Saturday, December 29, 2012

मै भी तीन बेटियों का पिता हूँ

मै भी तीन बेटियों का पिता हूँ
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                      दामिनी प्रकरण पर राष्ट्र को संबोधन में कहा गया "मै भी तीन बेटियों का पिता हूँ" .यह वाक्य रेखांकित करने का उद्देश्य किसी आलोचना के लक्ष्य से नहीं है . लेकिन किसी बेटी पर अत्याचार की पीड़ा और संवेदना अनुभव करने के लिए पुत्री का पिता होना अगर आज आवश्यक है तो वर्तमान समाज किस दुर्दशा में आ गया है सरलता से समझा जा सकता है .अगर पुत्री नहीं है तो इस तरह की घटना की वेदना की कल्पना या अनुभव का समय पुरुष नहीं पा सकेगा तो क्या उन्नति के पड़ाव पर है आज  मानव ? मेरी समझ में इतनी दुर्गति कभी नहीं थी .
                            आगे की होने वाली दुर्गति तो कल्पनातीत है .छोटे परिवार के आव्हान में कई परिवार पुत्री-विहीन होंगे .वहां बेटी के सम्मान और उसकी वेदना क्या महत्वहीन होगी ? वह तब जब कोई पुरुष बेटी (नारी ) का पिता तो शायद नहीं   हो पर पुत्र तो किसी नारी का भी होता है .
                        एक राजनीतिज्ञ से संवेदना की चूक में व्यस्तता कारण हो सकता है ,शब्दों पर ध्यान ना गया हो . अगर इतना भी सत्य है तो कम चिंताजनक है . पर जैसा शब्द संकेत करते हैं .. जब तक स्वयं किसी स्थिति में हुए बिना उस बात के कल्पना ना कर सकें तो महत्व के उस स्थान पर यह राजनेताओं की योग्यता की कमी प्रदर्शित करती है .  राष्ट्र या समाज जिन चुनौतियों से आज दो चार हो रहा है , ऐसी बुराइयाँ उन जैसे सज्जन पुरुष में नहीं हो सकती . तो फिर कैसे उसकी गंभीरता वे समझ सकेंगे ? और कारगर कार्यवाहियों को कैसे क्रियान्वित कर सकेंगे ?
                   समाजविग्य , साहित्यकार , राजनीति के बाहर के प्रबुध्द कृपया स्थिति को समझें . उनके कन्धों पर दायित्व ज्यादा आ पड़ा है . जो व्यवस्था के लिए उत्तरदायी हैं . उन्हें चहुँ दिशाओं की समस्याओं और व्यस्तता ने कल्पना-शून्य कर दिया है . राष्ट्र के योग्य नवयुवा देश की इन असुरक्षित और दुर्गति से घबड़ा कर बाहर पलायन का निर्णय कर लें तो उनकी योग्यता से वंचित हो यह राष्ट्र कहीं और दयनीय स्थिति में ना पहुँच जाए .
                      समाजविग्य , साहित्यकार , राजनीति के बाहर के प्रबुध्दों  से प्रार्थना है .. इस समस्या को पराई दृष्टि से ना देख अपनी माने .. जग चेतना जागृति के लिए कर्म , आचरण और लेखनों से प्रेरणा-त्मक उदाहरण बनें तथा  बनाये . हमारा जीवन कुछ वर्षों का होता है पर भव्य इस भारतवर्ष की आयु अभी हजारों वर्षों की है ... हमें भारत की आत्मा आगे लाखों वर्ष अच्छी स्थिति में जीवित रहे इस हेतु त्याग करने है .. जीवन में सुविधा से परे कुछ कठिन पथ पर चल कर .. ऐसे पथ का पुनर्निर्माण करना है .. जिस पर चल हमारी सन्तति को अच्छे जीवन लक्ष्य मिल सकें ....

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