Sunday, December 30, 2012

अश्रुना


अश्रुना
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लड़कियों के छात्रावास में १५-२० छात्राएं , दामिनी मौत से सदमे , विषाद और वेदना में डूबी हॉल में बैठी थीं . कुछ के नयन अश्रुपूरित थे . सब खामोश थीं , अश्रुना ही कुछ कह रही थी . उसे कहना से ज्यादा बुदबुदाना कहना ज्यादा सही होगा . जो स्पष्ट सुनने वाले को हो रहा  था वह , इस प्रकार था ...

एक दामिनी पर अत्याचार की चर्चा चारों तरफ , इसी दिन पूरे देश में इस तरह के कितने अबला अत्याचार हुए , उन पीड़ितों का दुःख क्यों नहीं समझते सब. एक में इतने व्याकुल ! प्रतिदिन हजारों भुगतती चल रहीं हैं . फांसी समाधान है? . तो मेरे कितने भाई , चाचा लटक जायेंगे .. समाधान सजा देने में नहीं  लगता है , समाधान विचारों में नैतिकता आये ,उनके उपायों में है. उपायों का आरम्भ स्वयं अपने से हो सकता है ... ( कुछ देर शांत होती है फिर बुदबुदाती है...  )   

सार्वजनिक स्थानों पर लड़कियों के अशालीन व्यवहार भी थोड़ी हद तक दोषी होते हैं  . मै अब ज्यादा बनाव श्रृंगार के नहीं घूमने निकलूंगी .. पार्टी जिनमें ड्रिंक्स के दौर चलते हैं , उनमें मै हिस्सा न लूंगी , हॉस्टल लौटने में ज्यादा रात ना करुँगी , सड़कों पर ज्यादा ऊँचे स्वर में नहीं हसूंगी , बातें करुँगी  . फ्लर्ट से बचूंगी . किसी पुरुष से ज्यादा एकांत में अधिक वार्तालाप से बचूंगी ...

अपराध करने के आदी को तो मै ना बदल सकूंगी . पर मेरी किसी हरकत को गलत पढ़ , कोई सज्जन अपनी सज्जनता न खो दे , यह मेरी दायित्व है ...
मै ऐसे परिवार में रहती हूँ जहाँ दादा , पिता ,चाचा और भ्राता रूप में कई पुरुष साथ हैं ... किसी नारी के असावधानी से वे किसी ऐसे अपराध में ना पड़ जाएँ , मुझे सोचना है ...
किसी के ऐसे प्रियजन को ऐसे  अपराध की दुष-प्रेरणा अपनी असावधानी से मै कैसे दे सकती हूँ .... भगवान् मुझसे ऐसी गलती कभी ना करवाना .
मुझे मेरे भाई , मेरे देश के अन्य बहनों के भाई का जीवन प्रिय है ... उन्हें फांसी होते मै नहीं देख सकती ...

अब तक नहीं रो रही थी अश्रुना ... अब बिलख कर रोती है बनती है अश्रु-हाँ        

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