Friday, December 13, 2019

ये अंकल, नंगे हो जायेंगे ...

ये अंकल, नंगे हो जायेंगे ! ... 

पाँच साल की रूपा, पुलिस के तलाश करने पर शहर से तीन किमी दूर वीरान जगह पर नाले के किनारे की झाड़ियों में बेसुध, लहूलुहान अवस्था में मिली थी। अस्पताल में भर्ती, उसे दर्द न हो इस हेतु अन्य उपचार के साथ नींद में रखने की दवायें दीं थीं। रूपा की माँ तुलसी, जो स्कूल में गणित की प्राध्यापक थीं। बेटी की इस हालत से अपने भाग्य को कोस रहीं थीं बेटा आठ साल का था। पति तीन साल पहले दुर्घटना में मारे गए थे। दो दिनों से लगातार रुआँसी थी। भगवान को कोस रही थी - मेरे साथ ही इतने अन्याय क्यों किये हैं तुमने? रूपा के पूरे शरीर पर जहाँ जहाँ जख्म नहीं थे, सुबकती हुई वह, जब तब दुलार से हाथ फेरने लगती थी।
तीसरे दिन रूपा की हालत सुधरी थी। तब उसे सेडेटिव नहीं दिए गए थे। उपचार के लिए, डॉक्टर, वार्ड बॉय आते या कुशलक्षेम जानने एवं  संवेदना जताने के लिए पड़ोसी सुधीर जी, और अन्य लोग, साथ उनके बेटे यदि आते या रूपा के बयान दर्ज करने पुलिस कांस्टेबिल आते तो रूपा का मासूम मुखड़े में भय दिखाई देने लगता, वह रोने लगती और माँ के तरफ मुहँ कर कहती -
मम्मी इन्हें बाहर करो - "ये अंकल, नंगे हो जायेंगे! या ये भैया नंगे हो जाएंगे! "बार बार ये हुआ तो बाल मनोविज्ञान को समझा गया। उपचार के लिए लेडी डॉक्टर, नर्स तैनात किये गए। विज़िटर्स में नारी सदस्य को अनुमति दी गई। रूपा के बयान लेडी पुलिस कांस्टेबिल ने दर्ज किये।
रात जब रूपा सो चुकी तो तुलसी दिन भर की बातों का स्मरण कर दिमाग में गणितीय सवाल लगा रहीं थीं -
डॉक्टर के वीभत्सता से किसी युवती के समक्ष नंगे होने की प्रोबेबिलिटी कितनी है?ऐसा ही करने की प्रोबेबिलिटी - 
  • वार्ड बॉय की कितनी है?
  • पड़ोसी, पुरुष की कितनी है?
  • पड़ोसन के कॉलेज पढ़ने वाले बेटों की, किसी अबोध बेटी के साथ ऐसा करने की प्रोबेबिलिटी कितनी है?
  • पुलिस की कितनी है?
  • ठेले लेकर घूमने फिरने वालों की कितनी है? 
  • यात्रा में साथ चलते अपरिचित पुरुषों की कितनी है?
  • देश के किस भूभाग में यह कितनी है? ... और ...
  • हृदय विदीर्ण कर देने वाला ये दुष्कृत्य जो मेरी अबोध बेटी के साथ किया गया, इस की करुणा और संवेदना को वर्णित करने वाले लेखक की ऐसे वीभत्स रूप से नग्न हो जाने की प्रोबेबिलिटी कितनी होगी? 
ऐसे तमाम मर्दों को वर्गीकृत करते हुए वह विचार करती रही।
फिर सोचने लगी 135 करोड़ की जनसँख्या में कितने मर्यादित हैं, कितने अनुशासित हैं, कितने शिक्षित/संस्कारित हैं, कितनो को अपनी प्रतिष्ठा दुराचार करने से रोक लेती है।
ऐसा सब गणित लगाते /सोचते हुए, कुर्सी पर बैठे बैठे उसकी नींद लग गई थी। निद्रा आगोश में उसका सिर, अबोध पीड़िता बेटी के सिर के पास उसके बिस्तर पर टिक गया था ....

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
14.12.2019

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