Saturday, November 30, 2019

लड़की है, लड़कियों से कभी, गलती हो जाती है!

लड़की है, लड़कियों से कभी, गलती हो जाती है!


बलात्कार रोज हो रहे हैं दिन में ही कई कई हो रहे हैं लेकिन देश के मीडिया एवं सोशल साइट्स पर कोई कोई प्रकरण ही चर्चा का केंद्र बनता है। जनमानस को जो झकझोरता/आंदोलित करता है।
ऐसा ही हाल ही का प्रकरण #प्रियंका रेड्डी का है जिसने हर घर में, अपनी अपनी बहन/बेटी, पत्नी आदि की अस्मिता रक्षा को लेकर हर किसी को चिंतित किया है। चिंतातुर हममें से हर कोई ऐसे में अपनी अपनी समझ से अपने अपने सुझाव रख रहा है ताकि सभ्यता के इस दौर में ऐसी  पैशाचिक घटनायें, वर्तमान या भविष्य न रहकर इतिहास के काले अध्याय में सिमट जायें।
व्यक्तिगत रूप से ऐसी नृशंस घटनायें जब सुनने/पढ़ने या देखने में आती हैं तो मुझे निस्तब्ध करती हैं। कभी यह भी लगता है कि रोकथाम के सभी उपाय लोगों ने कह/लिख दिए हैं, विरोध भी पुरजोर हो चुका है। शासन/प्रशासन और न्यायालय भी संज्ञान लेकर समुचित कार्यवाही करने में जुट गया है। ऐसे में मेरा कुछ लिखना बनता नहीं है। मगर चूँकि हिंदी लेखक के रूप में सोशल साइट्स पर मेरी सक्रियता रहती आई है। मेरा एक छोटा सा पाठक समूह, इसे लेकर मेरे मन में क्या आया है, इसे जानने को कदाचित उत्सुक होगा। इसे अनुभव कर अपनी अवाक स्थिति से पार पाते हुए मैं लिख रहा हूँ, जो इस समाज के प्रति मेरे उत्तरदायित्व में होना भी मैं सम्मिलित मानता हूँ।
विषय पर लौटते हुए ऐसे क्रूर और घिनौने दुष्कृत्यों के कारण की खोज में निकलता हूँ तो देखता हूँ - मुझे "देश का सारा पुरुष वर्ग" (प्रकट है मेरे सहित) कोई कम या कोई ज्यादा, मुझे दोषी दिखाई देता है। इसे पढ़ने वाले मेरे पुरुष मित्र अगर मुझसे असहमत हो जायें तो मेरा सविनय आग्रह है कि वे सिर्फ निम्न प्रश्नों को लेकर स्वयं आत्मवलोकन करें - 
  • 1. क्या हमने अभिभावक होने की पात्रता के बाद संतान पैदा कीं हैं?
  • 2. संतान जन्मने के विचार से पहले यह विचार किया है कि हमारी कितनी संतान का होना यह देश सहन कर पायेगा?
  • 3. एक पुरुष होकर हमने छोटी या बड़ी छेड़छाड़ किसी लड़की/युवती से क्या कभी नहीं की है?
  • 4. क्या हम बहाने-बहाने से *शराब और देर रात्रि पार्टी के अंग नहीं होते हैं?
  • 5. क्या हम *पॉर्न वीडियो को देखना सामान्य रूप में स्वीकार नहीं कर चुके हैं? ( उपर्युक्त *4. एवं *5. "का व्यापार" मिलने वाले ग्राहक से फला-फूला है. दुर्भाग्य इसने भी रेप बढ़ाये हैं)
  • 6. बेटियों और बेटे को लेकर क्या हमारे विचार/सँस्कार में विचित्र भिन्नता नहीं है?
(प्रश्न और भी हैं मगर मुझे लगता है, इतने ही पर्याप्त हैं जो हममें से लगभग हर पुरुष को स्वतः ही कठघरे में कमोबेश दोषी मान लेने को मजबूर कर देंगे)
बेटे को लेकर कोई कह देता है "लड़के हैं लड़कों से गलती हो जाती है", क्या हमने बेटी को लेकर कभी सुना या स्वीकार किया, "लड़की है लड़कियों से कभी गलती हो जाती है"? लड़की का कुछ क्षम्य नहीं, वह ऑनर किलिंग की शिकार हो जायेगी या दुश्चरित्र कही जायेगी। अगर यही मानदंड हमारे बेटों को लेकर होते और वे भी ऑनर किलिंग के शिकार होते या दुश्चरित्र ठहराए जाते तो बलात्कार का कोई अध्याय इस समाज में लिखा ही नहीं जाता।अगर ऐसा होता तो बलात्कार को लेकर हमारा विरोध मात्र दिखावा सा नहीं लगता और जो यह सिर्फ दिखावा नहीं होता तो बलात्कार की रोकथाम हो जाती। और किसी प्रियंका के जीवन का अंत इस तरह दर्दनाक एवं अकालिक नहीं होता। क्षमा सहित, सभी को अपराधी ठहराने के दुस्साहस के लिए।
और
बेटी प्रियंका रेड्डी, क्षमा आपसे, हम वह देश, वह समाज नहीं हो पाए जिसमें आप अपना अनमोल जीवन पूरा तथा गरिमा से जी लेतीं।  

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
01.12.2019
     

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