Thursday, August 27, 2020

गद्दार... 5. राष्ट्रनिष्ठा

गद्दार...  

5. राष्ट्रनिष्ठा 


मेरा देखा जा रहा सपना अब अंतिम चरण में था। अब मैं देख रहा था कि मैं खुद हरि प्रसाद की इक्तीसवीं पीढ़ी का वंशज था। 

यह देखते हुए, मुझे बीती ज़िंदगी में, अपने सोच और करतूतों पर अत्यंत क्षोभ हुआ। मेरे तन बदन में आग सी लग गई। मैं नींद में ही हाथ पाँव पटकने लगा था। फिर मैंने होश खो दिया था। 

मुझे जब होश आया तो मैं, एक कच्चे घर में, फर्श पर बिछी चटाई पर लेटा हुआ था। मेरे शरीर में हुई हरकत ने वहाँ मौजूद लोगों का ध्यान आकृष्ट किया था। 

वे तीन लोग थे, एक नवयुवक मेरे बराबर का एवं बाकी दो उसके माँ और बाप प्रतीत हो रहे थे।

मुझे जागते देख कर उनमें से महिला से पूछा - बेटा, अब कैसा महसूस कर रहे हो ?

मैंने कहा - शरीर में बहुत पीड़ा हो रही है एवं कमजोरी लग रही है। 

तब उन्होंने बड़ी सी प्याली में, भेड़ के दूध से बनी चाय पीने को दी। 

मैं जब चुस्कियां लेते हुए चाय पी रहा था तब नवयुवक ने बताया - हम गुज्जर, बकरवाल लोग हैं। कल जंगल में, मैं भेड़ चरा रहा था तब मैंने एक चट्टान पर नींद में तुम्हारा हाथ पाँव पटकना देखा था। 

ऐसा देख जिज्ञासा में, मैं कठिनाई से चट्टान पर चढ़ा था। तुम अर्ध चेतना में अस्पष्ट रूप से कुछ चिल्ला रहे थे। साथ ही अपने हाथ पाँव पटक रहे थे। मैंने, छूकर देखा तो तुम्हारा शरीर बहुत गर्म हो रहा था। तुम्हारे शरीर पर कई घाव एवं रगड़े जाने के निशान थे। मैंने तुम्हें जगाने की कोशिश की थी, तुम आँख खोल और मींचते तो रहे थे मगर तुम होश में नहीं थे। 

तब भेड़ों के साथ लौटते हुए, मुश्किल से तुम्हें टाँग कर मैंने, अपने इस घर में लाया था। मेरी अम्मा, कल से तुम्हारी देखरेख कर रही है। तुम्हारा, बुखार-ताप मिटाने के लिए काढ़े बना बना कर पिलाती रही है, मेरे साथ मिलकर उसने, तुम्हारे गंदे हुए, कपड़े बदलें हैं। गर्म जल से तुम्हारा शरीर एवं घाव धोये हैं एवं जंगली जड़ी-बूटियों को पीस कर उन पर लेप लगाये हैं। 

यह सुनकर मैंने, अपने शरीर पर नज़र की तो मैंने पाया कि मेरे कपड़े नवयुवक की तरह किसी गुज्जर जैसे थे। मुझे अब पिछले दिनों की घटनाओं का स्मरण आ गया।

मुझे राहत महसूस हुई कि इस वेश में एवं इन लोगों के बीच में होना, इस समय मेरे लिए सर्वाधिक सुरक्षित है। 

मुझे स्पष्ट अनुभव हो रहा था कि दो दिन पूर्व की रात को हुई घटना के बाद अब मैं, ना सिर्फ सेना के निशाने पर होऊंगा, अपितु मेरे खोज खबर लेने की कोशिश, हमारा आतंकी संगठन भी कर रहा होगा।

मुझे पिछले दिन की नींद में देखा सपना याद आ गया था जो मुझे यथार्थ एवं सच्चा लग रहा था। मुझे, मेरी बाँहों में हुई लड़की की मौत भी याद आई थी। 

