Thursday, March 19, 2015

नीता की डायरी का पहला पन्ना

नीता की डायरी का पहला पन्ना
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"मै सफल नारी पहली बार डायरी लिख रही हूँ
छह वर्ष पहले की बात से शुरुआत कर रही हूँ "
तब शायद सेवेंथ क्लास में रही होऊँगी , तब से आसपास के लड़कों की नज़रें और कुछ शब्द , अजीब लगने लगे थे।यह क्रम, दो तीन साल में बढ़ते गया था ।  समझ कुछ बड़ी तो  , उनका मंतव्य समझ सा आने लगा था । इस बीच परिवर्तन मेरे शरीर में भी होने लगे थे। अजीब , बात यह होने लगी थी, मुझे भी , सभी तो नहीं कुछ लड़कों की हरकतें और नज़रें अच्छी लगने लगी थी।
दो तीन साल और बीते थे अब में ट्वेल्थ में थी। मुझे पहले अच्छे लगे कुछ लड़कों में से, अब कुछ ख़राब भी लगे थे और मैंने उनसे ध्यान हटा लिया था। मैंने अपनी फ्रेंड्स से सुना था वे वैसी ही नज़रों से उन्हें भी देखा करते थे। मुझे समझ आ गया था ,उनकी वह नज़र विशेष मेरे लिए न थी। जो नज़रें उनकी प्यार की बात कहती लगती थीं वे सिर्फ मेरी और न उठकर सभी गर्ल्स के लिए थी। उनको प्यार हुआ होता तो ऐसी किसी एक के प्रति ही होती। ऐसी नज़रें , उनका अभिनय हो गया लगता था।
मुझे पढ़ने में मन लगाना था , आगे मुझे डॉक्टर बनना था। मैं अकेले में कई बार , फालतू उन बातों को सोच कर समय व्यर्थ कर देती थी। बड़ी मुश्किल होती थी ,वापस पढ़ने में ध्यान केंद्रित करने में।
मेरा भाग्य था , मैंने ये बातें , किसी और से नहीं माँ से शेयर करना शुरू किया था। माँ , अनुभवी थीं , उन्होंने बताया इन चक्करों में पड़ कर जीवन में बहुत कुछ खो जाता है। दुर्भाग्य , था मेरे साथ पढ़ने वाली कुछ लड़कियों का , जिन्होंने माँ से नहीं अनुभवहीन लड़कियों से मन की बातें शेयर की थीं। न जाने ,कहाँ से वे बातें सच -झूठ सी लड़कों में फ़ैल गई थीं। इधर -उधर से सुन कर , और चिढ़ाये जाने से उन लड़कियों का ध्यान , क्लास और पढ़ने में नहीं लग पाता था।
मुझे लगता है , माँ , मेरे बारे में गुपचुप रूप से पापा से बातें कर कुछ समझते रहती थी। खैर , माँ के परामर्श काम आये थे। लड़कियाँ और सभी लड़के जो हरकतों और नज़रों के तीर चलाने में उलझे थे , वे रह गये थे और मैं मेडिकल प्रवेश परीक्षा , पास करने में सफल हुई थी। मेरी सभी में तारीफ़ हो रही थी। और मै घर वालों के साथ ख़ुशी मना रही थी।
आज मैं माँ -पापा के साथ नागपुर जा रही हूँ , मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिये।
नीता 25 जुलाई 2005 
-- राजेश जैन
20-03-2015

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