Saturday, August 15, 2020

वैतरणी पार .. एपिसोड V

 

एपिसोड V - मंसूबों पर पानी फिरना, मगर अनभिज्ञ 

मुझे जानकारी नहीं थी कि अप्रत्याशित रूप से अगली शाम वैतरणी ने, अपने पापा एवं मम्मी के समक्ष पिकनिक में हुई सभी बातों को अक्षरशः कह सुनाया था। उसके पापा यद्यपि चपरासी मगर अनुभवी एवं बुध्दिमान व्यक्ति थे। उन्होंने मेरे मंतव्य को भाँप लिया था। वैतरणी पर इसे निष्प्रभावी करने के लिए उन्होंने अपनी बेटी को समुचित मार्गदर्शन भी कर दिया था।

खुशफहमियाँ 

अगले कुछ महीनों में, दूसरों से छुपाते हुए वैतरणी ने, मुझसे ज्यादा अश्लील वीडियोस को देखने की इक्छा बताई थी। 
मन ही मन खुश होता हुआ मैं, प्रकट में उसे ऐसे वीडिओज़ देखने को मना करता। 
जब तर्क करते हुए वैतरणी कहती कि - टॉपर, बुराई की गहराई का माप हम नहीं कर सकेंगे तो उसमें डूबने से स्वयं को कैसे बचा सकेंगे?
(भीतर ही भीतर खुश होता हुआ) मैं, उसकी इस बात पर अपनी हार मानता सा जताता था। फिर चूँकि वैतरणी के पास मोबाइल नहीं था अतः अपने  मोबाइल पर शातिराई से गंदे वीडियोस की लिंक, सर्च कर उसे दे दिया करता था।  
एकांत में जाकर वैतरणी इन्हें देखा करती थी एवं बाद में, अपनी पलकें नीचे रख लजाते स्वर में, धन्यवाद के साथ मेरा मोबाइल मुझे लौटा दिया करती थी। 
कुछ कुछ दिनों के अंतराल में जब जब वैतरणी ऐसा करती मैं, अत्यंत खुश होता कि वैतरणी अश्लील वीडियो देखने की लत की शिकार हो गई है। तब मुझे लगा करता कि मैं, वैतरणी की लकीर मिटाने में सफल हो रहा हूँ। मुझे विश्वास होने लगा कि वैतरणी का ध्यान पढ़ाई पर उतना नहीं रह गया कि उसके प्राप्तांक से, मैं ज्यादा हासिल न कर सकूँ। 
ऐसे समय बीता और बारहवीं की परीक्षा हुई। फिर आईआईटी जेईई की एग्जाम भी हुई। 
अब प्रतीक्षा थी परिणामों की, वह घड़ी भी आई जब बारहवीं के परिणाम आये। मेरा सपना साकार हो गया, मुझे स्कूल में सर्वोच्च स्थान मिल गया। मैं बहुत खुश हुआ लेकिन जब यशस्वी का परिणाम ज्ञात हुआ मेरी ख़ुशी, काफूर हो गई। 
मैं, उसे अपनी जगह व्दितीय स्थान पर देखना चाहता था मगर वह, सातवें स्थान पर आ सकी थी। 
अब मैं चाह कर भी खुश नहीं हो पा रहा था। जो लड़की 11 कक्षाओं तक निरंतर सर्वप्रथम बनी हुई थी। सबसे महत्वपूर्ण कक्षा में बुरी तरह पिछड़ गई थी। उसके आगे वह वह लड़के-लड़कियाँ आ गईं थीं। जिनके, उससे आगे निकलने की किसी को कल्पना भी नहीं थी। 

लज्जित 

अब मैं, अपनी स्वार्थपरता पर स्वयं को लज्जित अनुभव कर रहा था। मैंने अपनी लकीर बड़ी करने के लिए, उस लड़की की लकीर मिटा कर अनेकों से छोटी कर दी थी। 