वेदनादायी घटना एवं सपने के कारण अब मैं, साथी आतंकियों से पीछा छुड़ाना चाहता था। मेरे इस विचार की भनक उन्हें होते ही, सुरक्षा बल से बढ़कर वे, मेरी जान के दुश्मन हो जाने वाले थे। ऐसे में अपने घर की तरफ मेरा, मुहँ करना मेरी मौत का कारण हो जाना था।

मैं यही सब सोच में डूबा था कि नवयुवक के पिता ने पहली बार मुहँ खोला एवं पूछा - कल से टीवी समाचार में, एक आतंकवादी की तस्वीर दिखाई जा रही है जिसकी तलाश में  भारतीय सुरक्षा बल हैं। वह तस्वीर काफी कुछ, तुम्हारे हुलिये की है। क्या तुम वही आतंकवादी हो?

यह परिवार कल से मेरी देखभाल में रहा है, इनका यह एहसान अनुभव करते हुए मैं झूठ नहीं कह सका, मैंने कहा - आपका अनुमान सही है मैं वही आतंकवादी हूँ।

मेरी साफगोई ने उन्हें चकित किया, उन्होंने सोचते हुए कहा - फिर तो तुम्हें ले जाकर हमें, पुलिस को सौंपना होगा।

मैंने पूछा - आपको, मुझ पर घोषित इनाम की राशि का लोभ है?

उन्होंने जबाब दिया - 

इनाम की राशि मिलेगी यह भी अच्छा है। मगर उससे ज्यादा एक गद्दार को, पुलिस के हवाले करके अपना राष्ट्र के प्रति दायित्व पूरा करने की ख़ुशी ज्यादा होगी। तुम वह नीच काम करते हो जिसकी वजह से, घाटी की शांति खत्म हुई है। तुम्हारे (आतंकवादियों) द्वारा कर रखे खूनखराबे से यहाँ विकास अवरोधित हुआ है। यहाँ पर्यटक आने बंद होने से घाटी में जो कमाई आती थी वह नहीं आ रही है। घाटी की अभी हुई बदहाली की वजह तुम जैसे गद्दार हैं। तुम्हारी गद्दारी, हमारे दुश्मन देश के ख़राब मकसद को मदद करती है। 

मैंने कहा - आप सही कह रहे हैं। आप चाहें तो मुझे पुलिस के हवाले कर दीजिये। लेकिन मेरा अनुरोध है कि उसके पहले, मेरी सच्चाई जरूर सुन लीजिये। 

अब तक युवक और उसकी अम्मा भी पास गए थे। और हम दोनों में हो रही बातों को सुनने लगे थे। 

अधीर होकर अम्मा ने कहा- बताओ, क्या कहना चाहते हो? 

मैंने बताना शुरू किया - 

चच्चा ने मुझ पर जो आरोप लगाये हैं, वह सब दो दिन पूर्व तक मेरा सच था। मैं पड़ोसी मुल्क एवं उसके दुष्ट लोगों के उकसावे वाली बातों से दुष्प्रभावित, बहुत बुरा आदमी बन रहा था। 

मगर परसों रात, मेरे कारण से जब एक निर्दोष लड़की ने मेरी बाँहों में दम तोड़ा और मौत जिस तरह एक युवा लड़की को मेरी बाँहों से उठा ले गई, हृदय दहला देने वाली उस  वारदात ने मेरा ह्रदय द्रवित कर दिया। 

उसकी मौत मेरे जीवन के लिए टर्निग पॉइंट है। मारी गई उस लड़की की अभी पूरी ज़िंदगी, जी जानी बाकी थी। इस अहसास ने मुझे बहुत पीड़ा दी है। 

