Friday, November 8, 2019

अलविदा ..

अलविदा .. 

मोनिका सिंह, ग्रामीण परिवेश के कृषक परिवार में बड़ी बेटी थी। उसके पापा एवं माँ - कम पढ़े लिखे सीधे सरल लोग थे। उनका परिवार ग्राम में कुछ ही धन-धान्य संपन्न परिवारों में से एक था। 
स्कूल में पढ़ते हुए अन्य लड़के-लड़कियों की देखा देखी उसने भी 17 वर्ष की उम्र में ही सन 2011 में फेसबुक आईडी बना ली थी। लड़कियों के फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट की भरमार होती है, वैसे ही मोनिका के साथ भी हुआ था। ऐसी ही रिक्वेस्ट उसे  उसे एक दिन दिवाकर गर्ग के नाम के एक व्यक्ति से भी आई थी। मोनिका ने ना जाने किस भावना से प्रेरित उसे एक्सेप्ट कर लिया था। फिर कुछ ही दिनों में दिवाकर की ओर से उसकी पोस्ट में कमेंट आने लगे थे। दिवाकर के कभी कभी मैसेंजर पर शुभ-कामनाओं के संदेश भी उसे मिलते थे। 
जिज्ञासावश एक दिन मोनिका ने दिवाकर की आईडी खंगाली थी। उपलब्ध विवरण दिवाकर को अवकाश प्राप्त उच्च सरकारी अधिकारी बताते थे। उनके घर-परिवार के पिक्चर्स सभी के प्रभावशाली व्यक्तित्व के साक्षी थे। 
थोड़े कुछ दिनों में मोनिका का दिवाकर पर विश्वास बढ़ा था।  ऐसे में उसने अपने निजी व्दंद, उलझनें और समस्यायें दिवाकर से मैसेंजर पर शेयर करनी आरंभ कर दीं थीं। 
दिवाकर ने इनके प्रत्युत्तर देता और ऐसी शेयरिंग हेतु मोनिका को प्रोत्साहित किया करता था। दिवाकर के प्रभाव में आकर मोनिका ने अपने पारिवारिक और परिवेश का पूरा विवरण उन्हें स्पष्ट कर दिया था। दिवाकर उसकी हर उत्सुकता और उलझनों का उचित समाधान और मार्गदर्शन करते थे। यह सब मोनिका अपने एकांत में किया करती थी। मगर कभी कभी उसके मैसेंजर संदेश पर दिवाकर के प्रत्युत्तर कुछ समय अंतराल से मिलते थे। ऐसे में कभी कभी वह समय होता, जब वह परिवार में या अपनी फ्रेंड्स के बीच स्कूल में होती थी। यूँ तो यह कोई छिपाने वाला कोई अवैध काम नहीं था मगर उसके परिवेश में ऐसी बातों के बतंगड़ भी हो जाते थे, इसलिए मोनिका सतर्कता से इसे छुपे तौर पर करती थी।  
यूँ  ही दिन बीतते गए थे। 
इस बीच मोनिका, दिवाकर में अपने पापा की छवि देखने लगी थी। ना जाने कब यह परिवर्तन हुआ कि मोनिका, उन्हें दिवाकर जी से संबोधित करने  स्थान पर सादर उन्हें सर और कभी अंकल का संबोधन करने लगी थी। 
मोनिका को दिवाकर से पढ़ाई से लेकर, उम्र जनित लड़के-लड़कियों वाले आकर्षण एवं चक्कर, फिर हॉस्टल में और कॉलेज कैंपस में स्टूडेंट्स में फैली बुराई तक सब पर और हर तरह की उलझनों पर उचित निदान एवं मार्गदर्शन मिलने लगे थे। दिवाकर से संदेशों के आदान प्रदान से मोनिका के अवसाद जल्द दूर हो जाते थे। उनसे उसे सच्चाई पर चलने का मनोबल मिलता था। 
कदाचित यही कारण रहा कि मोनिका अपने ग्राम की अन्य लड़कियों की अपेक्षा ज्यादा शैक्षणिक योग्यता करने में सफल रही। अब से एक साल पहले, उसने चार्टर्ड अकाउंटेंट की पढ़ाई में सफलता प्राप्त कर ली। और अब एक सीनियर सी ए के कार्यालय में जॉब करने लगी थी। दिवाकर से मैसेज के क्रम अब भी अनवरत जारी थे, मगर विशेषता यह थी कि मोनिका ने इसे सबसे गोपनीय ही रखा हुआ था। 
