Monday, November 18, 2019

लिफाफा ..

लिफाफा ..

स्कूटी पंक्चर देखी थी, ऑफिस के लिए लेट हो जाएगी बनवाने के चक्कर में, इसलिए घर से मीनाक्षी, ऑटो से जाने के इरादे से पैदल निकल गई थी। चौराहे पर ऑटो देख रही थी तभी एक बलेनो उसके ठीक बाजू में आ रुकी थी। ड्राइवर ने साथ वाली सीट का गेट खोलते हुए कहा था - चलिए मै छोड़ देता हूँ ऑफिस। यह 28-30 साल का युवा, राघवन था, जो एक सप्लायर के प्रतिनिधि बतौर ऑफिस में आता था। ऑफिस को देरी न हो जाए इस दबाव में अनचाहे ही मीनाक्षी कार में बैठ गई थी। राघवन के हँस हँस के मृदुलता से बात करने से समय का पता नहीं चला था, और ऑफिस आ गया था। रास्ते में राघवन द्वारा पूछने पर, मीनाक्षी टाल न सकी थी और अपना मोबाइल नं. उसे दे दिया था।
मीनाक्षी एक सरकारी ऑफिस में चीफ इंजीनियर के स्टेनो के रूप कार्यरत थी, अभी उम्र 26 थी। उसके कार्यालय से सड़कों और ब्रिज के करोड़ों के कॉन्ट्रैक्ट जारी होते थे। उस दिन के बाद राघवन के व्हाट्सएप्प संदेश उसे आने लगे थे। फिर यूँ ही कॉल भी आने लगे। वह बात मधुरता से करता जिससे मीनाक्षी को लगने लगा था कि, हो न हो वह उसे चाहने लगा है।
कोई महीने भर बाद एक दिन मोबाइल पर राघवन ने कार्यालयीन ऐसी जानकारी पूछी जो गोपनीय थी, लेकिन मालूम नहीं कैसे मीनाक्षी ने उसे बता दी थी। उसके 15 दिनों बाद उसे अकेला देख राघवन उसके कक्ष में आया था और उसने एक लिफाफा उसे थमाया था। जब तक कुछ समझ पाती, राघवन हँसते हुए आकर्षक एक मुस्कुराहट दे जा चुका था। लिफाफे पर मीनाक्षी लिखा हुआ था। चोरी जैसा छिपाते हुए, जिसे मीनाक्षी ने अपने बेग के हवाले कर दिया था, क्या है उसमें उसे देखने का साहस उस समय वह नहीं कर पाई थी। 
फिर रात घर में उसने लिफाफा खोल के देखा था। उसमें 1000 रु थे। तब पहली बार अपनी तरफ से राघवन को उसने कॉल किया था, बात हुई थी -
मीनाक्षी: यह क्यों?
राघवन : (हँसते हुए)  मीनाक्षी जी हमारी कं. मदद का शुल्क अदा करती है, हमें किये फेवर के लिए हैं यह।
मीनाक्षी: (हड़बड़ाते हुए) अच्छा!
तभी मीनाक्षी ने, पापा को सामने आया देख इतना कह सकी थी, फिर कॉल खत्म कर दिया था। रात बिस्तर पर अकेले में उसकी आँखे नम थी। प्यार का भ्रम था, जो टूट गया था। उससे रिश्वत लेने का पाप भी हो गया था।
अगला दिन आज रविवार है। अवसाद से भरी मीनाक्षी ने मानसिक सहारे के लिए अपने 'आदर्श प्रेमी' एवं शिक्षक, पापा से दोपहर में राघवन को लेकर कल तक की सारी बातें बताई है। जिस पर पापा को क्रोध आता है किंतु दो तरह से छली गई बेटी के इस समय के मनोविज्ञान को समझते हुए स्वयं पर नियंत्रण करते हैं, समझाते हुए कहते हैं -
"मीनू, हमारा देश, भ्रष्टाचार के जबड़े में फँसा हुआ है, रिश्वत ने हमारे सेवाकर्मियों और राजनेताओं को अपने मोहजाल में अजीब तरह से फँसा रखा है, रिश्वत लेते हुए इन्हें बेहद ख़ुशी होती है लेकिन देते हुए बहुत बुरी लगती है। मैंने अपने जीवन में अनुभव किया है कि मनुष्य में 'नारी' की तुलना में 'पुरुष', बुरा संस्करण है। ऐसे में जब युवतियाँ नौकरी और राजनीति में ज्यादा आने लगीं थीं तो मुझे आशा थी कि इनके हाथों से भ्रष्टाचार के अभिशाप से हमारे देश को कुछ राहत मिलने लगेगी। तुम्हारा लालन पालन मेरे परिवार में हुआ है, इससे मुझे आशा है कि तुम मेरी तरह धन लालच के दुष्प्रभाव में अन्य जैसी बुरी नहीं बनोगी ,अपितु तुम पर यदि प्रभाव किसी बात का पड़ेगा तो निश्चित ही वह अच्छाई ही होगी। इसका प्रमाण यह है कि जब तुम्हें राघवन ने प्रेम का भ्रम देकर अपने स्वार्थ  तथा मंतव्य पूरा किया है तो उसमें तुम्हें ग्लानि हुई है और मुझसे इस संबंध में मार्गदर्शन चाहती हो। "थोड़ा चुप होकर पापा फिर विचारते हुए कहते हैं
"संभवतः राघवन धन के दुष्प्रभाव और प्रेम के भ्रम में रख आगे तुम्हें और कर्तव्यच्युत करे और दैहिक शोषण का प्रयास भी करे।  बिना ज्यादा क्षति के अभी ही भूल सुधारने का उचित समय है। तुम ज़माने की नकल में खुद के अस्तित्व को विलीन नहीं होने दो। तुम स्वच्छता से कार्य में भी इतना अर्जित कर सकोगी कि जीवन यापन हो जाएगा। तुम अपना वह अस्तित्व बनाये रखो जिससे नारी पुरुष से श्रेष्ठ मनुष्य होती है। "इस तरह समझा कर पापा ने मीनाक्षी का ग्लानि बोध मिटा दिया था।
अगले दिन मीनाक्षी ने ऑफिस में कॉल कर राघवन को बुलाया था उसका लिफाफा उसे वापिस किया था। ऐसा फिर करने को दृढ़ता से मना किया था। और बाद में उसके नं. को ब्लॉक कर दिया था .... 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
18.11.2019

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