Saturday, August 15, 2020

वैतरणी पार .. एपिसोड VIII

 

एपिसोड VIII - प्रायश्चित III

अगले दिन से मैं वैतरणी को लेकर अपने एजेंडे पर पूर्ण मनोयोग से लग गया। 
परिणाम स्वरूप अगले दो वर्ष में तो वह, ऐसी प्लेयर हो गई कि उसने मिक्स्ड डबल्स में मेरे साथ जोड़ी में रहते हुए आईआईटीज के बीच खेले जाने वाले टूर्नामेंट में चैंपियनशिप जीत ली। वीमेन डबल्स में भी उसने फाइनल खेला एवं सिंगल्स में भी उसका प्रदर्शन प्रशंसनीय रहा। 
यही नहीं इतना सब करते हुए वैतरणी ने, पहले पाँच सेमेस्टर में टॉप के पॉइंटर्स हासिल किये। यहाँ फिर मैं उससे पीछे, व्दितीय स्थान पर आने लगा। 
ना जाने मगर अब क्यों मुझे, उससे कोई ईर्ष्या नहीं होती थी। अब मैं, उसे पूर्व के भाँति सर्वोच्च स्थान पर देख प्रसन्न होता था। उसने अपने पढ़ाई की रिदम पुनः प्राप्त कर ली थी। 
यह सब होते देख कभी कभी मुझमें वैतरणी से यह जानने की इक्छा बलवती होती कि स्कूल में वह जिन वीडियोस को देखने में मुझसे, अपनी रूचि प्रदर्शित करती थी। उसकी, उस लत को अब क्या हुआ?
मैं अपनी इक्छा दबा लेता, अब मैं वैतरणी से अपने घनिष्ठ होते संबंध पर कोई खतरा नहीं देखना चाहता था। 
उसे ऐसा सब हासिल करने में मददगार हो सकना, मेरे प्रायश्चित की दूसरा सफल चरण था। 
हम दोनों के छटवे सेमेस्टर में आ जाने पर अब बारी थी कि मै उसे कैंपस चयन के लिए तैयार करूं। 
हमारा आईआईटी नया होने से, यहाँ ज्यादा कंपनीज कैंपस प्लेसमेंट देने को लेकर आकृष्ट नहीं होतीं थीं। तब यदा कदा ही आती कोई अच्छी कंपनी में वैतरणी कोई अवसर न गंवाये, ऐसा मैं चाहता था। 
इस बात को लेकर मेरी चिंता यह थी कि कोर्स के बेजोड़ ज्ञान होने के अतिरिक्त, अन्य फ़ील्ड्स/विषयों में वैतरणी लगभग कोरी थी। जबकि बहु-चरणीय चयन प्रक्रिया में, अच्छी कंपनीज यह भी सुनिश्चित करती थीं कि सब्जेक्ट के इतर भी, कैंडिडेट अच्छा जानकार हो। अर्थात उनके चयनित स्टूडेंट में बहुमुखी प्रतिभा हो। 
इस दृष्टि से अच्छे पॉइंटर्स के साथ ही टेनिस की उत्कृष्ट प्लेयर होना, वैतरणी की उपलब्धि थी। मगर अन्य तरह की रूचि न होने से, वैतरणी के सामान्य ज्ञान के साथ ही अन्य विषयों का थोड़ा भी ज्ञान न होना, अब भी उसकी बड़ी कमी थी। 
वैतरणी का ज्ञान अन्य क्षेत्र में भी बढ़ सके, इस हेतु मैंने यह उचित समझा कि मैं उसे एक स्मार्ट फोन गिफ्ट करूँ। इस हेतु मुझे उसका समीप आ रहा जन्मदिन सही अवसर लगा। 
जब मैंने इस उपहार के देने की मंशा वैतरणी को बताई तो उसने, इसे स्वीकार करने के पहले, अपने पापा से अनुमति लेने की बात कही। 
इस दौर की 21 वर्षीया इस लड़की का ऐसा अनूठा गुण ही मुझे, उसका मुरीद बनाता था। यद्यपि वैतरणी की यह सरलता मुझे विश्व के आठवें अचरज से कम नहीं लगती थी। 
संतोष की बात यह रही कि उसके पापा ने स्मार्ट फोन के प्रयोग में, वैतरणी को निर्देश देते हुए उपहार ले लेने की अनुमति दे दी। और तब उसके जन्मदिन पर मैने वैतरणी को ज्यादा कीमती तो नहीं मगर एक स्मार्ट फोन गिफ्ट किया। 
वैतरणी में, यूँ तो मैं वैसी कोई बात नहीं देख रहा था तब भी मैंने उसे सलाह दी कि बारहवीं क्लॉस की तरह बुराई देखने में, वह मोबाइल का दुरुप्रयोग ना करे।
इस बात पर वह खिलखिलाकर हँसी थी। उसकी भावभंगिमा बयान कर रही थी कि तब उसने, मुझे बुध्दू बनाया था। फिर बात आई-गई हो गई।
अब वैतरणी के हाथ में हर समय, मोबाइल होने से उसका नेट सर्फिंग करना आसान हुआ था। वह मेरे सजेस्ट की गईं वेव साइट्स पर जाकर, अपनी जानकारी बढ़ाने लगी थी। 
भाग्य की बात थी कि उस वर्ष, हमारे यहाँ माइक्रोसॉफ्ट जैसी ड्रीम कंपनी आई। हमारे कॉलेज से माइक्रोसॉफ्ट ने सिर्फ वैतरणी का चयन किया, वह भी तीस लाख के पैकेज पर। मेरा खुद का, जबकि चयन नहीं हुआ था तब भी मैं असीम रूप से प्रसन्न था। 
प्रसन्नता का ठिकाना उसके चपरासी पिता एवं माँ का भी नहीं था मगर अचरज था कि वैतरणी इतनी बड़ी सफलता को सहज पचा गई थी। 
उसने मेरा प्लेसमेंट ना होने पर रोते हुए दुःख प्रकट किया था। उसकी बड़ी कटीली सी आँखों में तब अश्रु, मोती से लग रहे थे। वह बहुत ही प्यारी लग रही थी इसलिए और भी ज्यादा कि उसका हृदय मेरी असफलता को लेकर द्रवित हुआ था। 
यद्यपि उपलब्धियाँ स्वयं वैतरणी एवं उसके पापा के सँस्कार एवं मार्गदर्शन से मिल सकीं थीं। फिर भी उसमें मैं, अपनी भी अल्प भूमिका देख रहा था। यह देख पाना मुझे, मेरे प्रायश्चित की तीसरी सफलता प्रतीत हुई थी। 

