Saturday, August 15, 2020

वैतरणी पार .. एपिसोड I

 

वैतरणी पार .. 

एपिसोड I - टॉपर्स इन्कम्प्लीट थ्योरी 

रिया के पैर का ऑपरेशन के बाद करीब एक महीने बाद रिया, शहर वापिस आई थी। सुजाता और मैं, उससे संवेदना प्रकट करने उसके घर पहुँचे थे। ऑन्टी (रिया की मम्मी) हमें, उसके शयनकक्ष में ले गईं थी। रिया, उदास बेड पर लेटी हुई थी। 
हमें देख कर उसने ओंठों पर, फीकी सी मुस्कान लाई थी। 
कैसे हुआ ये सब? - मेरे पूछने पर वह रो पड़ी थी। 
सिसकते हुए उसने मेरे पर अँगुली उठाई और कहा था - टॉपर, यह सब तुम्हारे कारण से हुआ। तुमने, हमें वह मुफ्त की पिकनिक-डिनर, शायद अच्छी भावना से नहीं कराई थी। 
अपना ज्ञान बघारते हुए तुम नहीं जानते थे कि जिन बातों का जानना तुम, बुराई से बचने के लिए जरूरी बता रहे थे। उन्हीं बातों की जानकारी ने पहले, मुझे फिर मेरे कारण अभिनव को तुम्हारी बताई गई बुराइयों में लिप्त कर दिया। 
आज, हम दोनों बहुत कुछ खो देने के बाद तुम्हारी, उस पिकनिक को कोसते हैं। फिर भी हमें खो दिया वह सब हमें वापिस मिलना नहीं है। तुम ही मेरी इस हालत के जिम्मेदार हो। 
यह कहते हुए उसकी सुबकियाँ तो खत्म हो गईं थी मगर उसके आँखों से आँसू झर झर बह रहे थे। 
दुःखद उसकी हालत देख एवं उसके भाव-विचार सुनकर मैं अंदर से हिल गया था। मेरे पास कहने को कुछ नहीं था। सुजाता भी अब मुझे, जिस नज़र से देख रही थी वह मुझे गड़ रही थी। 
मेरे मन में यही प्रश्न उठ रहा था - क्या, अभिनव एवं रिया ने हमारी पिकनिक की चर्चा अपने पेरेंट्स को बताई होगी? 
अगर ऐसा हुआ था तो मैं उनका सामना करने में, स्वयं को योग्य नहीं मान रहा था। 
सुजाता ने, रिया के सिरहाने पर बैठ, स्नेह से उसके आँसू पोंछे थे। रिया कुछ संभली थी। तब, रिया की सेविका ट्रे में बिस्किट-चाय लेकर आई थी। यह देख मेरी कठिनाई बड़ी थी। 
मैं, वहाँ स्वयं को फँसा अनुभव कर रहा था और जल्दी निकल कर, चैन की श्वाँस लेना चाहता था। जबकि चाय आ जाने के कारण कम से कम 15 मिनट, हमें वहाँ और रुकना था। 
मेरी मुसीबत और बढ़ गई, जब पीछे आंटी भी कमरे में दाखिल हुईं। मैं उनसे नज़रें चुरा रहा था। उनके कहने पर मैंने यंत्रवत चाय-बिस्किट ली थी। 
मेरे हावभाव देख सुजाता और रिया भी, निश्चित ही मेरे मन की समझ रहीं थीं। 
तब, मुझे इस विषम स्थिति से बचाने में, सुजाता ने एक अच्छे मित्र की भाँति सहयोग किया था। उसने ऑन्टी की बातों का छोटा-संक्षिप्त जबाब देते हुए, चाय जल्दी खत्म की थी और रिया से फिर किसी दिन आने की बात कहते हुए विदा ली थी।  
इसके कुछ दिन बाद, मेरे साथ टेनिस खेलते हुए वैतरणी ने मुझसे पूछा था - टॉपर, क्या तुम्हें मालूम है अभिनव को ड्रग एडिक्शन हो गया है एवं उसके पेरेंट्स, उसे हॉस्टल से घर वापिस लाकर उसका उपचार करा रहे हैं?  
अपने भाव छिपाते हुए मैंने उससे झूठ कहा कि - ऐसा कुछ सुना तो है, मगर ज्यादा डिटेल नहीं मालूम हैं, मुझे। 
वैतरणी - सुजाता एवं मैं आज शाम, अभिनव से मिलने उसके घर जा रहे हैं, क्या तुम साथ चल सकोगे?
मैंने फिर झूठ कहा - आज शाम मुझे पापा से कुछ आवश्यक बात करनी है। मैं किसी और दिन जाकर अभिनव से मिल लूँगा।
वैतरणी ने कहा - कोई बात नहीं। 
फिर उसने, अपना ध्यान खेल पर केंद्रित कर लिया था।     
उस शाम वैतरणी एवं सुजाता, अभिनव से संवेदना-सौहार्द्र के प्रयोजन से भेंट करने गईं। 
