Wednesday, October 8, 2014

शारीरिक संबंधों में स्वछंदता की कुरीति

शारीरिक संबंधों में स्वछंदता आधुनिकता नहीं
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 "गर्म ऊन" ,"आकर्षण प्रदान करते रेशमी या सुनहरी डोर" और उनके बीच "हवादार छिद्र"  होते हैं , ऐसे जिस शॉल में बुनावट हों वे हमें सर्दी वाले प्रदेशों में बहुत शुकुन देते हैं। इसी तरह परिवार जब "परस्पर विश्वास की गर्मजोशी" , "प्यार की शीतलता और सुंदरता" और "त्याग भावना के छिद्रों" से गुथे-बुने होते हैं। उनमें मन शांत और जीवन की सुखदता विध्यमान रहती है।  ऐसे परिवारों से भरा समाज सृजनशील , रचनात्मक इसलिए उन्नतिशील होता है।
बाह्य वैभव का एक महत्व अवश्य होता है , जिससे हमें शारीरिक आराम के साधन मिलते हैं।  किन्तु जिस बात से जीवन सार्थक और सुखद बनता है वह बात हमें मानसिक शांति से मिलती है।  शांत चित्त रहकर ही उच्चतम कार्यक्षमता प्रदर्शित की जा सकती है , और वास्तविक जीवन सुख अनुभव किये जा सकते हैं और मनुष्य परस्पर सहयोगी होकर मानवता और सभ्यता को उच्चतम आयाम दे सकते हैं। परिवार इकाई बने रहना , बनाये रखना ही वास्तविक मनुष्यत्व है।  जो आज की षणयंत्रकारी स्वच्छंदता से संकट में पड़ रही है .
घर -परिवार सभी का होता है। उसमें माँ है , बहन है , विवाहितों की पत्नी भी है , बेटी है। ...
आज बेटियाँ -बहनें उच्च शिक्षा या आजीविका की कामना में कॉलेज और ऑफिस में जा रही हैं। दूसरों की बेटी - बहन (और कहीं किसी की पत्नी) को आधुनिकता के तर्क के साथ ,  विभिन्न तरीकों से उकसा कर ,अविवाहित युवा और रसिक विवाहित पुरुष अपनी वासना पूर्ती का मंतव्य सिध्द करने के प्रयासरत रहते हैं। उन पर उपहार ,होटलों -पबों में ले जाकर लेविशली खर्च से प्रभाव डालते हैं। जो प्रभाव में आ जायें उन्हें ड्रिंक्स लेने को दुष्प्रेरित करते हैं। धन का अहसान , ड्रिंक्स से कम हुए आत्म-नियंत्रण और आधुनिकता या अन्य बेहूदे तर्कों के प्रभाव में नारी (और पुरुष भी ) भारतीय मर्यादा और चरित्र की सीमा लाँघ लेती हैं। इन का उपयोग ब्लैकमेलिंग में भी किया जाने लगता है।
 तब भी जब सम्बन्ध बनाते पुरुष और नारी , आगे विवाह करने वाले हों ,विवाह पूर्व के संबन्ध , निंदाजनक माने जाते रहे हैं। लेकिन जिनमें विवाह की कोई योजना ही ना हो तब वासनापूर्ती को छोड़ा जाये तो परस्पर हित का कोई भी प्रयोजन पूरा नहीं होता है। विवाहेत्तर सम्बन्ध ने भी कभी भी ना तो किसी नारी को , ना ही किसी पुरुष को मानसिक शांति पहुँचाई है।
अवैध कहे जाते ऐसे संबंधों से पुरुष को तो ज्यादा से ज्यादा व्यभिचारी कह /जान कर थोड़ा प्रतिष्ठा हानि मिलती है। जिसके कारण प्रतिष्ठित परिवार उनसे पारिवारिक मेल जोल में परहेज कर लेते हैं। क्योंकि परिवार की शीलवान नारी (पत्नी , बहन , बेटी ) को ऐसे पुरुष की दोषी दृष्टि या दुश्चरित्रता से बचाना होता है। किन्तु नारी का तो भविष्य और जीवन अन्धकार में डूब जाता है। दैहिक आकर्षण एक दिन ख़त्म होने से उनमें रूचि लेने वाला कोई नहीं मिलता ,तब साथ सिर्फ अवसाद और अकेलापन रह जाता है।
जब बात परिवार पर आती है  समस्त आधुनिकता के तर्क अलग रह जाते हैं। जीवनसाथी के पूर्व ऐसे सम्बन्ध या विवाहेत्तर सम्बन्ध की जानकारी नारी और पुरुष दोनों को अशांति ही देती है और ये परिवार विच्छिन्न करने वाले  सिध्द होते हैं। चाहे जिसके या जिस भी तर्क से हमारी पीढ़ी समझ ले , यह बार बार कहे ,सुने ,लिखे और पढ़े जाने की आवश्यकता है। 


"परिवार के स्थाईत्व में ही मानवता और जीवन सुख फलीभूत  होते हैं , स्वछंदता जानवरीयत है , सुख के भ्रम की मृग-मरीचिका है। "


आधुनिकता में ,आधुनिक साधनों में मनुष्य की बहुत भलाई है , लेकिन शारीरिक संबंधों में स्वछंदता आधुनिकता नहीं है।  कई पाश्चात्य देश समाज बाह्य वैभव और सुविधा संपन्न हैं , किन्तु उनमें शारीरिक संबंधों में स्वछंदता की कुरीति से , मनुष्य मनोमस्तिष्क से अशांत हैं।  वे भारतीय संस्कृति के महत्व गान भी करने लगे हैं। ऐसे में हम से दुर्भाग्यशाली कौन होगा,  जिसे इस भव्य संस्कृति की विरासत मिली है ,जो यों ही हम लुटा दे रहे हैं।


--राजेश जैन
09-10-2014

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