Friday, August 28, 2020

गद्दार ... 8. कश्मीर - रच गया नया इतिहास

गद्दार ...  

8. कश्मीर - रच गया नया इतिहास 

8. कश्मीर - रच गया नया इतिहास 


रात में नींद आने के पहले, मैं आने वाले कल को लेकर विचार में मग्न था। तब 

पाकिस्तान में संगठन प्रमुख के मोबाइल पर इनकमिंग कॉल की रिंगटोन गूँज रही थी। 

प्रमुख ने कॉल लिया, दूसरी ओर से कहा गया - 

उसके अम्मा-अब्बू रात में घर से कब निकले यह तो हमें, पता नहीं चल पाया। मगर रात 12.30 बजे बाइक से दोनों अपने घर लौटे तब, हमें शक हुआ कि शायद वह, यही कहीं है और शायद ये, उसे मिलने ही कहीं गए थे। सामान्यतः इतनी रात गए इनका, बाहर से आना कभी होता नहीं है। 

प्रमुख के चेहरे पर नाराज़गी दिखाई दी, लेकिन उसने, अपनी आवाज में नरमी रखते हुए कहा - 

कल से ऐसी लापरवाही न करना। अब तुम, उसके अब्बू के पीछे साये की तरह लगे रहो। अगर वह यहाँ कहीं है तो उसका अब्बू, फिर उससे जरूर मिलेगा। 

दूसरी ओर से कहा गया था - जी साहेब, बिल्कुल दुरुस्त। अब ऐसी लापरवाही नहीं होगी। हम कल ही उसका सुराग लगा लेंगे। 

प्रमुख ने कहा - ठीक है। (फिर काट दिया था।)

सूर्योदय के साथ ही अगली सुबह युवक, अपनी भेड़ों को लेकर, वापिस अपने गाँव लौट गया था। 

निर्धारित किये गए अनुसार, अब्बू आये थे। मैंने कपड़े बदले थे एवं गुज्जर लोगों द्वारा पहने जाने वाली वेशभूषा उतार कर उस पर जलती तीलियाँ डाल दी थीं। मैं, इतना सतर्क इसलिए था कि मेरे सहायक हुए, गुज्जर परिवार को, मेरा राज छुपाने को लेकर, कोई परेशानी न झेलने पड़े। 

मैं ऐसा कोई निशान नहीं छोड़ना चाहता था जिससे समझा जा सके कि पिछले आठ दिन मैंने, बकरवाल परिवार की सहायता से छुप कर गुजारे थे।  

मैं अब्बू के साथ बाइक में बैठा था। हम 100 मीटर ही चले होंगे कि मुझे पास ही दूसरी बाइक की आवाज सुनाई दी। उस वीरान स्थान में यह अप्रत्याशित बात थी। मेरा माथा ठनका, मैंने अब्बू से कहा - अब्बू भागो। 

अब्बू ने सुनते ही स्पीड तेज की। पीछा करने वालों ने, पीछे से हम पर फायर किया मगर, उनका निशाना चूक गया था। मैंने पलट कर देखा तो बाइक पर दो लोग, हमारे पीछे लगे हुए थे। पीछे बैठे आदमी के हाथ में गन थी। वही मौका देख कर फायर करते जा रहा था। 

अब्बू, बाइक लहराते हुए चला रहे थे। इसलिए उसके निशाने चूक रहे थे। 

दोनों ही बाइक की स्पीड 100 से अधिक थी। आगे हमारी बाइक, मोड़ पर घूम कर बढ़ी ही थी कि तभी सड़क पर पीछे, जंगल की तरफ से भेड़ों का एक झुंड आ गया। 

पीछे के बाइकर को मोड़ होने से यह झुंड, अचानक दिखाई दिया था। गति ज्यादा होने से वह संभल नहीं सका जिससे उनकी बाइक, कुछ भेड़ों को टक्कर मारते हुए, साइड के गड्ढे में जा गिरी। 

मैंने देखा कि झुंड हाँक रहे बकरवाल ने, अपनी भेड़ों का यह हाल देखा तो वह, दहाड़े मार कर रोने लगा था। कोई और समय होता तो हम रुक कर, उसकी सहायता करते। 

बाइक सवारों को गंभीर चोटें लगीं लगती थी। वे खड़े नहीं हो पा रहे लगते थे। 

बाइक पर बैठे ये लोग निश्चित ही, हमारे आतंकी समूह के लोग थे। यह दूसरी बार था कि कुछ ही अरसे में, मेरे भाग्य में किसी गुज्जर द्वारा अनायास ही मुझे बचा लिया गया था। 

मुझे यह मालूम नहीं था कि पाकिस्तानी आतंक प्रमुख ने, मेरे पीछे लगे उन लोगों को रात ही, लापरवाही नहीं करने को कहा था। तब भी वे चूक कर गए थे। उन्हें, मुझे घेरना तब चाहिए था जब मैं, कपड़े बदल रहा था। चलती बाइक से निशाना साधना अपेक्षाकृत कठिन था। उसमें ऐसे हादसे के होने का खतरा होता ही है। 

