रूढ़ियाँ - जेनेरशन गेप ...
रूढ़ियाँ, युवावस्था में चुभती हैं. रूढ़ियाँ, प्रौढ़ावस्था में प्रिय हो जाती हैं. युवा ह्रदय, रूढ़ियों को तोड़ने को व्यग्र होता है. मगर युवावस्था में जो कोई जिन रूढ़ियों को तोड़ नहीं पाता है, प्रौढ़ावस्था/वृध्दावस्था में उन्हें ही निभाने की बाध्यता अपनी संतान पर लादने के प्रयत्न करता है. जेनेरशन गेप यही कहलाता है. जो प्रौढ़/वृध्द कभी कभी अपने युवा समय के मन का स्मरण करता रहता है वह अपने बच्चों द्वारा त्याग दी जा रही रूढ़ियों के लिए, उनका स्वागत करता है. ऐसे परिवर्तन की स्वीकारोक्ति ही, 'मानव सभ्यता के विकास' में नए मुकाम सुनिश्चित करती है।
इतनी बात के बाद अब यह उल्लेख उचित होगा कि - वृध्द/प्रौढ़ और युवाओं को सतर्कता पूर्वक देखना यह होता है कि तोड़ी जा रही चीज रूढ़ियाँ ही हों, स्वस्थ परंपरायें या अनुकरणीय मर्यादायें नहीं हों.
उदाहरण - 'शाकाहार' एवं 'मदिरा/धूम्रपान निषेध', स्वस्थ परंपरा है. इन्हें रूढ़ि मान तोड़ना अनुचित है. माँसाहार एवं मदिरा/धूम्रपान सेवन कई बार मर्यादा तोड़ने का कारण बनता है.
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन04.11.2019
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