Saturday, March 14, 2015

संक्षिप्त नारी परिधान

संक्षिप्त नारी परिधान
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पारिवारिक पुरुष-नारी टीवी पर 'खतरों के खिलाड़ी' देख रहे थे। एक नारी सदस्य ने प्रश्न उठाया - उसी तरह के खेल एवं स्टंट को करने वाले पुरुष ज्यादा कपड़ों में होते हैं , जबकि नारी के कपड़े छोटे होते हैं क्यों ?
प्रश्न के कारण 
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ओलिंपिक में वॉलीबाल हो , टेनिस हो , धारावाहिक 'खतरों के खिलाड़ी' या सर्कस हो प्रश्न सही लगता है। जिम्नास्टिक या स्वीमिंग गेम में तो परफॉरमेंस पे कपड़ों का भी प्रभाव हो सकता है। लेकिन , नारी परिधानों के छोटे होने का , अन्य जगह क्या कारण हैं ?  
परिवार में यह प्रश्न , क्यों ?
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नारी सदस्य को लगा हो शायद कि इन आकर्षक कपड़ों में लिपटी नारी के आकर्षण में उलझ कर , घर का पुरुष बेटा - क्या , पढ़ने में मन लगा पायेगा ? भाई , पति या पिता - क्या अपने व्यवसायिक कार्य में लग पायेगा ? या पति , गृहस्थी के कुछ कार्य में हाथ बटाएंगा ? परिवार का पुरुष सदस्य ,नारी देह की तस्वीर मन में रख , बाहर की नारी पर ललचाई दृष्टि डालकर क्या अपने जीवन उन्नति के पुरुषार्थ से विमुख नहीं हो जायेगा?
सही उत्तर क्या हैं 
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वैसे तो उत्तर सभी से अपेक्षित है। लेकिन लेखक का उत्तर यहाँ - चर्चा के लिये उल्लेख किया जा रहा है। वास्तव में खेलों के या इस प्रकार के शो के नियम या तरीके पुरुषों के बनाये हुए हैं। अपनी योग्यता प्रदर्शित करने की चाहत रखने वाली नारी ने जाने -अनजाने इस रिवाज को शिरोधार्य किया है।प्रश्न यह भी है , पुरुष ने नारी हेतु ऐसे रिवाज क्यों बनाये? इसका कारण मनोविज्ञान में है।  अपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षण के पुरुष मनोविज्ञान ने बाहर की नारी को इस रूप में प्रस्तुत किया था। और नारी को इस तरह प्रदर्शित करने के रिवाज बन गये । पुरुष ही घर में नारी को पर्दे में रखने का हिमायती रहा लेकिन बाहर अर्धनग्नता का पोषक हो गया । हालाँकि इस दोहरी मनोप्रवृत्ति ने बाद में उसके घर को भी दायरे में ले लिया। फ़िल्मी घराने उदाहरण हैं।
आधुनिकता ?
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अब बुरा या अच्छा जो भी कहें यह रिवाज खेल और ग्लैमर की दुनिया से बाहर पसर गया है। व्यवसायिक लाभ बटोरने की चाह में - वस्त्र निर्माता एक से एक आकर्षक और संक्षिप्त नारी परिधान ही शॉप्स और मॉल में उपलब्ध करा रहे हैं । बच्चों को जिन्हें समझ नहीं है , आधुनिकता के नाम पर इनके क्रेजी हैं। उनमें विज्ञापनों और अन्य प्रदर्शनों से इन परिधान को देखना और पहनना सामान्य सी बात हो गई है । कुछ आधुनिक परिधान तो निःसंदेह सुविधाजनक  हैं।  लेकिन अधिकतर सेक्स लालसाओं को अनियंत्रित करने वाले ही हैं। नया -नया और ब्रैंडेड कहकर 50 का 500 में बिकने से आर्थिक लाभ तो अधिक हैं , किन्तु नारी और समाज को क्या खतरे या क्षति है इससे बेपरवाह समाज के ही ये सदस्य हैं ।
नारी भी सम्मोहित हुई है
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अब शो या वस्त्र निर्माण में नारी भी अग्रणी है। लेकिन प्रगतिशील नारी भी सम्मोहित सी वही रिवाज बढ़ा रही है जो पुरुष मनोविज्ञान की उपज था । पर्दे में धकेलना और बाहर की नारी को बेपर्दा करना चरमता में दोनों अनुचित हैं। प्रगतिशील नारी पर्दे पर विद्रोही है , उचित है। लेकिन दूसरी बात पर भी उसे सोचना चाहिये।
नारी सम्मान की तलाश
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नारी सम्मान की तलाश में  नारी,  भारतीय समाज और भारतीय संस्कृति के प्रति भी विद्रोही है। बेशक हमारे समाज में भी नारी के साथ छल होता आया है। उसमें नारी हितों की दृष्टि से बदलाव जरूरी हैं। बेटी शिक्षित हो रही है , जॉब करने लगी है , व्यवसाय में हिस्सेदार हो रही है। हमारा समाज इन बदलावों को स्वीकार करता जा रहा है। लेकिन सभी पश्चिमी बातें ,आँख मूँदकर के नारी समानता के नाम पर अंगीकार करना , उचित नहीं लगता।
नारी आकर्षण 
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सृष्टि में ही यह बात निहित है पुरुष का नारी में एवं नारी का पुरुष में आकर्षण सदा बना रहेगा। परिधान जरूरी हैं -पहनने होंगे। परिधान से भीतर के सौंदर्य एवं आकर्षण न तो बढ़ेंगे और न ही घटेंगें। यह नारी का अधिकार और तर्क है कि वह क्या पहने। लेकिन यौन अपराधों की अधिकता या बढ़ने का ट्रेंड - लेखक समझता है वह वीडियो /फ़िल्में - और तस्वीर हैं - जो वस्त्र विहीन या छोटे अधोवस्त्रों में आज बहुलता में प्रदर्शित हैं। जिनका दर्शक होकर आज का समाज जीवन को सिर्फ सेक्स-प्रधानता की दिशा में बढ़ाता जा रहा है। जीवन सेक्स और भोजन से अलग भी बहुत कुछ है।  नारी आधुनिक बने, शिक्षित हो, सम्मान पाये और उन्नति भी करे। किन्तु बेहतर होगा ,अपनी सुरक्षा को , छद्म आधुनिकता की शिकार हो दाँव पर न लगाये। सिर्फ देह आकर्षण की प्रस्तुति में नारी न अटकी रह जाए।
(अग्र क्षमा याचना सहित - पढ़ने वाले पुरुष होने पर न जायें लिखा वह है जैसा लेखक , पुरुष नहीं नारी होकर भी सोचता )
-- राजेश जैन
15-03-2015

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