Sunday, December 9, 2012

लौट आओ भारतीय संस्कृति की सीमाओं में

लौट आओ भारतीय संस्कृति की सीमाओं में 

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विक्रयकर्ता के वस्तु मूल्य बताने पर
क्रयकर्ता मन शंकित हो उठता
वह लगता मोल भाव है करने
स्थिति वही वस्तु वजन की होती

क्या ऐसी पहले भी थी स्थिति ?
क्या तब था लेनदेन में अस्तित्व शंका का ?
क्या चिंता थी अधिक लाभ कमाने की ?
या संतुष्टि थी प्रमुख लेनदेन में ?

अगर यह लगता हमें है ,ऐसा नहीं पहले था
तो विचारें उन कारणों को हुए अब परिवर्तित हैं
बढ़ा लालच है प्रथम है कारण
खोता चरित्र भी है प्रमुख समस्या

मानवीय संवेदना ह्रदय में मुरझा रही है
सबको अब मात्र अपनी चिंता है
धन का महत्व हम इस तरह बढ़ा बैठे
अपने ऊपर बोझ गिरा बैठे

धन कमाने में नैतिकता छूटी
धन की चिंता में परोपकार भूल बैठे
जब आया धन अधिक हमारे पास तो हमने
सुख की निद्रा स्वयं अपनी ही खो दी

भले कर रहे सब निंदा हमारी
दूसरे के ऐसे कर्म लगते हमें निंदनीय
पर इन पर हम कान ना धर पाते
नेत्र दोष हमारे हो गए  

 भूखे दरिद्र के दुःख हमें न दिखते
वस्तु क्या मनुष्य भी विक्रय हेतु दिखते
कहीं खरीदते ठुमके सुंदरियों के
कहीं लगाते मोल लाचार की देह क्रय को

बिकने वाले भी धन लालच में
खोते मर्यादा और लज्जा समाज में
जहाँ नहीं जागृत मन को वश कर सकते
धन से ले मदिरा बांटते
मदिरा नशे में चूर हो कोई जब तो
फुसलाना उसे सरल हो जाता

धूर्तता के इन उपायों से
जो ना था इस देश का भोज्य
संस्कृति में जो था अब तक वर्जित
हुआ अब वह दैनिक प्रयोग में

जो भारत की पहचान थी विश्व में
जिस पर था गर्व हमें
कहते थे हम गौरव गान में
सारे विश्व से भारत महान है

ना भाता था शेष विश्व को
षड्यंत्र रच ईर्ष्यालु अन्य ने
किया गडमड्ड संस्कृति को भारत की
विश्व की दूसरी हीन संस्कृतियों में

अब भारतीय नहीं रह गए निराले
सुविधा भोगी बन रहे एक जैसे ही
आने वाले समय में दिखेगा
बुरा प्रभाव अभी से ज्यादा

मानव नहीं जीवन्तता से जियेगा
मनुष्य जीवन जो मिला अनमोल उसे
मदहोशी और स्व-लालच में
उसे पता न होगा कैसे गया यह जीवन बीत

राजेश का अति आशावान आव्हान है फिर भी
लौट आओ भारतीय संस्कृति की सीमाओं में
जिस तरह बदल रहे अन्य हमें आज
ले चुनौती बदलों उन्हें इस संस्कृति में  
समाज सुखी और विश्व सुखी तब ही होगा
मनुष्य सही अर्थों में मनुष्य रह सकेगा
परिवर्तन का अवसर आज हमारी पीढ़ी को
हम खोएंगे तो कोई जागरूक पीढ़ी भविष्य में
लेगी कर्तव्य यह अपने ऊपर
क्योंकि बचाने को मानव अस्तित्व  
इस पृथ्वी पर है मात्र यही विकल्प 

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