Tuesday, December 10, 2019

सीन रिक्रिएशन - फिर उदित हुआ एक काला सूरज ...

सीन रिक्रिएशन - फिर उदित हुआ एक काला सूरज ...

गुलाबी रंग का सलवार सूट पहनी उस लड़की को मैंने स्कूटी खड़ी कर कैब में जाते देखा था। उसके आकर्षक अंगो और सुंदर मुखड़े ने मुझे आवेशित कर दिया था। तुरंत ही मेरा मस्तिष्क उसे भोगने की युक्ति करने में सक्रिय हो गया था। तय था कि स्कूटी लेने वह वापिस आएगी। मैंने आसपास लोगों की नज़रें बचा उस स्कूटी के पहिये की हवा निकाल दी थी। सजी-धजी सुंदर और धनवान लड़कियों को भोगने को इक्छुक मेरे कुछ और साथी थे, जिनसे शीघ्रता से चर्चा कर मैंने एक घृणित योजना तय की थी।
आशा अनुरूप वह शाम को स्कूटी लेने पहुँची है। स्कूटी में हवा नहीं देख वह परेशान सी दिख रही है। तब गऊ की सिधाई अपने मुखड़े पर ओढ़ मैंने उसके समक्ष मददगार होना दिखलाया है। उसके पास विकल्प नहीं होने से, उसने मेरे झाँसे में आ हवा भरवाने के लिए मेरी मदद स्वीकार की है। अब मैं स्कूटी धकेलने लगा  हूं वह मेरे साथ चलने लगी  है।
लगभग पचास कदम पर अब मेरा दूसरा साथी भी आ गया है मुझसे उसका बात करता देख लड़की और ज्यादा परेशान दिख रही है। उसने कदम कुछ धीमे किए हैं लगता है वह अब मोबाइल पर किसी से बात कर रही है।
यह हमारे लिए शुभ संकेत नहीं है। हम अब ट्रक तक शीघ्र पहुंचना चाहते हैं। हमने कदम तेज किए हैं। भयभीत सी वह लाचारीवश हमारे पीछे साथ चल रही है। लगभग 300 मीटर पर अब हम अपने ट्रक तक पहुंच गए हैं। हमें ट्रक के साइड में पहुंचता देख, हमारे दो और साथी ट्रक के दोनों गेट से उतरे हैं। अब मैंने स्कूटी सड़क के किनारे झाड़ियों तरफ धकेल दी है। मेरे बाकी के तीन साथियों ने लड़की से मोबाइल छुड़ा लिया है। उसके मुंह पर हाथ रख हम सबने उसे उठाकर ट्रक धकेल कर बैठा दिया है। हम सभी अब ट्रक में बैठे हैं। मैं अब ट्रक चला रहा हूं। हम पूर्व निर्धारित स्थान जो कि यहां से लगभग 25 किलोमीटर दूर है, पहुंचना चाहते हैं। लड़की प्रतिरोध कर रही है चिल्लाने की कोशिश में है। यह समझ उसके ही दुपट्टे से हमने उसका मुहँ बाँध दिया है। वह मदद के लिए व्याकुल दिख रही है। हम पर काम वासना आवेश सवार है। हम चारों के घर में किसी की बहन है, किसी की बेटी है किसी की पत्नी है। किसी की यदि नहीं भी है तो माँ तो सभी की है। कामान्धता से दुष्प्रेरित हमारे हृदय में उनके साथ कोई ऐसा करे तो कैसा होगा, न तो यह विचार आ रहा है, ना ही इस लड़की को भोगने के अतिरिक्त कुछ दिखाई दे रहा है।
मेरे अतिरिक्त मेरे 3 साथियों ने उसके हाथ पाँव दबा रखे हैं। मैंने ट्रक की गति बढ़ाई है। अब लगभग 20 मिनट में मैंने पुल तक का रास्ता तय कर लिया है। यहाँ सुनसान और सिर्फ रात का अंधेरा है। हम आसानी से लड़की को उठाकर नीचे पिलर के किनारे आ गए हैं। जहाँ हमने लड़की के ही कपड़ों से उसके हाथ-पाँव बांध दिए हैं। मुंह पर से कपड़ा हटा उसकी नाक बंद कर हम जबरन अपने साथ लाइ हुई शराब के घूँट घूँट उसके गले में उतार रहे हैं ताकि नशे के प्रभाव में उसका प्रतिरोध कम हो जाये और वह हमें सहयोग करने लगे।
