Saturday, May 5, 2018

PhD

PhD ...
 
मुझे पता चला था , मैं जब पैदा हुई घर में खुशियाँ मनाई गईं थीं। घर में रिवाज़ भिन्न थे , इसलिए कई अन्य जन्म लेने वाली बेटियों की तरह गर्भ में ही मुझे मारा नहीं गया था। मेरे आने जैसी , घर में पाँच और बार खुशियाँ मनाई गईं थीं। कुछ बेटे और कुछ मेरी तरह बेटियाँ हुईं थीं मेरे माँ - पापा की और। बचपन मेरा भी मासूम था , घर में जितनी सुविधा थी उतने की ही आदत थी। खाने - पहनने मिल जाता और कभी कुछ मनपसंद का पापा ले आते उतने में खुश हम सब रह लेते थे। माँ - पापा ज्यादा प्रगतिशील विचारों के नहीं थे , पढ़े लिखे भी बहुत नहीं थे। इसलिए बच्चों के भविष्य को लेकर उनके सपने भी बड़े नहीं थे। बड़े होते भी कैसे - बड़े सपनों के लिए लगने वाला धन या वह वक़्त उन्हें कहाँ होता कि बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हुए उनके मन में बड़ा कुछ कर गुजरने की तमन्ना या प्रेरणा दे सकते । हमें ठीकठाक स्कूल मिले ठीकठाक से ही नतीजे होते थे । ज़िंदगी का कौनसा बेशक़ीमती वक़्त बिना ख़ासा प्रयोग किये बीत गया हमें पता नहीं चला। अब हम 20 के हैं। बीए हुए हैं। कुछ अरमान हमारे दूसरे युवाओं जैसे हैं। अपने कपड़ों के , अपने बाहर की पार्टी आदि का या अपने , लेपटॉप मोबाइल आदि इस तरह का अन्य खर्च हम माँ -पापा पर नहीं डालना चाहते हैं। हमने कुछ सिलाई करना सीखा है , उससे कुछ कमाई करके इन थोड़े खर्च का प्रबंध हम करते हैं। हम ख़ूबसूरत हैं - कुछ वक़्त में हमारे लिए लड़का देखा जाएगा। हमारी ख़ूबसूरती हमें शायद किसी रईस परिवार में शादी में मदद करा दे. रईस मगर ख़्यालात उनके यदि पुराने हुए तो फिर हम अपने माँ - पापा की तरह एक घर , परिवार की ऐसी कहानी दोहराने को मजबूर होंगे। यह भय हमें सताता है.
काश हमें साइंस - कंप्यूटर पढ़ने की प्रेरणा मिलती। काश हमें अच्छा पढ़ना बहुत जरूरी है यह समझाया और इसके लिए प्रेरित किया गया होता। हम भी हमारी ही तरह कई युवा बेटियाँ जो शायद हम जितनी ख़ूबसूरत भी नहीं , जैसे लाख रूपये महीना का जॉब करती हैं बन सकते। अब हमारा मन PhD करने कहता है लेकिन ये इतना आसान नहीं। किसी के पैदा करने पर जन्म जाना , बिना विशेष विचार के बचपन जैसा का बेशक़ीमती समय बिता देना आसान तो था। मगर अब हम अबोध नहीं हैं।  हमें चुनौतियाँ देखते-समझते हुए बाकि ज़िंदगी जो अब तक की से तीन गुनी है जीना है। बिना मजबूत बुनियाद पर कायम हुई ज़िंदगी , कई मौकों पर हमें झकजोरेगी  हमें जीना है. इसलिए हम ऐसे परिवार में ब्याहे जाने की ख़्वाहिश रखते हैं जो हमें PhD करने की इजाज़त दे। यदि हम PhD करें तो हम यह जागृति लाना चाहेंगे कि ज्यादा बच्चों की जगह घर परिवारों में कम किंतु गुण संपन्न बच्चे जन्में , जो पलें और बड़े बनें ( सिर्फ बड़े हो नहीं जायें).
ख़ुशी हम औलाद पैदा करने की नहीं उनमें वैसी क्वालिटी लाने पर मनायें , जिससे उन्हें ऐसी जिंदगी मिले कि वे न केवल अपने लिए ख़ुशियाँ सुनिश्चित करें अपितु औरों की ख़ुशियों की पहचान बन सकें।
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
06-05-2018

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