नारी तस्वीर
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प्रश्न है ,पृथ्वी पर समूची नारियों को एक तस्वीर में देखा जाए तो , कैसी बनती है यह तस्वीर ?
सम्मान बचाने के तर्क पर पहले , नारी घर में पर्दों में रखी गई , अब सम्मान के नाम (छल) पर विज्ञापन , फिल्म ,नेट , मीडिया, स्पोर्ट्स (ग्राउंड) और दुकानों में बेपर्दा सजाकर रख दी गई।
नारी को पर्दे में रहने का पक्षधर ना होते हुए निवेदन है , पर्दे में नारी को रखना , उसकी गुलामी के नहीं , बल्कि परिजनों द्वारा उसकी सुरक्षा के उद्देश्य की देन थी। वहीं नारी का अति खुलापन अपनों की नहीं ,उसकी आज़ादी की नहीं , बल्कि परायों आँखों की प्यास और हवस की देन है। कोई पुरुष पोर्न शूट करने जाता है तो अपनी बहन , बेटी या पत्नी को नहीं , किसी परायी नारी को ले जाता है। जबकि एक सलीके की ड्रेस उसे गिफ्ट करने वाला वह अपना होता है , जो उसे जीवन भर निभाने का दायित्व रखता है।
आज देश में यौन शोषण और जबरन रेप से नारी व्यथित है , पीड़िता नारी की व्यथा , परिजनों और बुध्दिजीवी वर्ग को भी व्यथित करती है। पश्चिम में यद्यपि जबरन रेप कम होंगे लेकिन यौन शोषण तो कई गुना ज्यादा है। किन्तु ऐसा ,नारी के विरोधी स्वर न होने से आभासित नहीं होता। नारी शराब ,स्मोक, ड्रग्स , धन और (छल) प्रसिध्दि के वशीभूत इस शोषण को अनुभव नहीं करती है। जबकि उसका खुलेआम और भद्दा प्रदर्शन पूरी दुनिया में होता है। शेष विश्व में यही प्रदर्शन , नारी यौन शोषण में वृद्धि का कारण होता है। उससे भी बड़ी चिंतनीय बात यह होती है , वहाँ भी नारी , ऐसी बनने को प्रगतिशीलता मानने को तैयार हो रही है।
"सार यह है , ऐसा चलने दिया गया तो यौन शोषण की शिकार वह होते रहेगी। एक बदलाव यह दिखेगा कि धन और (छल) प्रसिध्दि की कीमत पर इसमें उसकी ही सहमति हो जाएगी । "
यह नारी तस्वीर , अस्वीकार्य है। पुरुष उसे अति यौनाचार के कीचड़ में धकेल स्वयं वहाँ उससे लिप्तता करता है अतः वह वीभत्स इस तस्वीर में ज्यादा दोषी है। सयुंक्त रूप से यह भद्दी तस्वीर आज के समूचे "मनुष्य की तस्वीर " होती है। जो खुशफहमी में अपने को प्रगतिशील , पढ़ालिखा और सभ्य मानता है। न पुरुष , न ही नारी इसलिए 'समूचा मनुष्य' , इसे चाहे जो कहे वह सभ्य नहीं हो सका है अब तक।
--राजेश जैन
25-03-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman
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प्रश्न है ,पृथ्वी पर समूची नारियों को एक तस्वीर में देखा जाए तो , कैसी बनती है यह तस्वीर ?
सम्मान बचाने के तर्क पर पहले , नारी घर में पर्दों में रखी गई , अब सम्मान के नाम (छल) पर विज्ञापन , फिल्म ,नेट , मीडिया, स्पोर्ट्स (ग्राउंड) और दुकानों में बेपर्दा सजाकर रख दी गई।
नारी को पर्दे में रहने का पक्षधर ना होते हुए निवेदन है , पर्दे में नारी को रखना , उसकी गुलामी के नहीं , बल्कि परिजनों द्वारा उसकी सुरक्षा के उद्देश्य की देन थी। वहीं नारी का अति खुलापन अपनों की नहीं ,उसकी आज़ादी की नहीं , बल्कि परायों आँखों की प्यास और हवस की देन है। कोई पुरुष पोर्न शूट करने जाता है तो अपनी बहन , बेटी या पत्नी को नहीं , किसी परायी नारी को ले जाता है। जबकि एक सलीके की ड्रेस उसे गिफ्ट करने वाला वह अपना होता है , जो उसे जीवन भर निभाने का दायित्व रखता है।
आज देश में यौन शोषण और जबरन रेप से नारी व्यथित है , पीड़िता नारी की व्यथा , परिजनों और बुध्दिजीवी वर्ग को भी व्यथित करती है। पश्चिम में यद्यपि जबरन रेप कम होंगे लेकिन यौन शोषण तो कई गुना ज्यादा है। किन्तु ऐसा ,नारी के विरोधी स्वर न होने से आभासित नहीं होता। नारी शराब ,स्मोक, ड्रग्स , धन और (छल) प्रसिध्दि के वशीभूत इस शोषण को अनुभव नहीं करती है। जबकि उसका खुलेआम और भद्दा प्रदर्शन पूरी दुनिया में होता है। शेष विश्व में यही प्रदर्शन , नारी यौन शोषण में वृद्धि का कारण होता है। उससे भी बड़ी चिंतनीय बात यह होती है , वहाँ भी नारी , ऐसी बनने को प्रगतिशीलता मानने को तैयार हो रही है।
"सार यह है , ऐसा चलने दिया गया तो यौन शोषण की शिकार वह होते रहेगी। एक बदलाव यह दिखेगा कि धन और (छल) प्रसिध्दि की कीमत पर इसमें उसकी ही सहमति हो जाएगी । "
यह नारी तस्वीर , अस्वीकार्य है। पुरुष उसे अति यौनाचार के कीचड़ में धकेल स्वयं वहाँ उससे लिप्तता करता है अतः वह वीभत्स इस तस्वीर में ज्यादा दोषी है। सयुंक्त रूप से यह भद्दी तस्वीर आज के समूचे "मनुष्य की तस्वीर " होती है। जो खुशफहमी में अपने को प्रगतिशील , पढ़ालिखा और सभ्य मानता है। न पुरुष , न ही नारी इसलिए 'समूचा मनुष्य' , इसे चाहे जो कहे वह सभ्य नहीं हो सका है अब तक।
--राजेश जैन
25-03-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman
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