Saturday, August 15, 2020

वैतरणी पार .. एपिसोड VII

 

एपिसोड VII - रफा-दफा 

अभिनव के पापा ने, मृतक बूढी महिला के घरवालों को बड़ा कंपनसेशन देते हुए, केस रफादफा तो करवा लिया, लेकिन साफ़ दिखाई पड़ता था कि इस हादसे के अवसाद से, उबरने में अभिनव एवं रिया के जीवन का स्वर्णिम काल व्यर्थ बीत जाने वाला था। 
ज़ाहिर था कि बुराई के जिस पूर्व ज्ञान के होने को मैंने, बुराई से बच सकने का उपाय प्रतिपादित किया था। वैसा कम स कम अभिनव एवं रिया की दृष्टि से सही सिध्द ना हो सका था। 
बुराई के ज्ञान ने, अभिनव एवं रिया को उससे बचने में मदद नहीं की थी अपितु वे बुराई में ही लिप्त हुए थे। वह भी इस बुरी तरह कि अपना यौवनकाल ही व्यर्थ कर बैठे थे।  

प्रायश्चित -II

इधर वैतरणी और मेरा कॉलेज एवं घर एक ही शहर में होते हुए भी, हमें हॉस्टल में ही रहना होता था। 
हममें तय हुए अनुसार, मै स्पोर्ट अकैडमी में प्रतिदिन सूर्योदय के समय पर ही, एक घंटे के लिए टेनिस कोर्ट बुक करवाने लगा। मैं, वैतरणी को अपनी बाइक पर बैठा ले जाता एवं पूर्ण मनोयोग से उसे टेनिस सिखाने लगा। 
रैकेट पकड़ने से सिखाने की शुरुआत करके उसे वॉली खिलाता, वॉली खेलने की कोशिश में वैतरणी कुछ मौकों पर अजीबोगरीब तरह से कोर्ट में गिर जाया करती। 
इस पर मुझे हँसी आ जाती तो वह रोने लगती। तब उसे चुप कराकर पुनः खेलने के लिए मनाना अति दुष्कर हो जाता। 
मेरे स्तर के प्लेयर का, प्रतिदिन घंटा भर वैतरणी की तरह नौसखिया के साथ खेलते देखना, देखने वालों के लिए अचंभे की बात होती। मगर मैं, धैर्य पूर्वक उसे सिखाता रहा।
सर्विस, ग्राउंड स्ट्रोक, फोरहैंड/बैकहैंड, क्रॉस कोर्ट प्लेसिंग, नेट पर, डीप एवं डाउन द लाइन सभी तरह से खेलने की, उसे प्रैक्टिस कराते हुए उसे पॉइंट एवं स्कोरिंग के नियम भी मैंने बताये थे। 
इसे अपनी तारीफ कहुँ या वैतरणी का खेल के लिए लगन एवं समर्पण कि, वैतरणी का खेल लगभग एक माह के समय में ही, इस स्तर का हो गया कि उसे कॉलेज के टेनिस कोर्ट में किसी भी प्लेयर से खेलने में कोई संकोच नहीं रह गया। 
मैं वैतरणी में निहित, पढ़ने के अतिरिक्त अन्य प्रतिभा को तराश रहा था। तब यहाँ से बहुत दूर, अभिनव एवं रिया के साथ हादसा हुआ। 

पीड़ित मित्र से मिली प्रेरणा 

रिया के मुझ पर दोषारोपण से मैं, विचलित हुआ। जिससे, वैतरणी एवं सुजाता के साथ अभिनव से मिलने जाने का साहस नहीं कर सका। अभिनव के घर में उपचार के दौरान, वैतरणी एवं सुजाता उससे मिल आये थे।
फिर इन वर्षों के पूरे घटनाक्रम पर सोचने के उपरांत अभिनव से मित्रवत रहा मेरा स्नेह मुझे, उससे मिलने खींच रहा था। 
अभिनव के पापा ने, ड्रग एडिक्शन से मुक्त कराने तथा साथ ही हादसे के सदमे से, मुक्त कराके अभिनव में आत्मविश्वास पुनः स्थापित करने के विचार से, अभिनव को सेमेस्टर में ड्राप दिलवा दिया था।  
मैं अभिनव का सामना करने का साहस बटोर कर बाद में मिलने गया था। 
अभिनव तब तक काफी सामान्य हो चुका था।  
मुझे सामने देख भाव-विह्वल होकर वह मुझसे मुझसे गले मिला था। 
चेहरे पर पछतावे के भाव सहित बोला - मुझसे बड़ी भूल हुई है। किसी के जीवन का भरोसा नहीं कि कितना है। ऐसे में जितना भी समय मिलता है अपने पूरे होशो-हवास में इसकी समस्त विलक्षणता को अनुभूत करते जीना चाहिए। मगर इसे समझे बिना, मैंने कई महीने ड्रग्स के नशे में बेखुदी में गँवा दिए। इसकी चपेट में एक महिला की जान ले ली एवं रिया के अंग-भंग की विवशता में जीने को बाध्य कर दिया। 
मैंने ढाँढस बंधाते हुए कहा - हम मनुष्य हैं कुछ भूलें हम सभी से हो जाती हैं। उसका पश्चाताप करते हुए आगे, हुई क्षति की जितनी संभव हो उतनी भरपाई हमें करनी चाहिए। 
इस बात से अभिनव की आँखों में मुझे संकल्प दिखाई दिया उसने कहा - हाँ, टॉपर बिलकुल, पहले में रिया से फ़्लर्ट कर रहा था। अब उसे मैं प्यार करना चाहता हूँ एवं मेरे कारण उसके पैरों में आये दोष के होते हुए भी, समय आने पर मैं उससे विवाह कर उसे अधिकतम सुख सुनिश्चित करने का संकल्प रखता हूँ।     
अभिनव ने यह बात सहज रूप से कही थी लेकिन इसने मुझ पर अत्यंत भला प्रभाव किया। मेरे वैतरणी को लेकर किये जा रहे प्रायश्चित एवं उसके लिए अधिकतम संभव किये जाने के मेरे संकल्प को और दृढ़ता प्रदान कर दी। 
मुझे सोच में डूबा देख अभिनव ने पूछा - क्या हुआ, टॉपर कहाँ खो गये, तुम?
मैंने भाव छिपाते हुए कहा - सच कह रहे हो तुम, अभिनव। तुम्हारे इन विचारों पर मेरे हृदय में आदर उमड़ रहा है। जिन्हें सुनकर मैं सोचने लगा था कि ये लड़कियाँ, जो हमारी पूरक होती हैं, उन पर लोग छल- अत्याचार, कैसे कर पाते हैं? तुम्हारी भावना को जानकर मुझे रिया के लिए बहुत ख़ुशी हो रही है। 
अभिनव को अपने विचारों पर, मेरे समर्थन ने खुश किया। फिर मैंने उससे विदा ली।      

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
15-08-2020

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