Monday, December 17, 2012

देवदूत





देवदूत 




                   मानव समाज चाहे इस देश का हो , देश के किसी धर्मावलम्बियों का हो , किसी भाषा भाषी का हो , देश के किसी क्षेत्र विशेष का हो या देश की सीमाओं से बाहर विश्व मानव समाज की बात ले लें , सभी में कुछ ना कुछ ऐसी बुराइयाँ हैं , जो सभ्य मानव समाज को शोभा नहीं देती हैं. ना सिर्फ ये चिंता की बात है , बल्कि विद्यमान बुराइयों का बढ़ता -क्रम ज्यादा चिंतित करता है . और भी बड़ी चिंता का विषय है विश्व मानव की आज की पीढ़ी में कोई एक व्यक्ति , संगठन , धर्म या कोई क्षेत्र मानव समाज में बढती बुराइयों की रोकथाम में सफल नहीं हो सका है . बल्कि कहा जाये तो इसके लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किये जा रहे हैं .
                बुराइयों के प्रति आज इनमें से कोई चिंतित होता है , तो वह संकीर्ण सोच के साथ बुराइयों से अपने परिवार , अपने धर्म या अपने देश को कैसे इन बुराइयों से, बचा ले इसके लिए ही उपाय करता दृष्टव्य होता है . बुराई को जड़ से निर्मूलन की बातें, चिंता करने का अभिनय मात्र सिध्द होता है . अन्दर का सत्य संकीर्णता ही होती है . जो अपने समझे जाते हैं , यह जो अपनी श्रृध्दा हम पर प्रगट करता है , बचाव के उपाय में इतनों की चिंता किसी भी प्रयास का कटु यथार्थ है .सभी को समालोचना के अंतर्गत ले लेने के बाद पढने वाले के मन में यह प्रश्न अवश्य उत्पन्न हो सकता है . लेखक बुराई की रोकथाम का कोई ठोस उपाय दे सकता है ? इस पर यहाँ उल्लेख उचित है , अब तक जो लिखा गया है वास्तव में दूसरे तरह की एक चर्चा की मात्र भूमिका है . और जो लेखक लिखने का लक्ष्य ले लिख रहा है वह आरम्भ अब होता है .