अब हमारा काम आसान था। 5 मिनट बाइक पर आराम से चलते हुए, हम थाने पहुँचे थे। वहाँ मैंने आत्मसमर्पण कर दिया था। 

वहाँ थाना इंचार्ज इंस्पेक्टर को सर्वप्रथम मैंने, अपने पीछा करने वाले आतंकियों की सूचना दी। मेरी सूचना पर दुर्घटना स्थल से, दोनों को घायल अवस्था में पकड़ लिया गया। ये उस समय मोबाइल पर अपने संगठन से मदद पहुँचाने की बात कर रहे थे। उनमें से हम पर फायर करने वाला आतंकवादी था। बाइक चला रहा लड़का, उसे मदद करने वाला घाटी का ही लड़का था।     

मेरी सूचना पर उन्हें दबोचे जाने से, पुलिस एवं सेना में मेरा अच्छा प्रभाव पड़ा। आगे के दिनों में मेरी आशा से, अत्यंत अधिक अच्छी बातें हुई थीं। 

पुलिस एवं सेना के पूछताछ में मैंने - 

निर्दोष लड़की की मेरी बाँहों में हुई मौत, होना बताया था। 

उस लड़की से अपनी प्रियतमा की तुलना से, मेरा हृदय परिवर्तन होना बताया था। 

मैंने, उसके बाद देखा गया अपना, सपना बताया था। 

यह भी बताया कि सपने से मुझे, छह शताब्दी पूर्व का, हमारा वंश एवं धर्म, हिंदू होना ज्ञात हुआ था। 

सपने से ही मुझे, सुल्तान प्रोत्साहित, आततायियों के अत्याचारों का पता चला था। इन अत्याचारों से पीड़ित होकर ही, हमारे पूर्वजों सहित अनेक कश्मीरियों की धर्म  परिवर्तन करने की विवशता, मैंने देखे गए सपने अनुसार उन्हें, वर्णित करके बताई थी।

मैंने यह भी बताया कि अन्य कुछ कश्मीरियों सहित, ऐसे कुछ धर्म परिवर्तित किये गए लोगों के द्वारा भी, बीसवीं शताब्दी के अंत के वर्षों में, पुनः कश्मीरी हिन्दुओं पर अत्याचार किया गया था। यह, सुल्तान के समय जैसा ही अत्याचार था। इसे, इस रूप से देखकर, मैं व्यथित हुआ हूँ। इस कारण मैं, वापिस अपने मूल धर्म को स्वीकार करने को प्रेरित हुआ हूँ। मेरा आत्मसमर्पण करने का कारण भी यही है। 

इन भावनात्मक बातों के अतिरिक्त मैंने आतंकवादी संगठन के यहाँ सक्रिय लोगों की सूचनायें दीं हुआ। इन सूचनाओं से तीन आतंकवादी मार दिए गए। छह अन्य सहित घाटी में, उनके कुछ सहायक पकड़े लिए गए। मेरे एवं पकड़े गए लोगों से, पाकिस्तान स्थित संगठन के, आगामी दिनों में की जाने वाली आतंक की वारदातों का, पर्दाफ़ाश भी हुआ। मेरा आत्मसमर्पण ऐसे देश के हित में अत्यंत उपयोगी साबित हुआ। 

मेरे, इस सहयोग के अतिरिक्त चूँकि मेरे आतंकवादी हुये, अधिक समय नहीं हुआ था। साथ ही मैंने कोई जघन्य वारदात को अंजाम नहीं दिया था। अतः मुझ पर, कोर्ट में पेश किये गए आरोप पत्र में, वादा माफ़ गवाह बनाने के अनुशंसा की गई। 

मेरे बारे में सेना एवं पुलिस से मिली सूचना के आधार पर मीडिया ने, इस पूरी स्टोरी को बार बार प्रसारित किया।

इस प्रसारण का उनका उद्देश्य, भटक गये और लड़कों को, मेरे तरह ही आत्मसमर्पण करने को प्रोत्साहित करना था।  मेरी आपबीती पर आधारित, वेबसेरीज़ भी बनाई गईं, जो भारतीय दर्शकों में अत्यंत लोकप्रिय हुई।

मेरा आत्मसमर्पण एवं मेरा हरिहर भसीन बनना, कश्मीर के इतिहास में, टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। 

प्रारंभ में, कश्मीर घाटी में, मेरे धर्म परिवर्तन कर लिए जाने से लोगों ने, मुझे एक खलनायक की तरह देखा। 

उनके हिंसात्मक प्रतिक्रिया की आशंका से, मेरे परिवार को सेना से मिली सुरक्षा में रहना पड़ा। जेल में मुझे भी, अलग कोठरी में रखा गया ताकि कैदी के भेष में आकर, कोई आतंकवादी मुझे मार ना दे। 