वैतरणी मार्कशीट लेने स्कूल आई थी। उस समय स्कूल में होते हुए भी मैं, उसके सामने जाने का साहस नहीं जुटा सका था। 
रही कसर आईआईटी जेईई के परिणाम वाले दिन निकल गई। मुझे देश में 775 स्थान मिला, उससे बहुत नीचे वैतरणी 3132 पर आ पाई थी। 
वैतरणी पढ़ने के प्रति समर्पित, अत्यंत प्रतिभावान लड़की थी। 
दोनों परीक्षाओं के परिणामों ने अन्य विद्यार्थी में उसके बारे में घटिया घटिया कमेंट सुनने मिल रहे थे। वह मुझे सहन नहीं हो रहा था। 
मैं अपने ग्लानि बोध में, जमीन में गड़ा जा रहा था। वैतरणी अपना मोबाइल भी नहीं रखती थी कि उससे बात कर सकूं। तब झूठे बहाने से, मैंने अपने दोस्तों से उसके घर का पता लगवाया और उसके घर पहुँच गया। 
हमारे आलीशान घर की तुलना में उनका घर बहुत छोटा था। उसके माँ-पापा छोटे से बैठक कक्ष में बैठे हुए थे। 
उन्हें, मैंने अपना परिचय दिया था। उन्होंने तब वैतरणी को बुलाया था। मुझे अपने घर आया देख कर वह चकित थी। 
औपचरिकता में उसने मुझे कहा - बारहँवी एवं आईआईटी जेईई के अत्यंत अच्छे परिणामों के लिए बधाई 
इस पर अपनी रुआँसी सी होती आवाज को मैं, कठिनाई से किसी तरह नियंत्रित कर सका था। मैंने पूछा था - वैतरणी, तुम्हारे ऐसे कमजोर परीक्षा परिणाम का क्या कारण है?
वैतरणी ने कहा - दुःखद रूप से मैं पढ़ाई में वह एकाग्रता बनाये नहीं रख सकी, जो इन प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए आवश्यक होती है। इस कारण पिछड़ गई हूँ। 
मैंने पूछा - इससे, तुम बहुत ही दुःखी होगी?
उसने सपाट स्वर में उत्तर दिया - दुःख करने से अब क्या लाभ। 
मैंने पूछा - आगे क्या करोगी ?
इस बार उत्तर, उसके पापा ने दिया - हमारे ही शहर में आरंभ हुए नए आईआईटी महाविद्यालय में यदि सीएस में प्रवेश मिल सका तो वैतरणी यहाँ पढ़ लेगी। 
मैंने कहा - मगर अंकल, इस कॉलेज की डिग्री से, बहुत अच्छे जॉब की संभावना नहीं रहेगी। 
अंकल - बेटा, मैं चपरासी बन सका हूँ। मेरी बेटी आईआईटी में पढ़कर जो भी बन सकेगी, मेरे तुलना में वह बहुत बड़ी ही बात होगी। 
तब तक, वैतरणी की माँ प्लेट में मिठाई ले आई थी। मुझसे उन्होंने कहा - लो बेटा, हमारी बेटी की उपलब्धि पर मुहँ मीठा करो। 
वैतरणी, उसके पापा एवं माँ की बातों से मैं भीतर तक हिला हुआ था। मैंने किसी तरह मिठाई के ग्रास गले से नीचे उतारे थे फिर हाथ जोड़ सबसे विदा ली थी। 

पश्चाताप  

वापिस लौटते हुए अपने किये नीच कर्म का पश्चाताप हो रहा था मेरा अंर्तमन मुझे धिक्कार रहा था। वैतरणी की प्रतिभा अनुरूप, वैतरणी एवं उसके परिवार को जो प्रतिष्ठा एवं चर्चा आज, मिलनी चाहिए थी उससे ये लोग, मेरे कारण वंचित हुए थे। 

फिर कुछ दिनों बाद हमारी मुलाकात शहर के आईआईटी में कॉउंसलिंग के समय हो सकी थी। जब उसे ज्ञात हुआ कि मैं भी इसी कॉलेज में सीएस में प्रवेश ले रहा हूँ तो उसे अत्यंत अचरज हुआ। 
उसने पूछा - टॉपर, तुम्हें तो मुंबई आईआईटी में प्रवेश मिल सकता था। तुम, इस नये कॉलेज में पढ़ कर अपने भविष्य की संभावनाओं पर क्यों खतरा ले रहे हो ?
मैंने उत्तर दिया - हममें निहित टैलेंट, हम कहीं भी रहें बना रहता है। मुझसे ज्यादा टैलेंटेड तुम, यदि इस कॉलेज में पढ़ सकती हो तो मैं क्यूँ नहीं!
मेरे उत्तर की प्रतिक्रिया में, उसके मुखड़े पर विचित्र भाव परिलक्षित हुए एवं उसने, मुझे, दयनीय दृष्टि से निहारा था। 
फिर हमने विदा ली थी। 
इस बीच परिणामों के अनुसार सुजीत ने गौहाटी तथा सुजाता ने शहर के ही स्टेट इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन ले लिया था। जबकि रिया एवं अभिनव एक साथ दक्षिण के महँगे कॉलेज में पढ़ने चले गए। गौहाटी जाने के बाद आगे विदेश में बसने के लिए महत्वाकांक्षी सुजीत फिर हमारे संपर्क में नहीं रह गया। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
15-08-2020

No comments:

Post a Comment