Thursday, August 27, 2015

मिली कृति बिगाड़ लें तो यह कमी स्वयं अपनी है

मिली कृति बिगाड़ लें तो यह कमी स्वयं अपनी है
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माँ , बहन , पत्नी , बेटी रूप में
दादी , नानी , बुआ , मौसी रूप में
नारी सबको मिलती इस रूप में
लाड़ -दुलार ,की मूरत लगती है
नारी को वासनाओं की ले चपेट में
गर्लफ्रेंड बना उससे धोखा करते हो
कहीं रखैल ,कहीं पेशा करवा उससे
कॉलगर्ल ,बारगर्ल बना नचवाते हो
अपनी आश्रिता होने के बदले ,तरसाया
उदरपूर्ति बहाने शोषण किया ,करवाया 
वैभव की महिमा भर दी निर्मल मन में
और धन प्रलोभन से नारी को ललचाया
बेबड़ी बना दिया उसे तुमने 
धुँए के छर्रे उगलवाते उससे
नारी जो पावन मूरत होती थी
विकृत रूप दे दिया उसे तुमने
उत्कृष्ट कृति ,प्रकृति से मिली थी नारी 
कामुकता से इतना बदरूप दे दिया तुमने
पराई नारी मिलती है एक धरोहर होती है
अपने मनोविकारों से उसे छल लिया तुमने
पुरुष प्रधान समाज के कर्ताधर्ता पुरुष समझो तुम
मिली कृति बिगाड़ लें तो यह कमी स्वयं अपनी है
--राजेश जैन
28-08-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

 

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