Thursday, June 7, 2018

हक़ीक़त में जो मिलते - उतने हसीं नहीं
खूबसूरत हसीं ख़्वाब - हम देखते क्यों हैं

ख़्वाब और हक़ीक़त अगर बेमेल है इतनी
ख़्वाब सी मेल की हक़ीक़त बनाते क्यों नहीं


देखते तो हैं ख़्वाब में - हम मोहब्बत को अपनी
हक़ीक़त में मगर देना दगा - अज़ीब नहीं लगता

तेरी तरह ही इंसान है - ये तेरी मोहब्बत
अपने लिए नापसंद - तू दगा उसे देता क्यूँ है?

अपने लिए नापसंद - औरों से करता तू वह है
तुझे इंसान लिखूँ या - कोई और हर्फ़ मैं लिखूँ


 

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