Monday, December 9, 2019

मेरी क्षमा याचना ...

मेरी क्षमा याचना ... 

पहला कारण:  अपनी अभिव्यक्ति प्रतिभा का परिचय देने के लिए मैंने अप्रिय होते भी पिछले दिन, अपनी कल्पना शीलता से उस एक बेटी की आपबीती लिखी जो गैर जिम्मेदार कापुरुष में हावी हो जाने वाली चरम वासना का शिकार हुई। फिर जिन्होंने अपने में छुपे डरपोक कापुरुष से दुष्प्रेरित होकर, अपने घिनौने अपराध का दंड भुगतने की कल्पना में, नैतिक साहस नहीं होने के कारण उसे मार डाला। मेरी क्षमा याचना भयावह रूप से अकाल मारी गई उस मृतक बेटी से (तथा उनके परिवार जनों से).
दूसरा कारण : विवेक बोध आ जाने के बाद, इस समाज और इस राष्ट्र में चालीस से अधिक वर्ष जीवन यापन करते हुए भी, मैं आदर्श और प्रेरणा रख सकने में असफल रहा। हमारे बाद आई पीढ़ी को, अगर मैं आदर्श और प्रेरणा के सच्चे उदाहरण दे सकने में समर्थ होता तो निश्चित ही आज कोई कापुरुष न होता। हमारे समाज में  हर कोई, किसी बेटी के साथ ऐसी भयावही, वीभत्स, घिनौनी और नृशंसता करने से हतोत्साहित होता। मेरी क्षमा याचना हमारी नई पीढ़ी से कि मैं अपने दायित्वों का सही निर्वहन न कर सका।
तीसरा कारण : नित दुराचार की शिकार उपरांत मारी जाती बहन बेटियों के प्रति संवेदना अनुभव होने से, मेरी लेखनी से, ऐसी आपबीती की रचना हुई जिसे "अनुपम  हिन्दी साहित्य" समूह के एडमिन्स द्वारा जबकि यह समूह के विव्दजनों के ह्रदय को क्षोभ एवं करुणा से उव्देलित कर रही थी, मानवीय संवेदना के आधार पर उपयुक्त नहीं मानते हुए इसे विलोपित कर दिया गया। अनजाने में वह कोण मेरी निगाह में नहीं आ सका, अतः  सभी एडमिन से क्षमा याचना।
चौथा कारण : सभी पाठकों से भी, जिन जिन को मेरा सृजन, पढ़े जाने योग्य नहीं लगा, उनसे भी मेरी करबध्द क्षमा याचना।
अंत में मेरा संक्षिप्त स्पष्टीकरण- आपबीती की रचना के पीछे मेरा उद्देश्य नारी गरिमा को क्षति पहुँचाने का कतई नहीं था। लिपिबध्द करते हुए पूरी सतर्कता से अश्लीलता को पुष्ट करने वाले शब्दों से भी मैं बचा था। मेरा एकमात्र उद्देश्य हर पुरुष के हृदय तक "नवयुवा उस बेटी के मनोभाव पहुँचाने के थे जो अपने परिवार और अपने सपनों के लिए आगे पड़ा जीवन जीने की जिज्ञासु होते हुए भी जघन्यता का शिकार हो अपमानित भी होती है और अकाल मार दी जाती है"। इसे रचते हुए मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि एक बार इसे पढ़ लेने वाला कोई व्यक्ति अपने जीवन में कभी ऐसा निंदनीय/घृणित काम नहीं करेगा। 

मैं अपने सामाजिक दायित्व बोध को देर से सही लेकिन अब पहचान पा रहा हूँ। इसलिए मैंने अपनी हर रचना प्रकाशित करते हुए अपने नाम के साथ अपनी माँ एवं (स्मृतिशेष) पापा का नाम लिखना आरंभ किया है। दोनों ही ये नाम आज मेरा धर्म है।  जो मुझसे कहते हैं - "हम तुम्हारे जन्म के निमित्त अवश्य हुए मगर अपना जीवन तुम्हें जग कल्याण में योगदान करते हुए स्वयं सार्थक करना है " ..  

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
10.12.2019

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