Monday, August 17, 2015

जीवन निकल जाता है

जीवन निकल जाता है
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समझ में आता जब तक ,जीवन निकल जाता है
पहले जीवन समझ लेता ,दिग्दर्शक बन जाता है

गणतंत्र दिवस फिर , पंद्रह अगस्त निकल जाता है
होली ,ईद ,दिवाली उत्सवों में जीवन निकल जाता है

बचपन बचपने में , यौवन मौज मजे में कट जाता है
उमंग से शुरू ,समाज बुराई बढ़ा जीवन बीत जाता है

बढ़ी बुराइयों से व्यथित ,दूसरों में दोष ढूँढता रहता है
जोर जबरदस्ती से बदलने के प्रयास में बैर बढाता है

न बदलने से निराश ,न बदलेगा ,निष्कर्ष पर जाता है
जो निराश न हो ,सृजन करता है ,निर्माता हो जाता है

दिग्दर्शक ,निर्माताओं की नये युग में, मेरे साथियों
फिर जरूरत है ,आओ ,बनें ऐसा जो समाज बनाता है
--राजेश जैन
18-08-2015
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