लेकिन अपेक्षित असर नहीं हो रहा है। वह लगातार रो रही है, हमें भैय्या भईया बोल छोड़ देने को गिड़गिड़ा रही है। हमें उसका भैया कहना बिलकुल भी नहीं भा रहा है। आजकल कौन है भला जो किसी पराई सुंदर युवती से भैय्या/चाचा आदि संबोधन पसंद करता है! उसने रो रो कर अपना सुंदर मुखड़े का आकर्षण खत्म कर लिया है। लेकिन हमारे भीतर समाये अमानुष के लिए मुखड़े का आकर्षण या उसकी कोई याचना के महत्व नहीं रह गया है। हमने उसके मुहँ में कपड़ा ठूस दिया है, ताकि उसके रोने चिल्लाने की उसकी आवाज सुन, कोई आकर हमारा प्लान चौपट ना कर दे।
अगले छह घंटे तक हम सभी ने अपनी मनमानी की है। इसके बाद वह लड़की अचेतन जमीन पर पड़ी है। शराब का नशा हमारा काफूर हो चुका है। हम बहुत थक चुके हैं। सामान्य रातों में इतने थकने के बाद हमें गहरी नींद आ जाती है। लेकिन आज हमने जो किया है उससे डर कर हमारी नींद उड़ गई है। घृणित काम करके हमें अपनी हुई भीषण गलती का अहसास हो गया है। हम समझ चुके हैं हमारे कृत्य उजागर होते ही हमारे परिवार का, सारे पुरुषों का और हमारे राष्ट्र का सिर बाकि विश्व, मानवता और संपूर्ण नारी जाति के समक्ष लज्जा से झुक जाने वाला है।
यह करने के बाद होना यह चाहिए था कि हम सब पेट्रोल स्नान कर खुद को अग्नि के समक्ष कर दें। लेकिन जो हम इतने मनुष्य होते तो यह करते ही नहीं। हमें अपने हैवान को आवरण देकर फिर मनुष्य दिखना है। हममें नैतिक साहस भी नहीं कि हम इस घृणित कार्य की सजा के लिए जलने की पीड़ा भोगें और अपनी इहलीला अपनी कम उम्र में ही खत्म कर लें।
हमने इन सबका एकमात्र उपाय जानकर बेसुध पड़ी लड़की को पेट्रोल स्नान कराया है और उस पर तीली डाल उसे आग के हवाले कर दिया है। जलने की पीड़ा से बेसुध इस लड़की में ना जाने कहाँ से शक्ति आ गई है वह उठ खड़ी हुई है बचने के उपाय में इधर उधर दौड़ लगा रही है। हम उसकी वेदना के साक्षी होकर स्वयं को धिक्कार तो रहे हैं। किंतु तब भी हमारा जो जीवन जीने योग्य नहीं बचा है, उसे जीने का लालच नहीं छोड़ पा रहे हैं।
लो अब वह लड़की धराशाई हो गई है। हमें इत्मीनान हो गया कि वह मर गई है।
अब हम चारों को अपने बचाव के लिए खुद को सामान्य दिखाई देना है। हम पर अँगुली उठाते अन्य सबूतों को नष्ट करना है। इसकी मंत्रणा करके हमने निर्णय ले लिए हैं और उस पर काम करने के लिए हम घटना स्थल से पलायन कर रहे हैं।
अब प्रातः की पौ फटने को है। देश की धरती पर आज फिर एक काला सूरज उदित होने को व्यग्र है ...

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
11.12.2019


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