Thursday, May 3, 2018

पड़े राह में काँटे - उन्हें यह सोच हटा दो
चुभेगें जिन पाँव में - पैर वे अपने ही होंगे


पड़े राह में काँटे - उन्हें यह सोच हटा दो
चुभेगें जिन पाँव में - पैर वे अपने ही होंगे

लुत्फ़-ए-रवानी में बड़े भी इस कदर मचलते हैं
फ़र्ज औरों की ज़िंदगी बनाने का - खुद जवानी सी पींगे भरते हैं

इतिहास में बुराई का जिक्र - पीढ़ियों को नफ़रत की राह पर ले जाने के लिए नहीं
अपितु उससे सबक़ ले अच्छाई की ओर प्रशस्त/प्रेरित करने के उद्देश्य से होता है

चाहे कोई बिछाये राह में काँटे तुम्हारे
काबिलियत का परिचय दे उन्हें राह से हटा दो

और तो क्या अब अपने भी
काँटे , राह में बिछाते हैं
फूलों की तमन्ना होती मगर
सभी को काँटे मिल पाते हैं

एक फूल अपने लिए न रखके
ग़र औरों को पेश कर सकते
नफ़रत का ऱिवाज खत्म करके
मोहब्बत की मिसाल रख देते

औरों की आलोचना को मन हमारा नहीं करता
आलोचक दृष्टि स्वयं हमारी अपने पर होती है


न जाने क्यों अक्ल हमारी मारी गई है
औरों को काँटों से आहत करते हैं
फ़ूल पेश कर सकते ग़र
रिश्तों में मिठास रहा करती

नज़रों पर पड़ा परदा
हमें ऐसे हटाना है
वह नहीं , जो देखना चाहते
देखना चाहिए वह , हमें देखना है


नज़रें कमजोर तो , है चीज़ मगर दिखती नहीं
अज्ञान के अंधेरे मेँ , सच्चाई पता चलती नहीं

अपने ज्ञान का 'सच्चा है' , हमारा अहंकार उचित नहीं
ज्ञान चक्षु खोलें तो दिखेगा , बहुत हम जानते ही नहीं

ये ज़िंदगी हमारी अपनी - हमें ही इसे जीना है
निराश करे छोड़ उसे - हमें आगे को  बढ़ना है












 

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