Thursday, August 27, 2020

गद्दार .. 4. सपना जारी

 गद्दार 

4. सपना जारी 

 

हरि प्रसाद एवं अपने जेठ की पूरी बातें सुनने के बाद, छोटी बहू अपना घूँघट बड़ा करते हुए कहती है - 

यदि हम यहाँ से पलायन की कोशिश करें तब भी, हम लुट जाने से बचने या लाज बचा पाने में सफल हो सकेंगे, यह संभावना कम ही लगती है। इस रियासत से निकलने के लिए हमें लंबा रास्ता तय करना होगा और हमें, आततायी सारे रास्ते अत्याचार करने को मौजूद मिलेंगे। 

हरि प्रसाद बोले - 

बहू सही कह रही है। यह विकल्प कठिन है। अब बचे विकल्प में हम यहीं रहते हैं तो हिंदू तभी बने रह सकते हैं जब कि इसकी कीमत, अपनी बच्चियों का उठा ले जाना, स्वीकार करके अदा करें। और, यदि हम यह नहीं कर सकते हैं तो हमें, इस्लाम स्वीकार करना होगा। 

इस पर छोटा बेटा बोला - 

ताऊ, अपनी दुलारियों की उठा लिये जाने वाली दुर्दशा तो हम सहन नहीं कर सकेंगे। 

अब छोटे भाई ने कहा - 

मुझे तो यह भी अजीब लगता है कि सुल्तान और उसके आततायियों से अपनी बेटियों को बचाने के लिए, हम हिंदू से मुसलमान हो जायें। फिर मुसलमान में, इनका निकाह कर दें। ऐसी हालत में, हमारी बेटियों को अपहृत कर उनसे, उनका जबरन निकाह करना, या, हमारा मुसलमान बन कर, मुसलमानों में खुद ही इन्हें ब्याह देना, दोनों स्थिति में मुझे कोई अंतर तो नहीं दिखता है। 

तब बड़े बेटे ने अपना विचार यूँ रखा  - अंतर यह है कि बेटियों पर, आततायियों द्वारा की गई जबरदस्ती, हमारे सम्मान एवं स्वाभिमान को आहत करेगी। जबकि हम मुसलमान परिवार में स्वेच्छा से बेटी सौंपेगें तो सम्मान कुछ बच रहेगा। 

यह सुन कर औरतों की रुलाई फूट पड़ी, बड़ी बहू बोलने लगी - ऐसा लगता है हम औरतेँ, अपनी बेटियों को मार कर स्वयं अग्नि कुंड में छलाँग लगा दें। 

हरि प्रसाद बोले - नहीं बहू, ऐसे बच्चों के जीने का अधिकार छीनना या अपना जीवन खो देना, दोनों ही ठीक नहीं हैं। सभी के जीवित रहते हुए ज्यादा उचित विकल्प क्या हो, आज हमें यह तय करना होगा। 

इस पर छोटी बहू ने कहा - ताऊ जी, आप ही तय करें कि अभी हम क्या करें? 

विचार पूर्वक तब हरि प्रसाद बोले - हम कल ही इस्लाम स्वीकार कर लेते हैं। मुसलमान होकर भी हम अपनी बेटियों को, उनमें ब्याहेंगे जो हमारी तरह विवश होकर ही हिंदू से मुसलमान हुए होंगे। 

फिर हम, ऐसे अत्याचारी सुल्तान की सल्तनत के अंत की प्रतीक्षा करेंगे। जब यह सुल्तान नहीं रहेगा तब हम मुसलमान से वापिस हिंदू हो जायेंगे। 

कहकर वे चुप हुए। परिवार के सभी सदस्यों को इस कठिन घड़ी में यही उपाय ठीक लगा। 

अगले ही दिन हरि प्रसाद के परिवार ने दिखावे के लिए, इस्लाम स्वीकार कर लिया। मगर संस्कार से मिले अपने धर्म का छिपे तौर पर वे पालन करते रहे। 

उन्होंने मस्जिद जाना शुरू कर दिया। वह पोतियाँ जो पहले, भजन सीखा और गाया करतीं थीं, उन्होंने मुस्लिम आततायियों से बचने के लिए भजन के साथ ही, कुरान की कुछ आयतें भी कंठस्थ कर लीं। 

हरि प्रसाद यह समाधान करने के बाद, ज्यादा वर्षों जी नहीं सके। सुल्तान के वंशज ने आगे डेढ़ शताब्दी और राज किया। इस बीच, नई पीढ़ियों ने यह विस्मृत कर दिया कि पूर्व में वे हिंदू थे। 

कहते हैं ना झूठ हजार बार बोला जाए तो सच लगने लगता है। ऐसे ही लाचारी में दिखावे को ग्रहण किया गया इस्लाम, हरि प्रसाद के वंश का सच बन गया। और जब, उस अत्याचारी सल्तनत का अंत हो गया तब भी कश्मीर की बाद की (हरि प्रसाद जैसे परिवारों की) पीढ़ियों का भ्रम, सच में ही मुसलमान होना हो गया। 

चट्टान पर सोते हुए ही मैंने तब, बेचैनी से करवट ली थी। करवट बदलने पर भी मेरा सपना जारी रहा था। मेरी करवट बदलने के साथ ही, सपने में, समय ने छह शताब्दियों की करवट ले ली। 

हरि प्रसाद के परिवार ने तो घाटी से पलायन का विकल्प नहीं चुना था, किंतु उनके समकालीन बहुत से हिंदू परिवारों ने धर्म परिवर्तन न करके, कश्मीर से पलायन किया था। उनमें से कुछ आततायी और दुर्गम रास्ते की कठिनाइयों से बच सके थे। ये परिवार दूसरी रियासतों में जा बसे थे।