               पिछले 60-70वर्ष में हमारे देश में जिन बातों ने प्रमुख रूप से लोकप्रियता पाई उसमें हिंदी फिल्म , और दूसरा क्रिकेट खेल है . खेल को अलग रख यहाँ हिंदी फिल्म से सम्बंधित उल्लेख मूल कथानक है . हम सबने देखा है कई ऐसे अभिनेता और अभेनेत्रियाँ इस अवधि में आई हैं , जिनके प्रति देशवासी पागलपन की हद तक भी आसक्ति प्रदर्शित करते रहे हैं. एक अभिनेता जो इस तरह सफल हुआ , अपनी 45-50 वर्ष की उम्र तक लगभग 20 वर्षों तक सफलता के शिखर के आसपास रह सका है . इन 20 वर्षों में आज के रुपये शक्ति अनुसार 100 से 200 करोड़ तक की संपत्ति बना लेना उसके लिए कठिन नहीं रहा है . फिल्मों में आने के पहले ,ऐसा सफल होने वाला कोई अभिनेता अपवाद में ही मध्यम वर्ग से अधिक आर्थिक हैसियत का रहा हो . सब मध्यम वर्गीय पृष्ठ-भूमि से आकर ही इस अति संपन्न कहलाई जाने वाली संपत्ति के अधिकारी हुए .
              अर्जित संपत्ति भी लेख का विषय वस्तु नहीं है .मोटे तौर पर एक अति सफल अभिनेता के प्रशंसक देश के 10 करोड़ लोग रहे , इन्होने अभिनेता की निर्मित 100 केन्द्रीय भूमिका वाली फिल्मों में से औसतन 20 फ़िल्में उसके प्रति पसन्दगी रहते देखी . एक फिल्म के लिए 3 घंटे लगते हैं , इस तरह प्रत्येक ने 60 घंटे उस अभिनेता के कारण अपने जीवन के उस पर लगाये . इस तरह 600 करोड़ घंटे कुल (देश) के उस अभिनेता पर व्यय किये गए,दिन के समतुल्य कहे जाएँ तो ये 25 करोड़ दिन होते हैं, और इनका वर्षों में कहा जाये तो लगभग 6 लाख 85 हजार वर्ष होते हैं . फिल्मों से दर्शक ने कोई अच्छी शिक्षा ली उसमें पूरा संदेह तो है ही , उसे छोड़कर लिखूंगा , दर्शकों ने कुछ विशेष पाया हो नहीं लगता पर अभिनेता ने एक बड़ी प्रसिध्दि , लोकप्रियता और संपत्ति अवश्य प्राप्त की . ऐसी प्रसिध्दि 20 वर्षों के सार्वजनिक जीवन में किसी भी अन्य क्षेत्र में मिलना असंभव सा है. जबकि बौध्दिक , मानवीयता यहाँ तक की रूप-सौन्दर्य की दृष्टि से समकालीन उनसे बेहतर अनेकों इसी देश में उपलब्ध थे . अंतर ये था , उन्होंने फिल्मों में आने में रूचि नहीं ली या अगर ली भी तो उन्हें वे अनुकूल परिस्थिति नहीं मिल सकीं जो फिल्मों में आने में सफल को सप्रयास या अनायास प्राप्त हुईं.
             सामान्य मनुष्य के जीवन की औसत आयु 68.5 वर्ष लें तो उपरोक्त वर्णित देश के व्यय घंटे 10000 मनुष्य जीवन के तुल्य होते हैं . स्पष्ट है देश ने उस अभिनेता के लिए 10000 मनुष्य जीवन दिए . दूसरे शब्दों में अभिनेता को एक जीवन में जो दिया गया वह उसके 10000 मनुष्य रूप जीवन समतुल्य दिया गया . अपने 1 जीवन में ही 10000 जीवन के बराबर का प्रेम ,लोकप्रियता और प्रसिध्दि प्राप्त करने वाले किसी व्यक्ति का इस देश , समाज और मानवता के प्रति कर्तव्य बहुत बड़ा बन जाता है . लेकिन उपलब्ध सम्मान भाव से अभिनेता दर्प में चूर हो जाते हैं ,वैभव के कारण सुविधा के आदी होते हैं , और विलासिता में डूबते हैं . अतः उन्हें इस दृष्टिकोण से वस्तुस्थिति को देखने चेतना नहीं रहती है .
         
               जिस तरह सौन्दर्य प्रसाधन को चेहरे पर चढ़ाया जाता है , सोने के पूर्व उसे विधिवत उतारना भी आवश्यक होता है . उसी तरह जीवन में अहंकार , विलासिता और उपभोग अपने ऊपर चढ़ा लेने पर , जीवन समाप्ति के पूर्व उन्हें विधिवत तज देना उचित होता है . इतिहास में विलासिता ,प्रतिष्ठा और दर्प की अधिकता मरते तक कायम रखने के अनेकों उदहारण मिलते हैं . चाहने वालों के जीवन काल तक तो ऐसे मरने वालों की यदा कदा चर्चा मरने के बाद शेष रह जाती देखी गई है. पर 50 -60 वर्षों बाद सब विस्मृत कर दिए जाते हैं. लेकिन अपने जीवन में ही जिन्होंने यह सब अर्जित किया और मरने के पूर्व इनके मोह से छुटकारा प्राप्त कर अधेड़ावस्था से धीरे -धीरे सात्विकता जीवन में ला परोपकार के कार्य किये , वे अपवाद हैं ,गिने चुने हैं और अमर हो गए हैं, इन्हें चिरकाल तक मानव समाज उनके योगदान के लिए स्मरण करता है .