शायद आप यह जानते हैं कि आपके बेटे को जब मिला हूँ, मेरे पास तब कोई हथियार और गोला बारूद नहीं था। मैंने जान बचा कर भागते हुए, यह सभी कुछ नदी में फेंक दिया है। यहाँ तक की मैंने, अपने मोबाइल से वह सिम निकालकर नष्ट कर दी है जिससे मेरे साथी रहे आतंकवादी, मुझसे संपर्क कर सकते थे।  

मैं स्वयं अब इन सबसे छुटकारा पाना चाहता हूँ और अच्छा एवं देश भक्त नागरिक होना चाहता हूँ। यह होना ही, मेरे में बदलाव प्रेरित कर रहा था। अगर आप मेरा विश्वास कर  पा रहे हो तो एक और बात आपसे बताना चाहता हूँ। 

अब युवक बोला - 

तुम्हारी कही बात सच है। जब मुझे, चट्टान पर बुखार में तपते तुम, अचेत मिले तब तुम्हारे शरीर पर गोली का घाव तो था। मगर ऐसे कोई हथियार आदि नहीं थे।  तुम्हारे मोबाइल में सिम नहीं थी। तुम्हें लगी गोली से तुम्हारा आतंकवादी होना संदिग्ध था। मगर अन्य बात तुम्हारे आतंकवादी होने जैसी नहीं थी। 

उस समय अगर मुझे तुम आतंकवादी लगते तो मैं, तुम्हें अपने घर नहीं लाता। तुम्हें पुलिस थाना पहुँचाता। तुम्हारी कही बातों पर, मैं विश्वास कर पा रहा हूँ अतः तुम बताओ, जो भी और बात, तुम बताना चाहते हो। 

युवक के पिता तब असमंजस में दिखाई पड़ रहे थे। फिर भी युवक एवं उसकी अम्मा को अपने प्रति नरम देख, मैंने फिर कहना शुरू किया - 

वस्तुतः जब तुमने मुझे चट्टान पर पाया उसके पूर्व तक, नींद में, मैं एक सपना देख रहा था। जो यद्यपि था तो एक सपना ही, लेकिन मुझे लग रही मेरी वास्तविकता थी। मुझे लगता है, यह सब सपने के माध्यम से दिखाने में, ईश्वर की कोई भूमिका है। 

ऐसा कहते हुए मैंने कुछ पल की चुप्पी ली, फिर सविस्तार अपने देखे सपने की एक एक बात उन्हें सुना दी। 

अंत में मैंने कहा - 

इस सपने से मुझे ज्ञात हो सका है कि मैं किस हिंदू परिवार का वंशज हूँ। अब ना तो मैं, आतंकवादी और ना ही मुसलमान रहना चाहता हूँ। मैं उस धर्म का अनुयायी हो जाना चाहता हूँ जिसे, छह शताब्दी पूर्व तक मेरे पूर्वज मानते रहे थे। 

तीनों लोगों ने मेरी एक एक बात ध्यान से सुनी थी। अब वे विचार करने वाली मुद्रा में थे। 

उन्हें विचार में डूबा देख मैंने ही पुनः आगे कहा - 

अब यह आप पर है कि आप, मुझे अभी पुलिस के हवाले करते हो या ऐसा करने के पूर्व मुझे कुछ समय दे सकते हो?

चच्चा ने इस पर पूछा - 

कुछ समय से तुम्हारा, आशय क्या है? क्यों, यह मोहलत तुम लेना चाहते हो?

