Monday, December 2, 2019

न्याय ...

न्याय ...

न्याय की आशा उस तंत्र से
स्वयं जो भ्रष्ट है
न्याय की आशा उसे
स्वयं जो कर्तव्यच्युत है


न्याय पाने के लिए हमें
कर्तव्य पर खरा उतरना होगा
कर्तव्य परायणता लिए हमें
तंत्र में विराजमान होना होगा

बे-ईमान खुद, ईमान की आशा
औरों से करते हैं
निश्चित उन्हें अब निराशा होगी
अब चालाकी की हिकमत सब करते हैं

शिक्षा से चालाकी नही हमें
नैतिकता ग्रहण करनी होगी
भूल अपनी अपेक्षायें राष्ट्र से
पहले राष्ट्र अपेक्षायें पूरी करनी होगी

शिक्षा की पूर्णता हमें
नैतिकता सिखा जाती है

गर शिक्षा से तुममें
सिर्फ चालाकियाँ भर आईं हैं
समझना 'राजेश' कि तुमने
शिक्षा अधूरी पाई है

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
03.12.2019


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