                          एक वह जिसको ज्यादा जाना पहचाना नहीं जाता है , वह जो भी अच्छा -बुरा करे उसका ध्यान थोड़े ही कर पाते हैं . ऐसे जन सामान्य कई हैं . ये बुरे कर्म के उदहारण भी बनें तो समाज दिग्भ्रमित हो ,सम्भावना थोड़ी होती है . लेकिन जिन्हें चाहने वाले करोड़ों की संख्या में हों , उनके छोटे छोटे कर्मों को भी गंभीरता से ध्यान किया जाता है . वे जीवन में अति विलासिता (चमचमाती महंगी कारों , अति सुविधा-जनक बंगलो में , महंगे आभूषणों और वस्त्रों में हर समय दिखते या दिखाए जाते हैं ) , दैहिक संबंधों में भारतीयता की सीमाओं का उल्लंघन के लिए चर्चित होते हैं तो प्रशंसक वर्ग भी ऐसी ही प्रेरणा लेता है . कहीं और ये उतना बुरा ना भी माना जाये , पर भारत में जहाँ आधी से ज्यादा जनता दूसरे दिन क्या खायेंगे या पहनेगे और अपने बच्चों की स्कूल के शुल्क कैसे जमा करेंगे , उनकी किताब-कापियां कैसे दिलाएंगे इसको लेकर चिंतित होती है . इसे अनुचित कहा जायेगा . आम संघर्षशील व्यक्ति गरीबी (अपनी ) और अति विलासिता (दिखाई जाती ) के बीच द्वन्द में घिर , परिश्रम छोड़ बुरे मार्गों से ज्यादा और शीघ्रता से धनार्जन की दुष-प्रेरणा ले समाज में बुराई बढ़ाने वाले कर्मों को प्रवृत्त होता है. चरित्र के भारतीय मानदंड से विचलित होता है. 

                असामान्य सफलता अर्जित करने के बाद भी वे सामान्य मनुष्य जैसे अपने कर्तव्य की सीमा अपने घर-परिवार तक सीमित रखते हैं. और 45 -50 वर्ष के बाद भी चिंता अपनी और परिवार की संपत्ति और बढ़ाने के लिए कर बाद में भी आय के साधन ही बढ़ाते हैं . जबकि संतानों के लिए 10-20 करोड़ भी रखें और फिर इसमें वृध्दि के लिए उन पर विश्वास रखें तो कोई अन्याय नहीं होता है. प्रचुर धन-संपत्ति की विरासत संतानों को विलासिता जन्य दुष्प्रभावों में डालती है . इसके विपरीत ठीक-ठाक आर्थिक दशा सृजनशीलता के प्रति जागरूक रखती है .
             अगर वह सफल अभिनेता ,सफलता के इस शिखर पर आ 50 वर्ष के बाद का अपना जीवन स्वयं हेतु धनार्जन में ना लगा शेष 20- 25 वर्ष इस देश या मानव समाज से बुराई कम करने के लिए काम करे .समाज में बुराई क्या हैं ?अध्ययन करे . उन्हें एक बड़ा प्रशंसक वर्ग हासिल है , उनका नाम तथा व्यक्तित्व सर्वविदित है इस कारण उनके कार्य और सन्देश आसानी से लोगों में सद्प्रेरणा के रूप में प्रसारित हो सकते हैं . और इस तरह समाज से बुराइयों में कमी लाइ जा सकती है. अपनी आसक्तियों पर नियंत्रण कर अगर कोई अभिनेता ऐसा कर सकता है तो वह स्वयं को ईश्वर का भेजा देवदूत सिध्द कर सकता है . वह ऋण जो प्रशंसकों के प्रेम से उस पर चढ़ता है को भी अपने जीवन में उतार इतिहास पृष्ठों पर अमर हो सकता है. मानव समाज में बढती बुराइयों की रोकथाम में सफल हो सकता है . एक पहला ऐसा देवदूत आने वाले समय में और भी देवदूतों की परम्परा डाल सकता है . 



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