Sunday, May 20, 2018

अहसानफ़रामोश ..

अहसानफ़रामोश ..
नारी - पुरुष संबंध जितने प्राचीन हैं , नारी जीवन की समस्यायें भी उतनी ही प्राचीन हैं , उन्हें हल करने के लिए जब तक पुरुष सत्ता की लालसा नहीं बदलेगी तब तक कोई इससे जुड़ा कोई सवाल  पुराना नहीं होगी ।
अगर मान अपने घर , अपने समाज या अपनी संस्कृति की पुनरसमीक्षा कर हम उन्हें नहीं देंगे। हमारी नारी अपनी समस्याओं के हल स्वाभाविक है - और जगह तलाश करेगी। अपने यहाँ सम्मान , समानता और मोहब्बत से यदि नारी वंचित रहेगी तो हल ढूँढने के लिए , नेट से संभव  ग्लोबल एक्सेसिबिलिटी से वह अन्य संस्कृति के संपर्क में आएगी। यह और बात है कि वह उसमें छली जाए , ज्यादा शोषित हो जाए। अगर हम अपनी नारी से मोहब्बत करते हैं तो नज़रिया और व्यवहार अपना  हमें बदलना होगा। हमें रेअलाइज करना होगा नारी का दिल भी हमारी तरह की हसरतों के लिए धड़कता है। उसको और हमें मिली इंसानी ज़िंदगी में कोई भी हीनता नहीं है। एक रूह होती है जो , पुरुष और नारी में एक सी ही होती है। उसका कोई जेंडर नहीं। हमारे परम्परागत परिवार में पुरुष का मज़हब भी वही , जो नारी का है. कब तक हम अपना नज़रिया अपना विचार उस पर थोप सकेंगे. उसके हमारे प्रति त्याग अगर हम देख समझ न सकें तो या तो हम मूर्ख हैं या विशुद्ध अहसानफ़रामोश।
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
21-05-2018

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