सुखद आश्चर्य 

समय फिर पँख लगा उड़ा था। हमारी डिग्री पूर्ण हुई थी। 
वैतरणी माइक्रोसॉफ्ट में करियर निर्माण को चली गई थी। मैं अपने पापा की इंडस्ट्री में, काम देखने लगा था। वैतरणी और मेरी व्यस्तताओं में, मोबाइल पर आपस में बात कभी कभी ही हो पाती और ऐसे पाँच वर्ष बीत गए थे। 
तब एक शाम वैतरणी के माँ-पापा मेरे सुखद आश्चर्य रूप में अचानक हमारे घर आये। उन्होंने मेरे मम्मी-पापा, मेरे भाई एवं मेरे बीच यह बात कही कि - माइक्रोसॉफ्ट में वैतरणी के बॉस ने उससे विवाह का प्रस्ताव किया है। आगे उन्होंने यह भी बताया कि - वैतरणी ने यह जानकारी देते हुए उनसे कहा है कि एक बार वे मेरे मम्मी-पापा एवं मुझसे जाकर पूँछे कि क्या मैं, वैतरणी से विवाह करना चाहूँगा? 
यह बताते हुए वैतरणी के पापा ने हाथ जोड़ मेरे पापा से कहा - सर, यूँ तो आपसे, हमारी कोई तुलना नहीं है मगर अपने बेटी से प्रेम के वशीभूत, उसकी ख़ुशी के लिए, आप से पूछने का साहस जुटा कर आया हूँ। अगर आपको यह अपनी शान में गुस्ताखी लगे तो कृपया क्षमा कीजिये। 
मेरे पापा ने प्रश्नात्मक निगाहों से मेरी ओर देखा और जब मेरी आँखों में वैतरणी से विवाह की सहमति पढ़ ली तो उन्होंने, वैतरणी के पापा एवं मम्मी से हाथ जोड़कर कहा - अरे भाईसाहब, क्यूँ शर्मिंदा करते हो।  वैतरणी जैसी सुशील एवं प्रतिभाशाली बेटी का हमारे घर आना, हमारे सौभाग्य की बात होगी। मेरी कोई बेटी नहीं, वैतरणी के आने से हमारे जीवन की यह कमी दूर हो जायेगी। 
सुखद संयोग यह रहा कि अभिनव ने रिया के पैरों में आये दोष, जिससे वह लंगड़ा कर चलती थी के बावजूद उसका साथ नहीं छोड़ा। जबकि कम ही लड़के होते जो रिया के इस दोष के साथ उसका हाथ थामते, ऐसे में अभिनव ने रिया के पेरेंट्स से विवाह करने की इक्छा जताई।  
इस तरह हमारे विवाह के दो दिन पूर्व अभिनव एवं रिया परिणय सूत्र में आबध्द हो गए। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
15-08-2020

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