Thursday, August 27, 2020

गद्दार ... 7. ये रात - सितारों का मिलन

गद्दार ...

 7. ये रात - सितारों का मिलन

नबीहा ने पहली बार मुँह खोलते हुए पूछा - क्या हुआ था मुठभेड़ में?

तब मैंने कहा - 

सुनने के लिए आधा घंटा सबको इत्मीनान रखना होगा। मैं विस्तार से सब कहने जा रहा हूँ।

अब्बू ने कहा - 

जल्द बताओ, हमारा ज्यादा वक़्त यहाँ रुकना, निगरानी करने वालों में शक पैदा करेगा।

तब मैंने, सुरक्षा बलों के पीछे पड़ जाने के कारण, उस घर में घुसने से लेकर, बकरवाल युवक के घर में, मेरी सेवा किये जाने की, एक एक बात उन्हें बताई। मैंने यह बताने में भी संकोच नहीं किया कि मैं, लड़की की जगह, नबीहा को उस स्थिति में होने की कल्पना करता रहा था। 

चट्टान पर सोते हुए, अपने देखे सपने के जिक्र के साथ ही, मैंने यह भी बताया कि अब मैं वापिस हिंदू धर्म स्वीकार करते हुए अपना नाम हरिहर भसीन रखूँगा।

अंत में मैंने बताया कि - 

पाकिस्तान में दहशतगर्दों के अड्डे की जानकारी, भारत की पुलिस/सेना को बता कर मैं, वादा माफ़ गवाह बनने की कोशिश करूँगा। 


-ऑपरेशन मां-


तब चचा ने कहा - 

तुम्हारी योजना कारगर होगी, यह मुझे लगता है क्योंकि 370 समाप्त होने के बाद, अभी के गवर्नर, घाटी के भटके युवकों को वापिस मुख्यधारा में लाने के लिए “ऑपरेशन मां” के तहत प्रोत्साहित कर रहे हैं। इससे आत्मसमर्पण करने के बाद, उनकी कस्टडी में तो तुम शेफ रहोगे। लेकिन बाहर आने पर दहशतगर्दों के निशाने पर होगे। 

मैंने कहा - 

आप सभी निश्चिंत रहें, अब के बदले हालात में कश्मीर में, पाकिस्तान पोषित आतंक के दिन ज्यादा नहीं रह गए हैं। जो भी सजा मुझे मिलती है मैं, उसके काटने के बाद निशंक, अच्छे भारतीय नागरिक के रूप में अपना पूरा जीवन जी सकूँगा। 

मेरी बात से अम्मी की उम्मीद बनी। अब्बू ने भी मुझसे सहमति जताई, पूछा - 

फिर, कल के लिए कब और क्या, किया जाना होगा?    

मैंने कहा - 

कल आप, आज सुबह वाली जगह ही, मेरे लिए एक जोड़ा कपड़ों के साथ मिलिये। ये कपड़े बदलकर मैं आपकी बाइक पर, आपके साथ ही थाने चलूँगा। वहाँ आप मुझे पकड़वा दीजियेगा। इस तरह मैं, सरेंडर कर दूँगा।

यह तय कर लिए जाने के बाद अब्बा-अम्मी लौट गए थे। 

तब नबीहा ने, अपनी अम्मी से मुझसे, अकेले में बात करने की इजाज़त चाही थी। नबीहा के अम्मी-अब्बू जानते थे कि हममें, मोहब्बत है और आगे चलकर हम शादी करना चाहते हैं। उन्होंने इसे मंजूर कर लिया फिर वे दोनों, अन्य कमरे में चले गए। 

अब कमरे में हम दोनों ही थे। नबीहा ने रुआँसे स्वर में बताया - 

तुम्हारे आतंकवादी बन जाने के साथ ही मैंने, आशा छोड़ दी थी कि इस ज़िंदगी में मुझे, तुम्हारा साथ फिर मिल सकेगा। आज तुम्हें वापिस देख मुझे वह ख़ुशी मिल रही है जिसे, व्यक्त करने के लिए, मेरे पास शब्द नहीं हैं। 

मैंने मुस्कुराते हुए पूछा - मैं हिंदू हो जाने वाला हूँ, यह मंजूर है, तुम्हें?