मैंने कहा - 

मैं अपने बारे में नई जानी गई, अपनी यह सच्चाई, अपने परिवार एवं अपनी प्रियतमा नबीहा से कहना चाहता हूँ। फिर स्वतः ही सेना के समक्ष आत्मसमर्पण करना चाहता हूँ। मैं, दुश्मन देश के आतंकवादी संगठन की खुफिया जानकारी, उन्हें देकर वादा माफ़ गवाह होना चाहता हूँ। ऐसे अपने अपराध की (कम) सजा भुगत कर मैं, देश की मुख्यधारा से जुड़ कर, शेष जीवन जीना चाहता हूँ। 

अब युवक के पिता ने हँसते हुए कहा - 

पुलिस को सौंप कर जिस सही राह पर तुम्हें ले आने की अपेक्षा मैं कर रहा था, उस राह पर तुम स्वयं आना चाह रहे हो, यह ख़ुशी की बात है। परंतु पुलिस को सौंपने से तुम पर घोषित इनाम, जो हमें मिलना चाहिए उसका तो हमें नुकसान हो जाने वाला है। 

उनके यूँ हँसने से मुझे हौसला मिला मैंने कहा - 

चच्चा, मेरे परिवार एवं माशूका से मिल लिए जाने के बाद मैं, यह अवसर आपको ही दूँगा। तब आप ही मुझे पुलिस के हवाले करना एवं मुझ पर घोषित राशि प्राप्त कर लेना। 

मेरी इस बात पर अम्मा ने कठोरता से कहा - 

हम गुज्जर लोग दौलत के यूँ भूखे नहीं हैं। हम इस माटी, इस मातृभूमि से प्रेम करते हैं, इसमें हम जीवन जीते और मरते हैं। हम मातृभूमि के प्रति निष्ठावान जाति के हैं। तुम जैसी गद्दारी ना हम करते हैं ना ही किसी को करते देखना पसंद करते हैं। तुम्हारी बातों का विश्वास करके, हम तुम्हारा चाहा गया मौका देंगे।  

फिर नरमाई से आगे बोलीं - 

बस एक काम करना, तुम मेरे बेटे जैसे ही हो। एक माँ को झूठी बात कह कर दगा नहीं दे जाना। धरती के स्वर्ग हमारी धरती को अपनी गद्दारी वाली करतूतों से, और रक्तरंजित ना करना। 

अब मैंने अम्मा के चरण छूते हुए कहा - 

आपके, मुझे बेटा कहने के पूर्व ही, आपके द्वारा की गई देखभाल से मैं, आप में अपनी माँ ही देख रहा हूँ। अपनी माँ के साथ मैं कोई धोखा नहीं कर सकता। मैं जब अपने धर्म में ही वापसी कर रहा हूँ तब ऐसा दोगला नहीं रहूँगा, जो कहता कुछ और, करता कुछ और है। 

अब चच्चा ने कहा - 

तुम्हारा अभी परिवार से मिलना तुम पर, तीन तरह के खतरे आशंका उत्पन्न करेगा। तुम्हारे घर पर सुरक्षा बलों की ख़ुफ़िया नज़र होगी। जिस संगठन को तुम छोड़ना चाहते हो वह भी, तुम्हारे घर पर नज़र रखेंगे कि तुम्हें खत्म कर सकें। तुम्हारे मारे जाने से उनकी गुप्त साजिशें, भारतीय सेना तक नहीं पहुँच सकेंगी। तुम इश्तहारी आतंकवादी भी हो गए हो, इस कारण आम आदमी भी मुखबिरी करके इनाम पाने के लिए तुम्हारी जानकारी, पुलिस तक पहुँचाने को उत्सुक होगा। 

मैंने कहा - यह सब मैं भी समझ रहा हूँ। 

चच्चा ने कहा - 

इन खतरों से दूर रहने के लिए तुम्हें, अपने सभी घाव भरने तक का इंतजार करना होगा। हमारी गुज्जर वाले पहनावे में ही, अपने परिवार से मिलने की कोशिश करना होगा। 

यह तय कर लिये जाने के बाद अगली सुबह उजाला होने के पूर्व ही मैं, जंगल में उसी चट्टान पर रहने के लिए आ गया। ऐसा करना सावधानीवश आवश्यक था। उनके घर में मुझ अजनबी को रहते देख लेने पर, कोई पड़ोसी मुखबिरी कर सकता था। 


(क्रमशः)

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

27-08-2020


No comments:

Post a Comment