Thursday, December 19, 2019

आशंकायें ...

कभी पढ़ा था - मनुष्य की 70% आशंकायें उन बातों की होती हैं जो उसके जीवन में होती ही नहीं हैं, लेकिन उनसे भयग्रस्त रह कर वह अपना वर्तमान का आनंद नहीं उठा पाता है।
लिखना-पढ़ना अप्रिय है कि अकेले हमने वर्तमान का आनंद ही नहीं खोया है अपितु, हमने इन काल्पनिक आशंकाओं के निबटने के उपाय करने में नई आशंकाओं को जन्म दे दिया है।
हमने आशंकाओं से निबटने के लिए अपनी जनसँख्या अपने क्षेत्रफल के अनुपात में बहुत अधिक बढ़ा ली है। अब हमें आशंका है कि इतनी बड़ी भीड़ में हमारे बच्चों की उनके जीवन के लिए मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति हो सकेगी या नहीं। वे साधन उन्हें मिल सकेंगे भी या नहीं जो किसी के जीवन में खुशियों के कारण होते हैं। आदि ..
---
सब्सेडाइज्ड (subsidised) रेट पर उपलब्ध सामग्री का उपयोग करते हुए, सब्सेडाइज्ड शुल्क पर शिक्षा पाते हुए एवं स्कॉलरशिप प्राप्त कर पढ़ते हुए,
हमें अपने समाज और राष्ट्र का ऋणी होना चाहिए, जिसके (अदा किये) राजस्व से हमें हमारे जीवन/भविष्य को उज्जवल करने के अवसर मिलते हैं।
दुर्भाग्य एहसानफरामोश हम, उसी समाज, उसी राष्ट्र का खुशहाल परिवेश नष्ट करने का अपराध करते हैं।   
--
देश सत्तासुख लालची नेताओं के विचारों से नहीं बनेगा, हमारे विवेक-विचार से बनेगा। आवश्यकता विवेक जागृत कर, कर्म किये जाने की है

No comments:

Post a Comment