एपिसोड VI - प्रायश्चित - I
इस तरह इस कॉलेज में मेरा प्रवेश लेना, मेरे शर्मनाक अपराध के प्रायश्चित रूप में पहला काम था।
फिर कॉलेज आरंभ हुए थे सब चीजें एवं साथी यहाँ नये थे। मगर बाल्यकाल से सहपाठी रही वैतरणी, यहाँ भी मेरे साथ थी। ऐसा होते हुए भी और सहपाठियों के सामने ना तो वैतरणी और ना ही मैं, अपने इस दीर्घकालीन परिचय का प्रदर्शन नहीं करते थे।
हम दोनों के अपने अलग फ्रेंड्स थे। क्लासेज शुरू हुए दो तीन दिन हुए थे। एक दिन, वह लाइब्रेरी में अकेली थी, तब मैंने उसके पास जाकर फुसफुसाते हुए उसे ग्राउंड में आने को कहा। वह जिज्ञासा साथ लिए कुछ मिनट बाद आ गई।
मैंने कहा - वैतरणी, तुम्हारा मोबाइल नंबर दो।
मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब उसने बताया कि - मैं अभी मोबाइल नहीं रखती हूँ।
मैंने पूछा - फिर तुम्हें कोई मेसेज करना हो तो जरिया क्या हो ?
उसने कहा - मैं, तुम्हें फेसबुक पर ऐड कर सकती हूँ। मैसेंजर पर यह किया जा सकेगा।
उसने लैपटॉप खोलते हुए फेसबुक से मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट सेंड किया। यहाँ भी यह देख मुझे अचरज हुआ कि उसकी आईडी वैतरणी के नाम ना होकर, तरुणी नाम से बनाई गई थी।
मैंने पूछा - तरुणी, कौन है।
वैतरणी ने उत्तर दिया - मुझे घर में, इसी नाम से बुलाया जाता है। मुझे सरलता से कोई खोज न सके अतः वैतरणी नाम से आईडी नहीं बनाई है क्यूँकि निराला सा यह, सिर्फ मेरा नाम है।
उसकी हर बात में ऐसी सावधानी, अनुकरणीय थी। मुझे फिर अपराध बोध हुआ कि मैंने अपने पर, उसके विश्वास का गलत प्रयोग किया था। मैं, अपना वह निकृष्ट काम हमेशा के लिए भूल जाना चाहता था मगर वह मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था।
अपने दिमाग को सप्रयास नियंत्रित कर, वैतरणी को ग्राउंड में बुलाने के अपने अभिप्राय पर आते हुए मैंने कहा - वैतरणी, मुझे लगता है कि जीवन भर कोई तुम्हारी तरह पढ़ने बस से, खुश नहीं रह सकता। अगर मेरी मानो तो मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।
मेरी इस बात पर वैतरणी की आँखों में जो भाव दिखे वह साफतौर पर संदेह के भाव थे जैसे कि वह सोच रही हो कि मैं अब उसके जीवन में, कौनसी नई मुसीबत खड़ी करने वाला हूँ।
मैंने उसे दिलासा देने के लिए कहा - वैतरणी, मैं तुम्हारे हित की सोच रहा हूँ। वैतरणी ने तब कहा - कहो, क्या कहना चाहते हो ?
मैं - वैतरणी, मैं चाहता हूँ तुम स्पोर्ट्स में आओ, तुम्हारी आगे के जीवन में उससे फिटनेस सुनिश्चित हो सकेगी। मैं चाहता हूँ तुम टेनिस खेलो।
मैंने कहा - वैतरणी, तुम्हारा मोबाइल नंबर दो।
मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब उसने बताया कि - मैं अभी मोबाइल नहीं रखती हूँ।
मैंने पूछा - फिर तुम्हें कोई मेसेज करना हो तो जरिया क्या हो ?