मुझसे जेल में ही, एक लोकप्रिय टीवी चैनल ने, साक्षात्कार लिया। इसमें मैंने बताया कि -

मेरा धर्म परिवर्तन करना इस्लाम मज़हब का विरोध नहीं है। इस मज़हब को हमारे खानदान ने छह पीढ़ी तक निभाया है। मेरा वापिस हिंदू होना मेरे, इस विश्वास से प्रेरित है कि हम पूर्व में हिन्दू थे। 

मेरा ऐसा कोई आह्वान नहीं कि कोई और मेरे जैसे ही धर्म परिवर्तन करे।

मेरी अपील यह है कि इस्लाम मानने वाले, इस्लाम की सच्ची शिक्षा पर चलें। सच्चा मुसलमान आतंकवादी नहीं होता। सच्चा मुसलमान, इस्लाम की इबादत करते हुए किसी अन्य पर, आतंक नहीं फैलाया करता है। 

वैश्विक समाज के नए समय में आज जरूरत है कि इस्लाम मानने वाले सभी लोग, अन्य नस्ल या कौम की तरह ही शिक्षित होने को प्राथमिकता दें। 

शिक्षित होकर ही वे कुरान पाक से सच्ची सीखें, सीधे हासिल करेंगे। उस अनुसार चल कर नेक इंसान हो सकेंगे। 

उच्च शिक्षित होकर मुसलमान, अनर्गल बरगलावों से स्वयं को बचा सकेंगे। इस्लाम के नाम पर बाहरी देश के एवं यहाँ के ख़ुदग़र्ज़ लोगों की, अपने मतलब के लिए प्रचारित की जा रही गलत शिक्षा के झाँसे में आत्मघाती करतूत करने से बच सकेंगे।  

ऐसा हो सकने से, घाटी एवं समाज में शांति-सौहार्द्र बढ़ेगा। 

इसमें मुसलमान की यही नहीं, आगामी पीढ़ियाँ भी अपने सपने को साकार करते हुए ज़िंदगी जी सकने के अवसर मिलेंगे। 

कुछ कट्टरपंथी लोगों के अलावा, साधारण मुसलमान पर, इस प्रसारण का अच्छा असर पड़ा। जब ज्यादा बड़ा वर्ग उनके बरगलावों में आने से बचने लगा तब कश्मीर में आतंकवाद का विषैला वृक्ष सूख गया। 

मुसलमान पर रहती आई देश की संदिग्ध दृष्टि में भी, बदलाव आने लगा। घाटी में कुछ परिवारों ने मेरी तरह, अपने पूर्वजों के मूल धर्म में वापसी की। 

जिन्होंने ऐसी वापसी नहीं की, उनके मन में भी संशय हुआ कि वे भी परिवर्तित मुसलमान तो नहीं! 

जो भी हो मगर इन सब बातों से मुसलमान में नरमाई आन परिलक्षित हुई। वे, अपने पूर्वाग्रह त्याग सके एवं हिंदुओं पर अत्याचार करने एवं दिल में नफरत रखने से विमुख कर हुए। 

घाटी में परिवर्तन की इस लहर ने, कश्मीर से विस्थापित हुए पंडितों को, कश्मीर वापिस आने का साहस दिया। पूर्व में विस्थापित हुये में से, अनेक पंडित परिवार कश्मीर लौटने लगे। 

फिर मुझे कोर्ट ने माफ़ी प्रदान कर मेरी रिहाई का आदेश पारित किया। कश्मीर के स्थानीय लोगों से सपोर्ट नहीं मिलने के कारण, पाकिस्तान से प्रायोजित किये जाने वाले, आतंक की जड़ें नष्ट हो गईं। 

अब मैं, कश्मीर के नये युग का आधार बन गया था। नबीहा का परिवार भी वापिस हिंदू हो गया था। 

इस तरह नबीहा को गैर कौम में विवाह करने का साहस नहीं करना पड़ा। 

मुझसे, विवाह करते हुए नबीहा गौरवान्वित अनुभव कर रही थी। नबीहा ने इसे अपना भाग्य माना कि जिसे खो दिया लगता था, उसका वह मंगेतर (मैं) उसे फिर मिल गया था।

मुझसे विवाह करते हुए उसे गर्व हो रहा था कि उसे मिला जीवन साथी कश्मीर ही नहीं, भारत का वास्तविक नायक था।          

नबीहा ने अपना नया नाम “मातृभूमि” पसंद किया था। अब मुझ पर दायित्व था कि उसके मन में मेरी नायक की छवि अपने कार्य से सिध्द करूँ। 

अब मुझे, इस मातृभूमि (भारत, कश्मीर) एवं इस मातृभूमि (मेरी अर्ध्दागिनी) दोनों ही मेरी अपनी की, मुझसे अपेक्षाओं पर सच्चा एवं अच्छा सिध्द करना था ..     


(अभी के लिए समाप्त) 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

28-08-2020


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