सुल्तानी सल्तनत और भारत से मुगलों के साम्राज्य के पराभव के बाद, ऐसे परिवारों की बीसवीं से पच्चीसवीं पीढियाँ, कश्मीर वापिस लौट आईं थीं। 

भारत में अंग्रेजों के शासन के समय, कश्मीर में पंजाबी तथा डोगरा राजाओं का राज रहा। तब तक भारत से अधिकांश आक्रमणकारियों की पुश्तें, भारत को लूटकर लौट चुकीं थीं। 

यह भी हुआ कि समय के साथ, आक्रमणकारियों की जोर जबरदस्ती में, हिंदू से मुसलमान होने को विवश हुए परिवारों की बाद की पुश्तें, अपना मूल रूप से हिंदू होना विस्मृत कर चुकीं थीं।

अंग्रेजों से स्वतंत्र होते हुए 1947 में, भारत का एक हिस्सा, पाकिस्तान बना था। इसमें बसने वाले भी वही लोग थे जो पहले भारतीय ही पहचान रखते थे। पाकिस्तान नाम का देश बन जाने से यही लोग भारत से ही, प्रतिस्पर्धा में लग गए। विकास और शिक्षा में पिछड़ कर भारत से शत्रुता रखने लगे। 

खुद में बदहाल, जनता का ध्यान भटकाने के लिए वहाँ के असफल शासक और सेना के तानाशाह लोग भारत विरोध की सियासत करने लगे थे। ताकत से जीत नहीं सकने की खीझ में, यह लोग कश्मीर के नागरिकों को, मजहब के नाम पर उकसाने लगे थे। ऐसे लोगों ने कश्मीर में, युवकों को बरगलाने का काम किया। जो लड़के इनके बरगलावे में आतंकवादी बने वे, भारत के सुरक्षाबलों से जोर आजमाइश करने लगे। 

ऐसे अमन खत्म करने वालों ने, इस संघर्ष को कश्मीर की आज़ादी की लड़ाई बताकर जनता को भ्रमित किया। पाकिस्तान के साम्राज्य विस्तारवादी ख्यालों के लोगों के द्वारा, कश्मीर घाटी को पाकिस्तान में मिलाने की अपनी महत्वाकांक्षा के तहत, घाटी के मुसलमानों को, हिंदूओँ (पंडित) के विरुद्ध उकसाया जा रहा था।  

विडंबना यह थी कि मूल रूप से हिंदू होना विस्मृत कर, परिवर्तित मुसलमान, उन लोगों पर अत्याचार पर उतारू हुए, जो सुल्तानी एवं मुगल हुकूमत के अत्याचारों क्र चलते हुए भी हिंदू ही बने रहे थे। 

यह तारीख 19 जनवरी 1990 थी जब, कश्मीरी मुसलमान के, कश्मीरी हिंदुओं पर अत्याचार चरम पर पहुँचे थे। 

विडंबना यह भी थी कि छह सदियों में दूसरी बार कश्मीरी मूल के हिंदू पलायन को विवश हुए थे। 

सबसे बड़ी विडंबना यह थी कि जिन परिस्थितियों में विवश होकर जो हिंदू, मुस्लिम बने थे वे परिवर्तित मुस्लिम भी, वही परिस्थिति अब के हिंदू पर उत्पन्न कर रहे थे। अर्थात उनके मुसलमान बनने को इंकार करने पर उन्हें लूट रहे थे। उनका घर जला रहे थे। उनकी बहन-बेटियों पर बलात्कार और उनकी हत्या कर रहे थे। 

क्रिया की प्रतिक्रिया में, कश्मीर का अमन चैन नष्ट हो गया था। भारत की सरकार अब मुगल सरकार तो थी नहीं जो, कौमी अत्याचार को पूर्व की भाँति बढ़ावा देती। नतीजा यह हुआ कि सरकार ने आतंक पर नियंत्रण करने के लिए, भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात कर दिया। 

जनता अब भी, अशिक्षित एवं दकियानूसी थी। इस्लाम को, सही अर्थ में जानती नहीं थी। जैसा मतलब परस्त भड़काने वाले लोग इस्लाम का गलत अर्थ इन्हे बताते, जनता उसे ही इस्लाम की शिक्षा मान लेती थी।  

कश्मीर में बाहरी दखल का खात्मा कर अमन कायम करने के इरादे से, भारतीय सरकार द्वारा तैनात सैन्य बल पर, भडकावों से भ्रमित लोग, पत्थर उठाने लगे। इस सब से फैली अशांति में, पर्यटकों ने कश्मीर आना बंद कर दिया। कश्मीर को पर्यटकों से मिलने वाली कमाई से हाथ धोना पड़ा।  

मैं, ऐसे हालातों में अब से बीस वर्ष पूर्व पैदा हुआ था। 

किसी का बीस वर्ष की छोटी उम्र में अपने भले- बुरे की पहचान कर पाना संभव नहीं होता है। ऐसे में जो भ्राँति पाकिस्तान और कश्मीर के सत्ता सुख के लोलुप राजनेताओं ने फैलाई उसके दुष्प्रभाव में, मैं भी आ गया। 

विभिन्न जघन्य कृत्य कर भारत से भागकर, भारत के कुछ गद्दार, पाकिस्तान में बस गए थे। इन भारत के अपराधियों को, पाकिस्तानी सरकार एवं सेना ने भारत में डिस्टर्बेंस पैदा करने के इरादे से आतंकवादी संगठन बनाने में मदद की। मैंने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में जाकर, इन्हीं संगठनों द्वारा दी जाने वाली आतंक की ट्रेनिंग ली। 


(क्रमशः)

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

27-08-2020


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