उसने कहा - मैं, तुम्हें फेसबुक पर ऐड कर सकती हूँ। मैसेंजर पर यह किया जा सकेगा।
उसने लैपटॉप खोलते हुए फेसबुक से मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट सेंड किया। यहाँ भी यह देख मुझे अचरज हुआ कि उसकी आईडी वैतरणी के नाम ना होकर, तरुणी नाम से बनाई गई थी।
मैंने पूछा - तरुणी, कौन है।
वैतरणी ने उत्तर दिया - मुझे घर में, इसी नाम से बुलाया जाता है। मुझे सरलता से कोई खोज न सके अतः वैतरणी नाम से आईडी नहीं बनाई है क्यूँकि निराला सा यह, सिर्फ मेरा नाम है।
उसकी हर बात में ऐसी सावधानी, अनुकरणीय थी। मुझे फिर अपराध बोध हुआ कि मैंने अपने पर, उसके विश्वास का गलत प्रयोग किया था। मैं, अपना वह निकृष्ट काम हमेशा के लिए भूल जाना चाहता था मगर वह मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था।
अपने दिमाग को सप्रयास नियंत्रित कर, वैतरणी को ग्राउंड में बुलाने के अपने अभिप्राय पर आते हुए मैंने कहा - वैतरणी, मुझे लगता है कि जीवन भर कोई तुम्हारी तरह पढ़ने बस से, खुश नहीं रह सकता। अगर मेरी मानो तो मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।
मेरी इस बात पर वैतरणी की आँखों में जो भाव दिखे वह साफतौर पर संदेह के भाव थे जैसे कि वह सोच रही हो कि मैं अब उसके जीवन में, कौनसी नई मुसीबत खड़ी करने वाला हूँ।
मैंने उसे दिलासा देने के लिए कहा - वैतरणी, मैं तुम्हारे हित की सोच रहा हूँ। वैतरणी ने तब कहा - कहो, क्या कहना चाहते हो ?
मैं - वैतरणी, मैं चाहता हूँ तुम स्पोर्ट्स में आओ, तुम्हारी आगे के जीवन में उससे फिटनेस सुनिश्चित हो सकेगी। मैं चाहता हूँ तुम टेनिस खेलो।
वैतरणी - मुझे रैकेट पकड़ना तक नहीं आता, मुझे सिखाएगा कौन और इतना धैर्य किसके पास होगा जो मुझ जैसी, नौसिखिया के साथ समय ख़राब करे।
मैं - यह तुम मुझ पर छोड़ो, मैं टेनिस का बहुत अच्छा प्लेयर हूँ, शायद मेरा स्कूल चैंपियन होना तुम जानती होगी। आरंभिक दिनों में, मैं तुम्हें ऑवरली बेसिस पर कोर्ट बुक करते हुए, इतना प्रशिक्षित करूँगा कि कुछ दिनों बाद, कॉलेज में तुम्हें साथ खेलने वाले मिल सकें और तुम्हारा खेल निखर सके।
मैं - यह तुम मुझ पर छोड़ो, मैं टेनिस का बहुत अच्छा प्लेयर हूँ, शायद मेरा स्कूल चैंपियन होना तुम जानती होगी। आरंभिक दिनों में, मैं तुम्हें ऑवरली बेसिस पर कोर्ट बुक करते हुए, इतना प्रशिक्षित करूँगा कि कुछ दिनों बाद, कॉलेज में तुम्हें साथ खेलने वाले मिल सकें और तुम्हारा खेल निखर सके।
बुराई की जानकारी से बुराई में लिप्तता
हमारे दो मित्र के बीच हमसे, समानांतर कुछ और चल रहा था।
वॉटरफॉल की पिकनिक पर मेरी छेड़ी गई चर्चा के, मेरे अभिप्राय में पवित्रता नहीं थी। कुप्रभाव की जद में उस समय मैं वैतरणी को लेना चाहता था मगर उस चर्चा का बुरा असर अभिनव और रिया पर अधिक पड़ा था।
रिया ने मुझसे कोई बात नहीं की लेकिन उस पर, मेरे मोबाइल पर देखी वीडियो क्लिप का ख़राब असर ऐसा हुआ था। वह अपने नेट सर्फिंग में सर्च कर-कर के अश्लील साहित्य एवं वीडियो, सबसे छुपा कर पढ़ने-देखने लगी थी। इनके दुष्प्रभाव से उसमें जो अनुभूतियों जागृत होतीं वह उन्हें अभिनव से शेयर करती।
