Wednesday, November 6, 2019

सही, क्या है? ...

सही, क्या है? ... 

ब्राह्मण परिवार में जन्मी अनुराधा के घर में सदस्य, माँ गुणमाला और एक छोटा भाई थे। पापा का तीन वर्ष पूर्व निधन हो गया था। उनके रहते तक अनुराधा को क्या सही क्या गलत है, का स्पष्ट मार्गदर्शन उनसे मिल जाता था। ऐसे ही को-एड में पढ़ने का उसे, कॉलेज में जब पहला मौका आया, कॉलेज में प्रवेश दिलाते समय पापा ने कहा था, अनु तुम्हें यहाँ की शिक्षा के माध्यम से अपना अच्छा भविष्य सुनिश्चित करना है।  यहाँ लड़कों से प्यार व्यार के चक्कर में नहीं पड़ना है। तुम्हारी योग्यता हो जाने बाद अच्छे लड़के बहुत मिलेंगे। यह याद रखना कि दुनिया में सिर्फ उतने लड़के नहीं जितने कॉलेज में तुम्हें दिखेंगे। अनुराधा ने, पापा के इन निर्देशों का भली प्रकार पालन किया था। परिणाम स्वरूप वह अब एक वर्ष से एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत थी। 
अनुराधा को आज समस्या सही एवं गलत में पहचान करने में आ रही थी। बात ऐसी थी कि अनुराधा की कंपनी में उससे वरिष्ठ दो लड़के थे। उसे, जिनसे प्यार कहने से ज्यादा उसका दोस्ताना कहना उचित होगा।  इनके नाम आसिफ और अक्षय थे। आसिफ और अक्षय आपस में खास परिचित नहीं थे। पिछले एक महीने में दो अलग अलग मौकों पर अनुराधा से दोनों ने विवाह का प्रस्ताव किया था। बुध्दिमान अनुराधा रूपवान तो थी ही गुणी भी थी। अतः ऐसे प्रस्ताव उसके लिए प्रत्याशित ही थे। अनुराधा इन दिनों इनमें से किसका प्रस्ताव सहमत करे, इस उलझन में थी। कौन उसके लिए सही होगा उसे पशोपेश था। उसे, किसी दृष्‍टिकोण से निहारते जो बात सही लग रही थी अन्य दृष्‍टिकोण से वही गलत प्रतीत हो रही थी। यक्ष प्रश्न यह उपस्थित हो रहा था, कि सही क्या है! 
दोनों की यदि तुलना की जाए तो, आसिफ की कदकाठी और नयन नक्श अक्षय से बीसे थे। और अगर उनकी योग्यता को देखें तो दोनों के  उन्नति के अवसर समान थे। दोनों के गुण व्यवहार भी उसे समान मधुर लगते थे। दीपावली छुट्टी में उसे घर जाना था। अतः अनुराधा ने माँ के समक्ष यह बात रखने की दृष्टि से, दोनों से दो अलग दिनों में बारी बारी से डिनर पर चर्चा की थी। डिनर में इस संबंध में बातों के अंश ऐसे थे। 
(आसिफ और अनुराधा के बीच वार्तालाप) -
अनुराधा : आसिफ, आप लोगों में कुर्बानी पर उत्सवपूर्वक एक मूक पशु की जान ली जाती है, जबकि प्राण याचना के लिए उनके मिमियाने पर हम लोगों में करुणा उत्पन्न होती है। 
आसिफ : जैसे आपकी कुछ धार्मिक मान्यतायें हैं, वैसी कुछ हमारी हैं। यह दृश्य बार बार हम लोगों के सामने होता है इसलिए असहज हमें कुछ नहीं लगता। 
अनुराधा : दूसरी बात, आप लोगों में औरतों को बुर्के में रखना पसंद किया जाता है?
आसिफ : अनुराधा, कुछ वर्ष पूर्व तक आपमें भी बड़े बड़े घूँघट होते थे।    
अनुराधा : आपमें कट्टरता के बारे में क्या विचार है? मुझे लगता है प्रगतिशील बातें भी जिद से ग्रहण नहीं की जाती हैं। 
आसिफ : हममें अच्छाई ही होगी ना! तब तो इस्लाम के मानने वाले दुनिया में दूसरी बड़ी सँख्या में हैं।  
(डिनर के बाद इन बातों पर अनुराधा ने मंथन किया था। आसिफ के नज़रिये से देखें तो उसके तर्क सही थे।) 
