Friday, December 28, 2012

न्यायबोध सद-प्रेरणा ना दे सका भागीदारी अपराध में मेरी होती

न्यायबोध सद-प्रेरणा ना दे सका भागीदारी अपराध में मेरी होती
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माता -पिता तय कर देते वस्त्र ,भोज्य ग्रहण करना होता
शिक्षा हेतु मार्गदर्शन उनसे अंक अच्छे प्राप्त करना होता

चिकित्सा विज्ञान रूचि कारण श्रम पढाई का बहुत होता
अभी समझ आरम्भ हुई थी मनुष्य जीवन क्या है होता

आगामी जीवन खुशहाली का मधुर स्वप्न नयनों में होता
नारी को देश-संस्कृति ने गरिमापूर्ण स्थान दिया था होता

पिता चाचा बड़े सभी बचपन से चरण में बेटी के झुकते होते
विडंबना पर नारियां देश में कहीं न सुरक्षित दिखती होती

दामिनी राजधानी में अनजान खतरे से बस सवार हुई होती
सहयात्रियों पर विवेक शून्य कर मदिरा नशा तब छाया होता

चीरहरण ,लाज लूट अबला को कलंकित कर छोड़ा होता
ऐसे कलंक में अधमरी अबला हार आज शिकार मृत्यु होती 

सपने दामिनी, घर-परिवार के पशु व्यवहार से गए चूर होते
पशुवत  मानव पले खेल गोद में माँ लज्जित वे हो रही होती

नहीं प्रश्न असावधानी किसकी कौन कहाँ अब मानता  होता
राष्ट्र ,समाज , पुरुष-नारी सब के सर शर्म से झुक गए होते

यह हत्या , उस विचार और स्वप्न की भी हत्या होती
जिसमे नारी अधिकार, पद, सम्मान पुरुष बराबर होते

हाय , राजेश विरासत राष्ट्र की भव्य इतनी कहाती होती
न्यायबोध सद-प्रेरणा ना दे सका भागीदारी अपराध में मेरी होती

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