Thursday, October 2, 2014

जीवन -सरल सिध्दांत

जीवन -सरल सिध्दांत
---------------------------
लेखक के एक विद्वान मित्र ने शपथ के इस दौर में , जिसमें शपथ निभाने के लिये कम रस्म अदायगी के तौर पर ज्यादा ली जाती हैं एक हास्य विनोद-व्यंग  से भरपूर एक शपथ पोस्ट की।  वह ऐसी है (कॉपी -पेस्ट )

"मेरे साथ साथ दोहराइए..
मैं भारत का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते शपथ लेता हूँ कि नवरात्रि के बाद जब भी शराब पीना शुरू करूँगा तभी से मैं सोडे और पानी की खाली बोतल, नमकीन के पाउच, स्नैक्स की खाली प्लेट और शराब की बाटली को कहीं भी नहीं छोडूंगा। उसे उचित स्थान पर ही फेकुंगा और माल तेज हो जाएँ तो उल्टी अपने साथ रखे डब्बे में करूँगा ।"
मित्र की पोस्ट होने से नोटिफिकेशन लेखक को भी मिला। लेखक ने शपथ में छिपे हास्य-व्यंग का आनंद लिया लेकिन कमेंट तनिक गंभीरता से डाला , जो ऐसा था 

"मैं भारत का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते शपथ लेता हूँ कि नवरात्रि के बाद भी शराब पीना नहीं शुरू करूँगा "

अति व्यस्तता की देन 
----------------------
लेख का आरम्भ देने के बाद मर्म पर आते हैं। वास्तव में हमें सतही कर्म और विचार की शैली जो शायद अति व्यस्तता की देन है , छोड़ किसी विषय के मर्म पर कर्म और विचार करना चाहिए।

गन्दगी की सफाई
------------------
हमें बुरे को ख़त्म करने के स्थान पर , बुराई की जड़ को खत्म करना चाहिए। जैसा उपरोक्त शपथ में स्पष्ट है , बहुत सी गन्दगी शराब पीने से होती है , शराब पीने के बाद हुई गन्दगी की सफाई (शराबी इस हालत में नहीं होता ,स्वयं कर सके ) बढ़ा प्रश्न होता है। जैसे तैसे हो तो जाती है। लेकिन बड़ी किसी बुराई को तो उसके होने के कारकों को मिटाते हुए ख़त्म करना चाहिए (छोटी -मोटी बुराइयाँ तो इतना विशाल मानव समुदाय होने से ख़त्म नहीं किन्तु इग्नोर की जा सकती हैं ).

उत्कृष्ट वीरता और साहस 
-------------------------
इस पोस्ट पर लेखक का कमेंट लेखक के लिए एक सरल शपथ है। वह पीता ही नहीं तो उसके लिए शपथ निभाना बच्चों द्वारा कर दिया जाने वाले कार्य बराबर है। लेकिन जो मदिरा सेवन के आदी हुए हैं ,उनका इसे निभाना हिमालय धकेलने जितना कठिन हो जाता है। इसलिए लेखक किसी शराबी द्वारा ऐसी शपथ उठाने को उत्कृष्ट वीरता और साहस की श्रेणी में रखेगा। ऐसी वीरता की आवश्यकता हमारे देश और समाज को है। क्योंकि शराब अकेली ऊपरी गंदगी को नहीं अपितु मानसिक गंदगी को भी बढाती है। हमें गंदगी और बुराई पर काबू पानी है तो हम उस शपथ को उठायें , और रस्म अदायगी ना कर उसे निभाकर परिवार और समाज के प्रति दायित्व ज्यादा कुशलता से निभायें।

सरल सिद्धांत
----------------
हमारा जीवन दो काल बिन्दुओं के बीच होता है।  वे दो बिंदु हमारे जन्म और मौत होते हैं। जन्म से प्राप्ति का सिलसिला और मौत सब खो देने वाले घटनायें हैं। अस्सी वर्ष का मनुष्यीय जीवन माना जाए तो अपने जीवन को हमें नियोजित करना चाहिए। चालीस वर्ष तक प्राप्ति के उपाय और कर्म प्रमुख रखने चाहिए। चालीस के हो चुकने के बाद हम मौत के नितदिन करीब जाना आरम्भ करते हैं अतः तब हमें तजने की प्रवृत्ति अपनानी आरम्भ करनी चाहिए. अर्थात त्याग मुख्य करते जाना चाहिए।  यहाँ त्याग किसी उपलब्धि को नष्ट करना नहीं है। बल्कि अपनी उपलब्धियों को परिवार के अतिरिक्त देश ,समाज और मानवता के लिये भी बाँटना होता है । 

मानवता के पक्ष में
-------------------
यह सरल सिद्धांत हमारा जीवन सार्थक और दायित्व पूरे करता ही है। हमारे समाज को उत्कृष्टता पर पहुँचाता है।  आप भी रियलाइज करेंगे की मौत पर सब खोने के बाद भी किये ऐसे त्याग ही हमारे जीवन की शुद्ध प्राप्ति होती है , अवश्य ही यह हमारे पक्ष में नहीं होती , यह मानवता के पक्ष में होती है जो मानवता को पुष्ट करती है।

--राजेश जैन
03-10-2014

No comments:

Post a Comment