Monday, May 21, 2018

सीने से लगाने की तुम्हारी- ये जिद कैसी
मोहब्बत तो वह जो- सीने में बसा करती है

ये नफ़रत , चल तू निकल बाहर - मेरे दिल में से
जगह इसमें - मोहब्बत के लिए कम पड़ रही है

नफ़रत सचमुच तू पराई है - दिल में रखूँ तो जलाती है दिल को
मोहब्बत से तू सीख अपना होना - रखूँ दिल में तो सुकून देती है

आकर्षण के आरोप को - निराधार सिध्द करना है
अपनी ख़ुशी नहीं - अब हमें उसकी ख़ुशी बनना है

मुगालते टूटे नहीं - और यदि मर जायें
तो समझना कि - अकाल हम मर गये

डोली में लाने की हसरत तेरी
गले से लगाने की हसरत तेरी
क्यों कहता कि गले पड़ी मेरी
अजीब नहीं क्या ये हसरत तेरी ??

डोली में न आती तो - ज़िंदगी से शिकयत होती
वह थी ज़िंदगी मेरी - उसे ही तू दिला नहीं सकी

दिल की ही नहीं सुनें - तो बचता ज़िंदगी में क्या है
दिमाग़ तो बस - दौलत के नफे-नुक़सान सोचता है

मेरी ज़िंदगी की क़िताब के पन्ने - दिन दिन पलटते गये
लिखने की थीं हसरतें बहुत - मगर बिन लिखे बीत गये

अपनी ही पहचान भूल गए - इश्क़ का मुझ पर ये असर  क्या है
कहीं पे जान , कहीं मेरा ही दिल पड़ा - लगता किसी और का है

ज़िंदगी पर जब उदासी छाने लगी
औरों के लिए जीना शुरू कर दिया
उदासी का अब पता नहीं
ज़िंदगी का पता चल गया

किसे क़ामयाबी हम कहते - इस  बात पर निर्भर करता है
क़ामयाबी का दरवाजा - कहीं पुश कहीं पुल से खुलता है

#नहीं_तो_सुधरेंगे_कैसे??
आलोचना अगर दूसरे करें - ये नापसंद तो
स्वयं के आलोचक - खुद को बनना होगा

इश्क़ की आँधी में - दूर तलक़ उड़ आये
दुनिया से दूर - नई  दुनिया में चले आये

ईमानदार रिश्वत से ना  कमा के - मिडिल क्लास रहता है
उसका महँगा शौक देखे बिन - जमाना तंगहाल कहता है
क़ामयाबी
ज़िंदगी पर जब उदासी छाने लगी
औरों के लिए जीना शुरू कर दिया
उदासी का अब पता नहीं
ज़िंदगी का पता चल गया

ज़िंदगी पर जब उदासी छाने लगी
औरों के लिए जीना शुरू कर दिया
उदासी का अब पता नहीं
ज़िंदगी का पता चल गया













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