Wednesday, October 1, 2014

हितैषी (वेलविशर)

हितैषी (वेलविशर)
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हमारा हितैषी हमें मजबूत करता है , जो हितैषी नहीं होता हमें कमजोर करने के यत्न करता है।  अतः जब हमें लम्बी अवधि साथ चलना हो तो , हम में यह गुण होना चाहिए कि हम अपने साथी के सच्चे हितैषी हों। हमारा यह गुण उस साथी को भी हमारा हितैषी ही बना देता है।  तब हम विन-विन सिचुएशन में होते हैं क्योंकि परस्पर एक दूसरे को पुष्ट करते हुये दोनों ही मजबूत होते चले जाते हैं। इस स्थिति में जीवन यात्रा , हर्षमय चलती जाती है।

विवाह हमारे समाज में दो मनुष्य (एक नारी और एक पुरुष ) को सर्वाधिक लम्बे साथ में लाता है। अपने वैवाहिक जीवन को मजबूती और सुखदता प्रदान करने के लिए यह आवश्यक होता है कि पति-पत्नी दोनों परस्पर हितैषी हों।  कुछ पहले तक इस आवश्यकता के बारे में लिखा जाना विचित्र ही लगता , क्योंकि तब हमारे समाज के प्रत्येक पति-पत्नी परस्पर हितैषी ही होते थे।  उनका वैवाहिक जीवन सुखद और स्थायी होता था।

आज , इस बारे लिखे और पढ़े जाने की आवश्यकता इसलिये अनुभव हुई है क्योंकि हमारे समाज में विवाह-विच्छेद की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है , जो नितदिन बढ़ रहीं हैं। कारण वही है वे परस्पर हितैषी नहीं रह जाने से ऐसा करते हैं। जीवन सुख और मजबूती पर संकट होता है। तब यह निर्णय करना ही होता है। क्या हैं , प्रमुख कारण जिनसे हमारी भव्य परम्परायें नहीं निभ पा रही हैं।

सुखद वैवाहिक जीवन का प्रमुख आधार आपसी विश्वास होता है। पति और पत्नी का आपसी विश्वास दोनों के चरित्र की बुनियाद पर होता है। 
पुरुष और नारी का चरित्र दुष्प्रेरित हो , आज पाश्चात्य समाज के चरित्र जैसा हो गया है . जो चंचल होता है और भोग-उपभोग प्रधान होता है। वासना पूर्ति पर आधारित साथ , उन्हें एक दूसरे का हितैषी नहीं बना पाता है।  वे अपने हितैषी और वासनापूर्ती के बेहतर साथी के लिए भटकते रहते हैं , नए साथी आजमाते हुए भी तलाश जारी रहती है और उनकी जीवन संध्या आ जाती है।

दाम्पत्य जीवन में परस्पर हितैषी बने रहने के लिये पुरुष और नारी दोनों के चरित्र  हमारी संस्कृति सम्मत  (भारतीय चरित्र ) होना चाहिए।  परिवार , समाज और देश में खुशहाली के लिए परिवार में स्थायित्व आवश्यक है।

हाइड्रोजन परा ऑक्साइड एक ऐसी गैस होती है , जिसके होने से मनुष्य हँसता ही रहता है। ऐसी ही कोई गैस (थोड़े अलग असर वाली) सामाजिक वातावरण में घुल गई है जिसके प्रभाव में आज मनुष्य पर सेक्स -शराब और धन की धुन सवार हो गई है। हमें पहले इस गैस के प्रभाव से अपने को मुक्त करना है और दूसरों को इससे मुक्त कराने के लिए इस सम्मोहन वाली गैस को वातावरण से बाहर करना है।  ऐसे स्त्रोत जो इस मदहोश करने वाली गैस को हमारे समाज में झोंक रहे हैं उन्हें पहचान कर उन्हें नष्ट करना है।  आवश्यकता गंभीर चिंतन और आत्म नियंत्रण की है।

राजेश जैन 
 02-10-2014

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