आओ करें हम सम्मान अपनी माताओं का
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हम युवा हैं , पढ़ लिख रहे हैं तो इस दृष्टिकोण से अपनी माँ को देखें अबोध थे हम ,जब नहीं ज्ञान था तब आवश्यकता हमारी रोने से समझी
लथपथ अपनी गंदगी से त्रस्त होते जब, चिंता से हमें नहलाती , धुलाती
आरम्भ किया पाठशाला जाना हमने तो सर्दी में भी धुंधलके रहते जागती
उदरपूर्ति हेतु हमें क्या पसंद , पौष्टिकता ध्यान रख सदा दूध-रसोई बनाई
लालन-पालन और गृहस्थी कार्य में दर्द को हमारे अपने से ज्यादा समझती
लालन-पालन और गृहस्थी कार्य में दर्द को हमारे अपने से ज्यादा समझती
लीन हो चाहरदिवारियों में कैद सी रहकर ही वर्षों, अपना जीवन बिता दिया
युवा से वे अध्-बूढी हो गईं, युवा हो हम खोये अपने सपनों के उधेड़-बुनों में
युवा से वे अध्-बूढी हो गईं, युवा हो हम खोये अपने सपनों के उधेड़-बुनों में
कर देते बच्चे उनकी उपेक्षा, चल रहा यह क्रम यद्यपि सृष्टि आरम्भ से
पर
माँ-पिता उपेक्षित, पहले से ज्यादा आज हुए, युवा ज्यादा महत्वकांक्षी पर
वह तो माँ महान है बच्चों की उपेक्षा सहकर भी, शेष जीवन बिता लेती है
सम्भावना
पर मैंने अनुभव की है, मेरी अपनी माँ को देख और समझकर सम्भावना
चाहरदिवारियों के बाहर आतीं तो पातीं, जीवन उपलब्धि अनेकों से बढ़कर
अपने नाम उपलब्धियां जोड़ सकती थीं, ना रखी उन्होंने ऐसी महत्वाकांक्षा
अपने नाम उपलब्धियां जोड़ सकती थीं, ना रखी उन्होंने ऐसी महत्वाकांक्षा
समर्पित जीवन गृहस्थी -बच्चों में,
संतोष किया परिजन उपलब्धियों के लिए
कम से कम उनके त्याग इस महान का, हम करे सम्मान उनका इस तरह से
प्रशस्त किया संस्कारों से जिस पथ पर,
आगे बढ़ते हुए अपने पूर्ण सामर्थ्य से
रत्न समाज या रत्न विश्व हेतु अपने को, नेक कर्मों से हम सिध्द कर सकें तो
आडम्बर सम्मोहन के कारण मानव अब भ्रमित हो, मानवता से दूर जा रहा
वापस उसे लाने के लिए यदि प्रयत्न हम करें तो कर पायेंगे सम्मान हम उनका
माँ देती है सब हमें और मांगती कम हमसे, अनकही अपेक्षा यदि हम समझें तो
उपलब्धि अपनी ,
उनके लिए अर्जित हम करें तो गौरवान्वित अनुभव वे करेंगी उपलब्धि अपनी ,
बन कर ऐसी संतान हम सभी, आओ करें हम सम्मान अपनी माताओं का
माँ सम्मान में छिपा हुआ है हित हमारा ,समाज ,विश्व और मानवता का
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