अभिनव ड्रग्स से छुटकारे के लिए दवायें लेते हुए, तुलनात्मक रूप से बेहतर मानसिक दशा में था। मगर पश्चाताप से भरा होने से उदास था। उसने अपने किये का दोष मुझ पर नहीं लगाया था और वह, महिला की मौत के लिए एवं रिया में आये अंग दोष के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए अत्यंत व्यथित था। 
अभिनव ने यद्यपि मेरा नाम भी नहीं लिया था। 
लेकिन सुजाता ने वहाँ बेबाकी से कहा था - अभिनव, धीरज रखो इंसान में शक्ति होती है। वह हर परिस्थिति में बेहतर करके दिखा सकता है। तुम भी इस सब के बाद शीघ्र सम्हल जाओगे। लेकिन अब से तुम्हें, कसम खाना होगा कि आधे अधूरे तरह के, टॉपर के बच्चों वाले ज्ञान से तुम बच के रहोगे। अभिनव इस बात से अपनी व्यथाओं में भी मुस्कुरा दिया था। 
इसे देख वैतरणी को बोलने का हौंसला मिला, उसने कहा था - सुजाता, मैं उसे "टॉपर्स इन्कम्प्लीट थ्योरी" कहूँगी। टॉपर की कही बातें यूँ तो गलत नहीं थी। गलत सिर्फ उसकी और हमारी अनुभवहीनता थी। 
यही जानकारी यदि हमारे पेरेंट्स से, उनके अनुभव एवं मार्गदर्शन के माध्यम से प्राप्त होती तो बुराई का ऐसा ज्ञान, हमारे भविष्य निर्माण की दृष्टि से निश्चित ही उपयोगी होता।
अभिनव ने वैतरणी से सहमति जताते हुए कहा था - सही कह रही हो तुम वैतरणी, मगर मैं सोचता हूँ अब ठोकर खा गिर जाने के बाद, मुझे सही सबक सीखना है। 
मेरा तो कम बुरा हुआ है लेकिन मेरे कारण ज्यादा बुरा रिया का हुआ है। इसकी जिम्मेदारी मानते हुए, उसके जीवन के लिए हर जरूरी सहारा मुझे बनना है। 
सुजाता इस बात से खुश होती है, कहती है - बिलकुल अभिनव, मुझे आशा है शीघ्र ही तुम और रिया स्वस्थ होकर अपनी स्टडीज फिर शुरू कर सकोगे। 
फिर नाश्ता-चाय के उपरांत सुजाता और वैतरणी जब जाने लगीं तब अभिनव, मानसिक रूप से ज्यादा अच्छी दशा में था। उसने बँगले के बाहर गेट तक आकर, मुस्कुराते हुए उन दोनों को विदा किया था। 
रिया ने जिस तरह सारा दोषारोपण मुझ पर किया था, उस कारण से अभिनव से की, मुलाकात का ना तो मैंने, वैतरणी से कुछ पूछा ना ही उसने मुझे कुछ बताया।  
वास्तव में मुझमें साहस नहीं था कि यदि अभिनव ने भी रिया की तरह ही आरोप मुझ पर डाले हों तो मैं, वैतरणी के मुख से यह सब सुन सकूँ। 
यद्यपि कुछ दिन बाद सुजाता ने जरूर मोबाइल पर आधी अधूरी से बात यह कही थी कि - गलत नहीं मगर वह "टॉपर्स इन्कम्प्लीट थ्योरी" थी जो अपने अधूरे स्वरूप में किसी का कोई भला नहीं कर सकती है। 
सुजाता ने सप्रयास अपनी बात अधूरी ही कही थी। मैंने भी उसे अधिक कुरेद कर ज्यादा जानना नहीं चाहा था। अपितु मैं, स्वयं अपने आप में अभिनव के मनः स्थिति का अनुमान करने लगा। 
मुझे लगा कि यदि अभिनव भी रिया की तरह उनके साथ, जो हादसा हुआ है उसका दोष मुझ पर डालता है तो यह मेरे साथ अन्याय है। 
मैं, वैतरणी का तो दोषी हूँ जिसको, अध्ययन में पीछे छोड़ने के लिए गलत उद्देश्य से, उसके पीछे पड़ा रहा था। मैं अपने को अन्य के प्रति निर्दोष होने का प्रमाण पत्र यह सोच कर देना चाहता था कि मेरी उस दिन दीं गईं जानकारी तो नेट पर किसी को भी सरलता से पता चल सकती हैं। और उसके होने पर कोई स्वयं क्या करता है उसका दोष किसी और का कैसे हो सकता है ?
इस प्रश्न का जबाब पाने के लिए मैं, पिछले कुछ वर्षों के घटना क्रम पर जिनमें स्वयं मैं एक प्रत्यक्ष पात्र रहा और जिनमें अप्रत्यक्ष रूप से मैं चर्चा में रहा उनमें (अनुमान लगाता हुआ) स्वयं खो जाता हूँ। तब पूर्व की बातें मेरे जेहन में पृष्ठ दर पृष्ठ उभरती जाती हैं .. 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
15-08-2020

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