(1 अन्य दिन में अक्षय के साथ डिनर में, उनके मध्य हुईं बातों के अंश यूँ थे)  
अनुराधा : आप अति संपन्न परिवार से हैं, ऐसे में आपको कई अच्छी लड़कियों के प्रस्ताव होंगे आपकी रूचि मुझमें ही क्यों है?
अक्षय : मेरा किसी को अच्छा मानना धन की अपेक्षा गुणों से है, आपमें मुझे गुणवती संगिनी होना दिखाई पड़ता है। 
अनुराधा : आप माहेश्वरी, मैं ब्राह्मण आपके घर में पसंद होगा ऐसा रिश्ता?
अक्षय : यह प्रश्न तो मुझे करना चाहिए, वर्ण आधार पर श्रेष्ठ आपके परिवार में क्या हमारे विवाह को स्वीकृति मिलेगी?
अनुराधा : (इस पर अवगत कराते हुए) मेरे पापा नहीं हैं, और ब्राह्मण में ही रिश्तों में दहेज की अपेक्षा होगी, जिससे मुझे घबराहट होती है। 
इन बातों के साथ उस रात डिनर हुई थी।
फिर अनुराधा दीपावली में अवकाश लेकर अपने घर आई थी। उत्सव मना चुकने के बाद एक दिन घर की बैठक में अनुराधा ने माँ गुणमाला से आसिफ और अक्षय के प्रस्तावों के बारे में बताया था। आसिफ के व्यक्तित्व को लेकर उसके तरफ, अपना ज्यादा आकर्षित होना भी उन्हें बताया था। और दोनों से डिनर पर हुईं चर्चा भी ज्यूँ के त्यूँ सुनाई थी। अनुराधा ने माँ से इन प्रस्तावों पर निर्णय करने को कहा था।  
तब गुणमाला ने उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा था : अनु, हमारे कोई भी रिश्ते अच्छे या बुरे किसी दूसरे पर ही निर्भर नहीं होते, अपितु इस बात पर निर्भर करते हैं कि हममें कितनी क्षमता है कि हम अपनी प्रेरणा से किसी की कितनी बुराई दूर कर, अच्छाई पर चलने को प्रेरित करते हैं। यह तुम्हें पहचानना है कि तुम कितनी ऐसी चुनौतियाँ लेने में समर्थ हो। अनेक बार किसी को गलत लगते हमारे निर्णय भी अपनी बुध्दिमत्ता से रहते हुए हम उनके सामने सही साबित करते हैं। 
माँ को ऐसा कहते सुन अनुराधा को प्रतीत हुआ -  'जैसे माँ के श्रीमुख से पापा कह रहे हैं'। माँ ने स्पष्ट नहीं कहते हुए उसे हिंट बस दी थी। अनुराधा ने विचार किया था- आसिफ से शादी करने पर, आसिफ के परिवार और नाते रिश्तेदारों में अपनी जगह बनाने के लिए अनुराधा के समक्ष उनमें प्रगतिशीलता अपनाने को प्रेरित करना बड़ी चुनौती होगी। 
अवकाश बाद अनुराधा लौटी थी। एक दिन लंच में अनुराधा ने आसिफ को, उसके प्रस्ताव को अस्वीकार करने की सूचना दी थी। आसिफ ने नाराजी दिखाते हुए कहा था - मुझे इसका पूर्वाभास था कि तुम अपनी कौम जनित संकीर्णता से उबर न सकोगी। तब अपने स्वर को संयत रखते हुए आसिफ से कहा था, आसिफ, मुझसे ऐसा कहने के स्थान पर आप स्वयं विचार करना कि आपमें, अपनी बहन, बेटियों के अन्य कौमों में शादी के प्रश्न को लेकर कितनी उदारता है!
स्पष्ट था कि आसिफ समझ गया था, दुनिया में क्या हो रहा है, अनुराधा उससे अनजान नहीं। 
फिर लगभग तीन महीने बाद सादे समारोह में दोनों पक्षों के बहुत करीबी नाते रिश्तेदारों के आर्शीवाद की छत्रछाया में अनुराधा-अक्षय का विवाह हुआ था। अब आगे, माँ गुणमाला की सीख स्मरण रखते हुए आगामी जीवन में अनुराधा के लिए, अक्षय से विवाह के निर्णय को सबके समक्ष सही सिध्द करने की चुनौती थी।   

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
06.11.2019
 

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