रिया ने मुझसे कोई बात नहीं की लेकिन उस पर, मेरे मोबाइल पर देखी वीडियो क्लिप का ख़राब असर ऐसा हुआ था। वह अपने नेट सर्फिंग में सर्च कर-कर के अश्लील साहित्य एवं वीडियो, सबसे छुपा कर पढ़ने-देखने लगी थी। इनके दुष्प्रभाव से उसमें जो अनुभूतियों जागृत होतीं वह उन्हें अभिनव से शेयर करती।
ऐसे में स्कूल में ही एकांत ढूँढ अभिनव एवं रिया, एक दूसरे के तन-बदन से चिपटा-चिपटी करते। नतीजा यह हुआ कि पढ़ने से उनका ध्यान उचट गया। और जब बाकि के स्टूडेंट्स परीक्षा में अधिकतम अंक प्राप्ति की कोशिशों में जुटे थे, तब अभिनव एवं रिया एक दूसरे को अंक में समाने के उपाय ढूँढा करते।
ऐसे में बारहवीं के साथ ही आईआईटी जेईई, दोनों में अभिनव एवं रिया नतीजे, परिवार की आशा एवं अपेक्षा से अत्यंत निराशाजनक आये।
दोनों ही अति धनवान परिवार के थे। अतः दोनों के चाहे जाने पर उनके पेरेंट्स ने सुदूर दक्षिण के एक महँगे कॉलेज में दोनों को प्रवेश दिला दिया। यह उम्र का खतरनाक पड़ाव होता है। उस कॉलेज के खुले वातावरण में दोनों ही सारे किस्म के ऐब में पड़ गए।
स्मोक-ड्रिंक्स और पब में धींगा मस्ती, दोनों के दैनिक दिनचर्या के अंग हो गए। उन्हें वहाँ के ड्रग माफिया ने अपने गिरफ्त में ले लिया। दोनों ही विभिन्न तरह के ड्रग्स के प्रभाव में रहने लगे। ऐसे ड्रग्स के कुप्रभाव में ही उनकी कच्ची उम्र में, उनमें जो नहीं होना चाहिए था वह भी हो गया। दोनों के बीच अक्सर शारीरिक संबंध भी होने लगे।
एक छुट्टी के दिन अभिनव, रिया को साथ लेकर अपनी कार में, लॉन्ग ड्राइव पर निकला। दोनों स्मोकिंग के जरिये ड्रग्स के नशे में, आगे की सीट पर ही एक दूसरे के शरीर से छेड़छाड़ करते हुए शहर से बाहर के मार्ग पर बढ़ रहे थे।
स्मोक-ड्रिंक्स और पब में धींगा मस्ती, दोनों के दैनिक दिनचर्या के अंग हो गए। उन्हें वहाँ के ड्रग माफिया ने अपने गिरफ्त में ले लिया। दोनों ही विभिन्न तरह के ड्रग्स के प्रभाव में रहने लगे। ऐसे ड्रग्स के कुप्रभाव में ही उनकी कच्ची उम्र में, उनमें जो नहीं होना चाहिए था वह भी हो गया। दोनों के बीच अक्सर शारीरिक संबंध भी होने लगे।
एक छुट्टी के दिन अभिनव, रिया को साथ लेकर अपनी कार में, लॉन्ग ड्राइव पर निकला। दोनों स्मोकिंग के जरिये ड्रग्स के नशे में, आगे की सीट पर ही एक दूसरे के शरीर से छेड़छाड़ करते हुए शहर से बाहर के मार्ग पर बढ़ रहे थे।
तब अभिनव का कार पर से नियंत्रण नहीं रह गया। तेज गति में चलती उनकी कार, साइड में चल रही, एक बूढी महिला के ऊपर चढ़ गई। महिला ने स्पॉट पर ही दम तोड़ दिया। कार आगे जाकर पलट गई, उसी समय कार का गेट खुल जाने से रिया कार से बाहर जा गिरी।
अभिनव के एयर बेग खुल जाने से उसे ज्यादा चोट नहीं आई, जबकि रिया के बायें पाँव में, कंपाउंड फ्रैक्चर होने से उसे, ऑपरेट करते हुए रॉड डलवानी पड़ी। इस दुर्घटना से रिया को जीवन भर के लिए, उसकी चाल में लंगड़ाहट का अंदेशा हो गया।
अभिनव के एयर बेग खुल जाने से उसे ज्यादा चोट नहीं आई, जबकि रिया के बायें पाँव में, कंपाउंड फ्रैक्चर होने से उसे, ऑपरेट करते हुए रॉड डलवानी पड़ी। इस दुर्घटना से रिया को जीवन भर के लिए, उसकी चाल में लंगड़ाहट का अंदेशा हो गया।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
15-08-2020
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