Wednesday, December 4, 2019

बेटी नहीं, अब बेटे के जन्म देने के पहले सोचना होगा ...

बेटी नहीं, अब बेटे के जन्म देने के पहले सोचना होगा ... 

इस दौर का नारी जीवन सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण है। खुले दरवाजे के बाहर आधुनिक सँस्कृति में उसके लिए खुल गए अनेक अवसर हैं मगर हमारे समाज में नारी के प्रति पुरातन संकीर्ण दृष्टिकोण की व्यापकता में दिमाग के बंद दरवाजे उसके अवसर के लिए बढ़ते पाँवों में बेड़ियाँ डाल दे रहे हैं।
इन परस्थितियों में मानसिक व्दंद में जीतीं अनेक नारी, जब तब बलात्कार और चतुराई से रचे पुरुष फरेब में उनकी हवस का शिकार होकर, जीवन से हाथ धो रही है या जीवित भी है तो मानसिक रूप से अधमरी जीवन जीने को विवश है।
ऐसे में धन्य वे माँ-बाप जो न सिर्फ कन्या (बेटी) के अभिभावक होने का साहस रखते हैं अपितु पुत्र नहीं फिर भी देश के प्रति दायित्व बोध प्रदर्शित करते हुए, छोटे और उन्नतिशील परिवार का उदाहरण बनते हैं।
हर पुरुष किसी परिवार में बेटा और/या भाई है। हमारे समाज में वह जिस तरह नारी से छल, दुराचार और उनकी हत्या तक कर दे रहा है, उसे विचरते हुए  लेखक को लगता है वह समय आ गया है कि -


"बेटी नहीं, अब बेटे के जन्म देने के पहले सोचना होगा 

अपनी मनुष्य काया में मानवता को शरण देना होगा"


यूँ तो देश में हर तरफ कन्या भ्रूण, जन्मी बेटियाँ बहाने बहाने और दहेज बलि शिकार मारी जा रही हैं लेकिन हरियाणा की बात करें तो यहाँ जनसँख्या अनुपात चिंताजनक हो गया है। 1000 पुरुषों के बीच नारी सँख्या 831 रह गई है। 

"कि ऐसे नहीं चल सकेगी यह सृष्टि 

बदलनी होगी नारी प्रति अपनी दृष्टि

पुत्र जन्म के पहले हमें बारम्बार सोचना होगा 

गर जन्मा उसे नारी रक्षा सँस्कार में देना होगा"



नित हिंसा और दुराचार यूँ तो हमारे हृदय को हिला देते हैं।  हम बार बार करुणा और क्षोभ के सागर में गोता लगाते हैं। तब भी ऐसे सुविधाजनक विचार से कि "अपनी बुध्दिमत्ता से हम सीधे इसकी चपेट में नहीं आये हैं".  हमें ऐसी आत्ममुग्धता का त्याग करना चाहिए। यह विचार गंभीरता से करना चाहिए कि जब संपूर्ण राष्ट्र दुराचार/अत्याचार छल और हिंसा के साये में है तो इस राष्ट्र के नागरिक हम कैसे स्वयं को इसके दायरे से बाहर समझने की भूल कर रहे हैं।
एक बार फिर हमारे अंतर्मन में संकल्प आना चाहिए और अपनी सुविधा लालसा तज जीर्णशीर्ण हुई समाज संरचना को अपने दृढ इक्छाशक्ति के साथ पुनः बुलंदी पर स्थापित करने में योगदान देना चाहिए।


"पुनः अपनी भव्य सँस्कृति स्मरण करनी होगी 

रघुकुल रीत स्थापित करने कुरीतें तजनी होगी

फिर सीता रक्षार्थ दृढ हिम्मत संजोनी होगी

बुरे नर का वध कर हमें लंका जीतनी होगी"


--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
05.12.2019
  

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