें सभी मनुष्य को समानता से देखा/समझा जाएगा ।
हम समझदार बन सकते हैं , प्रगतिवादी कहला सकते हैं यदि हम -
"नारी को समान इंसान मानें , उन्हें आदर दें , उन्हें सुरक्षा मुहैय्या करें , उन्हें समान अवसर दें - उन्हें गृहहिंसा से मुक्त करें , उन पर जबर्दस्ती न करें और उन्हें उनकी मनमर्जी से ज़िंदगी जीने के हालात दें" , तो।

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
15-06-2018
https://www.facebook.com/narichetnasamman/

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