Saturday, December 29, 2012

जितना अप्रिय अपराध जघन्य यह उतना देनाअभागों को फांसी


जितना अप्रिय अपराध जघन्य यह उतना देनाअभागों को फांसी 
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अरुण जी , प्रसन्नता है बहुत जो लौटे फेसबुक पर आप आज हैं
राजेश अनुभव करता जैसे ऊर्जा मानसिक पुनः लौटी सृजन की

दुष्कर से कार्य आवश्यक समाज में जो ठानी है करने की हमने 
बिना सहयोग आपस के ना रह जाए अनमोल जीवन में अधूरी    

हो रहा दो चार नित नई बुराइयों से प्यारा यह समाज देश हमारा 
अरुण - राजेश जोड़ें और सहयोगी निर्मित करने सुन्दर पथ ऐसे 

जिन पर चलकर अनुज-अनुजा हमारे करें बोध सुरक्षित होने के 
पूर्व निर्मित पथ द्वारा पूज्यनीय पूर्वजों के हो गए जो आज वीराने 

पुनरोध्दार करें उनका, और दामिनी हमें नहीं अब खोना पसंद है 
बदलना मानसिक तत्व भ्राताओं का जो करवाता उनसे अपराध है  

मांगे उठती फांसी देने की दुर्भाग्य उन अपराधी हमारे भाइयों को  
पर ना मिटायेंगे अगर जड़ बुराइयों की कितनों को देंगे हम फांसी

जितना अप्रिय अपराध जघन्य यह उतना देना अभागों को फांसी 
सद-प्रेरणाएं, उदहारण सदाचार दें मिटायें मनोविकार जो समाज से

हम आज बहुत पढ़े लिखे बिना टूटे लाठी दूर हो जाए खतरा सर्पों का 
होगा हमारा परिचय सच्चे पढ़े लिखे ,संस्कार धनी व सभ्य होने का   

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