Saturday, March 21, 2015

आरती की डायरी पेज -29

आरती की डायरी पेज -29
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पिछले दिनों हमारे हॉस्टल के माली ने , अपनी पत्नी , को अपने मित्र के साथ अवैध संबंधों में लिप्त देखा तो कुपित होकर अपने दो बच्चों के सामने , दोनों का मर्डर कर दिया। यह चर्चा गर्ल्स के बीच हॉस्टल में बहस बनी रही। आधुनिक दौर की सोच रखने वाली गर्ल्स ने प्रश्न खड़े किये।
1.  माली का मित्र भी विवाहित था क्या वह पत्नी को ऐसे संबंधों में देखता तो पसंद करता ?, यदि नहीं तो वह दूसरे की पत्नी के साथ ऐसे संबंधों में क्यों पड़ा ?
2. क्या वह मित्र ऐसा अपने घर में माली की पत्नी के साथ करता और उसकी पत्नी देखती तो क्या वह अपने पति का मर्डर करती ?
मुझे भी इनके उत्तर चाहिये थे मैंने ये प्रश्न अपनी माँ को मोबाइल पर बातों में पूछे , उन्होंने कहा विचार कर या तुम्हारे पापा से चर्चा कर जल्द ही तुम्हें बताऊँगी।
आज संडे था , पापा का फ़ोन आया उन्होंने उन प्रश्नों पर स्वयं मुझसे बात की। स्पीकर पर उनकी तरफ माँ भी साथ थी। पापा ने जो कहा वैसा मै अपनी डायरी में दर्ज कर रही हूँ। ताकि जब मेरी समझ बढ़ेगी तो अपने अनुसार इन विचारों को परख सकूँ। पापा ने कहा -
आरती बेटे , शरीर को कुछ देर के लिये भूल जायें , तो नारी और पुरुष मनुष्य होने के कारण मन से एक जैसे हैं। अलग अलग पुरुष या नारी के मन में पृष्ठभूमि के अंतर के कारण अलग -अलग विचार और विश्वास चलते हैं। भूल यदि पुरुष से होती हैं तो , भूल नारी भी कर सकती है। मन से चंचल पुरुष होता है तो नारी मन भी चंचल हो सकता है। सार यह है मनो-मस्तिष्क क्षमता दोनों की बराबर होती है।
अब समाज में चलते रिवाजों पर विचार करें। समाज की परंपरा , रिवाज और रस्म उस दौर में बनने शुरू हुए थे , तब मनुष्य पढ़ता -लिखता नहीं था। और उस समय जिसकी शारीरिक शक्ति अधिक होती थी वह विजेता होता था। उसकी चलती थी। पुरुष -पुरुष में शारीरिक बल कम ज्यादा होता था/है , लेकिन नारी शारीरिक शक्ति में पुरुष से कमजोर ही है। इसलिए समाज परंपरायें , पुरुषों की पसंदगी के आधार पर बनी। जिनमें - सहस्त्रों वर्षों से रहने के कारण , नारी ने मान्य किया हुआ था। आज समय , पढ़ने -लिखने का आया है , नारी और पुरुष दोनों पढ़ रहे हैं। इसलिये न्याय और तर्क पर सोचना आरंभ हुआ है।
तुम्हारे हॉस्टल में गर्ल्स के दिमाग में उठते प्रश्न इन्हीं विचारों के द्योतक है। माली की पत्नी और उसका अवैध प्रेमी दोनों की गलती है , लेकिन अवैध संबंध की साक्षी , उस अवैध प्रेमी की पत्नी होती तो शायद वह मर्डर नहीं कर पाती , जो साक्षी होने पर पुरुष (माली) ने किया। नारी का मन अब तक तो पुरुष से अधिक दयावान रहता आया है। किन्तु पुरुष , नारी पर परंपरागत अतिवादी तरीके प्रयोग करता रहा तो वह दिन आ सकता है , जब नारी मन भी कठोर हो जाएगा। प्रश्न अब , ये उठता है कि जिस तरह के पुरुष व्यभिचार को समाज क्षमा करता है , उसी तरह क्षमा नारी के लिए होना चाहिये ? क्योंकि व्यभिचार में पुरुष नारी को ही तो घसीट लेता है।  तर्क तो दोनों को एक व्यवहार ,एक न्याय के पक्ष में व्यवस्था देगा। लेकिन -  नारी -व्यभिचार को भी क्षमा हुई तो समाज मनुष्य का न रह जाएगा ,ऐसी स्वछंदता मनुष्य को जानवर सा बना देगी।
उचित यह होगा , पुरुष अपराध भी समान रूप से अक्षम्य हो , पुरुष अपने में सुधार करे , अपने शिक्षित होने का परिचय दे। पुरुष को दर्पण में अपनी कलुषिततायें स्वयं निहारना चाहिये , नहीं तो नारी को यह दायित्व लेना होगा , जो पुरुष अहं को ठेस का कारण बनेगा।
पापा के शब्दों में लिखते हुए मुझे ,पापा की सुलझी सोच का मुझे एक बार पुनः परिचय मिला।  आज मुझे लगा कि डॉक्टर बनने के बाद भी जीवन में कुछ और भी करना होगा  ,'सामाजिक चेतना के लिए कार्य'।
आरती , 18 सित. 2005
--राजेश जैन
22-03-2015

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