उसे स्मरण था कि, किसी समय 
फेसबुक पर अपरिचितों पर विश्वास करने के प्रश्न पर दिवाकर ने, मोनिका को यह लिखा था कि अति विश्वास तो मोनिका का स्वयं दिवाकर पर भी नहीं करना चाहिए। 
मगर दिवाकर पर मोनिका का यकीन निरंतर बढ़ता गया था। तथा इन तमाम वर्षों में, किसी भी मौके पर मोनिका को दिवाकर पर शंका करने का कोई कारण नहीं मिला था। 
चार महीने हुए मोनिका के पापा ने अपने जाति में एक प्रतिष्ठित परिवार में एक सी ए लड़के जगजीत सिंह से मोनिका का विवाह करवा दिया। मोनिका ने इस सब की जानकारी भी दिवाकर को दी थी।  
दिवाकर से अपने संदेशों के सिलसिले को मोनिका ने जगजीत को भी अवगत नहीं कराया था। ऐसे में कभी कभी ऐसा अवसर होता कि जगजीत होते और दिवाकर के मैसेज मिलते, ऐसे में वह असहज हो जाती थी। ऐसे कुछ मौके पर उसकी असहजता को जगजीत ने नोटिस कर लिया था।
दिवाकर के ऐसे संदेश प्राप्ति के समय एक दिन जगजीत ने असहज हुई मोनिका की मुखाकृति को देखते हुए पूछ लिया, मोनिका क्या है? जरा बताओ अपना मोबाइल! 
तब, अब तक राज रहा दिवाकर से संदेशों का सिलसिला मोनिका को अपने हस्बैंड से कहना पड़ा था। इस पर जगजीत ने न पूछा एवं न ही ज्यादा कुछ जाना था तथा आसाराम, राम रहीम तथा नारायण दत्त तरह के रंगीन तबियत के लोगों का हवाला देते हुए, मोनिका से दिवाकर को ब्लॉक करवा दिया। 
आठ वर्ष के किसी परिचित से ज्यादा हितैषी, इस अपरिचित व्यक्ति से अनाम रिश्ते का यूँ अंत, मोनिका के लिए वेदनादायी था। किंतु मोनिका को दिवाकर जी से ही हर परिस्थिति में खुश एवं संतुष्ट रहने की प्रेरणा मिली हुई थी। अतः जगजीत के सामने उसकी ये वेदना उजागर नहीं हुई.थी। आज मोनिका मायके आई हुई थी, किसी समय उसने दिवाकर से उनका मोबाइल न. लिया हुआ था जो एक पुरानी डायरी में उसे लिखा हुआ मिला था। मोनिका ने उस नं. पर कॉल किया था, दिवाकर जी ने इसे रेस्पॉन्ड किया था.
मोनिका ने बताया था, सर, मैं मोनिका बोल रही हूँ, यह सुन दिवाकर जी प्रसन्नता दर्शाई थी। तब, मोनिका ने सारी बातें बताई थीं। दिवाकर जी ने अपने को ब्लॉक किये जाने को उचित बताया था. उसे यह भी विश्वास दिलाया था कि उसमें यह योग्यता आ चुकी है कि खुद के विवेक पर चलते हुए अपनी खुशहाली, वह स्वयं तय कर सकती है। 
अंत में उन्होंने कहा था -
"मोनिका सद्प्रेरणा और अनुभव उस सरित प्रवाह सदृश्य है, जो सतत बहता है। मनुष्य जितना उपयोगी हो उसमें से ग्रहण करता है, जो शेष रह जाता है बहता हुआ वह सागर में जा मिलता है।"
ऐसे ही प्रवाह की परंपरा तुम जारी रखना मेरा शुभाशीष एवं हार्दिक शुभकामनायें, अलविदा ....  

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
08.11.2019

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