नबीहा ने दृढ़ता से कहा - 

मुसलमान घर में पैदा होने से मेरी परवरिश, मुस्लिम की तरह हुई है तब भी, मुझे यह बात अजीब लगती आई है कि मुस्लिम पुरुष तो अन्य संप्रदाय की लड़कियाँ तो आसानी से ब्याह लेते हैं। जबकि मुसलमान लड़की के लिए ऐसा करने की इजाजत नहीं। मैं इस संकीर्ण तथा दोहरी मानसिकता से विद्रोह करुँगी। और तुमसे विवाह करना  अपना सौभाग्य मानूंगीं। 

मैंने प्रशंसा करते हुए कहा - इतनी साहसी!

वह बोली - दो कौमों में हमारा ऐसा करना समाज का पक्षपाती विभाजन है, जिससे ही शताब्दियों से ये आपसी नफरत चल रही है। 

मैंने कहा - वाह नबीहा समस्या की जड़ की इतनी पहचान प्रशंसनीय है . मगर यह तो बताओ कि यदि मेरी सजा लंबी चली तो?

नबीहा ने लंबी श्वाँस लेकर कहा - 

तुम जीवित हो यह विचार, मेरी ज़िंदगी के लिए काफी है। मैं उतना इंतजार कर लूँगी जितनी, तुम्हें सजा काटनी होगी।    

मैंने पूछा - 

सजा काटने के बाद छूटने पर आतंकवादी मुझे, टारगेट कर सकते हैं। इससे तुम्हें भय नहीं लगेगा?

नबीहा ने कहा - 

मैंने तुमसे प्यार किया है। आतंकवादी से सामना होने पर उस लड़की की तरह, तुम्हारी बाँहों में मुझे, मर जाने में भी ख़ुशी होगी। 

मैंने कहा - 

नबीहा, यद्यपि मुझे विश्वास है कि ऐसे तुम्हें मरना नहीं पड़ेगा मगर, ऐसा कह कर बहुत हद तक तुमने, लड़की के मेरे कारण मारे जाने के मेरे ग्लानि बोध से मुक्त किया है। 

मैं तुमसे दुगुना प्यार करूँगा। एक तुम्हारे स्वयं के हिस्से वाला और एक, उस लड़की को लेकर मेरी संवेदना से, उसके प्रति मेरे हृदय में उपजा वाला। अभी के लिए तुमसे, मैं यह चाहूँगा कि तुम हमारे प्यार को गोपनीय ही रखना। अन्यथा आतंकियों की तरफ से तुम्हारी जान को खतरा होगा। 

नबीहा ने कहा - हाँ, मैं ऐसा ही करुँगी। 

तब मैंने उसके माथे पर एक चुंबन लिया था। उसके सिर एवं पीठ पर, प्यार से हाथ फेरा था और फिर घर से निकला था। 

तब नबीहा की आँखों में आँसू थे। मैंने अपना चेहरा अंधेरे की तरफ करके अपने आँसूं, उससे छिपा लिए थे। 

अपनी भेड़ों के साथ डेरे पर इंतजार कर रहे युवक से, वापिस पहुँच कर मैंने, पूरी पारदर्शिता के साथ, सभी बातें बताई थी। 

अंत में, मैंने कहा था कि -

मेरा, अपने अब्बू के साथ जाकर सरेंडर करना ज्यादा उचित होगा। तुम या तुम्हारे पिता के साथ जाकर ऐसा करना, पुलिस का तुम लोगों पर शक पैदा कर सकता है, जिससे अकारण ही वे तुम लोगों पर, सख्ती कर सकते हैं। 

मैं अपने अब्बू से कहूँगा कि उनके द्वारा पकड़वाने से उन्हें,  मुझ पर की इनामी राशि मिलेगी वह, वे तुम्हारे परिवार को दे दें। 

युवक हँसा था, उसने कहा - 

दोस्त, तुम हमें पहचान नहीं पाये हो। हमें इनाम का लालच होता तो हम बहुत पहले ही, तुम्हारी जानकारी पुलिस को दे चुके होते। हमें तो तुम्हारे लिए सब करते हुए, ख़ुशी इस बात की है कि हम, एक भटके लड़के को सही मार्ग पर, आने में सहायक हुए हैं। 

गुज्जर युवक एवं उसके परिवार की राष्ट्र निष्ठा, मुझे प्रभावित कर रही थी। अपने आस पास के लोगों में ऐसी निष्ठा मैंने नहीं देखी थी। मैं अनुभव कर सका कि इन्हीं तरह के लोगों के होने से यह विशाल राष्ट्र अखंड है और विकास की राह पर चल पा रहा है। 


(क्रमशः)

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

27-08-2020


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