Thursday, May 24, 2018

नज़ाकत थी उसमें - तब उसका शोषण कर रहा था
पत्थर सी हो रही - अब कहता नारी सुलभता न बची

सारा शहर देख रहा था और ज़ुल्म उस पर हुआ था
ख़ाक उम्मीद कि अदालत को गवाह कोई मिलेगा

जो इंसान तरह के नहीं - उनका लिहाज़ करना कैसा
खफ़ा हो भी गए तो - ऐसे लोगों की कहीं कमी नहीं

इस तरह बँधी हूँ -  इतनी भी तो नहीं मुझे आज़ादी
कि नारी हूँ  - नारी होने का मतलब मैं समझा पाती

सच  से है निकट का रिश्ता - तो और रिश्ते होना न होना महत्वहीन है
सच जन्म के पहले से , ज़िंदगी में - और मृत्युपर्यन्त भी साथ निभाता है

कुछ नज़रें लगती तो साधारण सी हैं मगर
ज़िंदगी के सभी पहलुओं को एकबारगी देख लेती हैं

असीमित_में_सीमित_जिंदगी
होता बहुत कुछ है - मगर दृष्टि कुछ पर ही सीमित कर लेते हैं
और फिर देख उतना ही पाते - जितना देखना चाहते हैं

नशा है अल्फाज लिखने का हमें - मगर होश इतना है
ऐसे लिखें कि पढ़ने वालों में इंसानियत का नशा चढ़ा दें

हरेक की ख़्वाहिश - ज़िंदगी में सितारों सी चमकने की होती है
क्यों बुझते जाते हम - ज्यों ज्यों ज़िंदगी यौवन क्रॉस करती है








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