Tuesday, December 3, 2019

आदर्श और राजेश .... (सन 2144 की कहानी)

आदर्श और राजेश .... (सन 2144 की कहानी)


दो मित्रों की यह कहानी
समय कहता आज अपनी जुबानी 


पिछली सदी में सुनो मित्रों
आदर्श और राजेश मित्र हुआ करते थे
आदर्श के गुणगान हमेशा
राजेश को उसकी नकल प्रेरित करते थे


राजेश की भरपूर कोशिशें भी मगर
आदर्श जैसा उसे न बना पाती थी
राजेश इसलिए उदास हो जाता
उसकी उदासी आदर्श से न छिप पाती थी 


मित्र को प्रसन्न रखने के लिए
आदर्श उसे समझाता था
राजेश कभी समझ खुश होता
कभी मगर व्याकुल ही रह जाता था 


व्याकुल राजेश से एक दिन
आदर्श गंभीर हो बोले
क्यों रहते तुम यूँ उदास
जब तुम इतने सच्चे और भोले 


मेरी नकल जो करते हो
कम ही ऐसा और करते हैं
मुझमें जो गुण निहित हैं
महापुरुषों के मिले अच्छाई अंश हैं 


मेरा अणु अणु अच्छाई से निर्मित
मनुष्य में ऐसा नहीं संभव है
जहाँ हो तुम यथार्थ राजेश
पूर्ण स्वरूप मेरा कल्पना है


मनुष्य हो तुम राजेश,

अपने में व्यर्थ सारी मुझसी अच्छाई परखते

मेरी संगत से आई अच्छाइयों को
ऐसे तुम क्यूँ अनदेखा करते 


देखो आज मैं मरणासन्न पड़ा हूँ
मगर नहीं तुम मेरा साथ छोड़ते
करते लोग नमस्कार उदय होते सूरज को
मगर तुम मुझ अस्ताचल चले को थामते 

इस जग में अब वह समय आएगा
कल्पना में भी आदर्श न रह जाएगा
मैं तो आज ही मर रहा राजेश 
जब मरोगे

तुम ही कल्पना रह जाओगे

तुम्हारी अच्छाई की महिमा
तुम्हें आज मैं बता जाता हूँ
समय आ गया मित्र मेरे
यह आदर्श अब मर जाएगा 


आदर्श जब नहीं रहेगा
रह गई बाकी जो
उन थोड़ी अच्छाइयों के

विश्व गुणगान करेगा  


अच्छाइयों का स्मरण आने पर
मेरे मित्र राजेश तुम्हें याद करेगा 


--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
04.12.2019

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