Friday, November 1, 2019

प्यार तो मैं तुम्हें ही करता हूँ, ना!

प्यार तो मैं तुम्हें ही करता हूँ, ना! 

आज व्यथित आफरीन अतीत के कुछ साल याद कर रही थी। बेपनाह खूबसूरती थी आफरीन में यही कारण था कि शाहरुख़, जो उच्च न्यायालय में वकालत करते थे, अपने परिवार सहित खुद उससे निकाह का प्रस्ताव लेकर आये थे। उनकी रईसी से प्रभावित, आफरीन के अब्बा ने उसकी 20 की उम्र में ही निकाह को मंजूर कर लिया था। लड़कपन की उम्र अभी गई ही नहीं थी कि 28 साला शाहरुख़, आफरीन के आज़ाद मन पर हावी हो गए थे। आफरीन की खूबसूरती पर लट्टू वह, उसे यूँ तो प्यार शिद्दत से करते थे मगर उनका, अपने पर मालिकाना सा व्यवहार आफरीन को अखरता था। जब वह पढ़ने कॉलेज आई थी सोशल साइट पर आफरीन ने आईडी बनाई थीं। तारीफ़ पसंद आफरीन ने जिन पर, अपनी खूबसूरती झलकाती अल्हड़ तस्वीरें पोस्ट कर रखीं थीं, उन्हें शाहरुख़ ने डीएक्टिवेट करवा दिया था। सोशल साइट की नई आईडी के साथ उसे प्रयोग की अनुमति तो थी, मगर अपनी खूबसूरती लिए, अब वह अपने परिचितों के बीच नहीं आ सकती थी। खुद खूबसूरत और जहीन होते हुए अपनी डीपी में तस्वीरें उसे अपने से कम खूबसूरत टीवी एक्ट्रेस जेनिफर विंगेट की डालनी होतीं थीं। आरंभ में यह पज़ेसिवनेस आफ़रीन को उतनी नहीं अखरी थीं। शाहरुख़ के घर में अमीरी के कारण सुख सुविधा कपड़े खानपान सब उसे मायके से बेहतर मिले थे. शाहरुख़ अक्सर कीमती तोहफे भी लाया करते थे. शाहरुख़ से, रात बिस्तर पर भी उसे कल्पनातीत सुख मिलता था। इन सबके बीच तीन वर्षों में ही एक बेटा और एक बेटी को आफरीन ने जन्म दिया था। दोनों बार उसके गर्भावस्था में डॉक्टर ने एहतियात रखने की सलाह दी थी। तब संबंधों के कम रखने के कारण शाहरुख़, बिस्तर पर अधलेटा, लेपटॉप लिए नेट सर्फिंग करता और 55 इंच के टीवी पर देखा करता था, जिसमें उसकी रूचि, आधुनिक पहनावों में सजी-सँवरी सुंदर लड़कियों के वीडियो और तस्वीरों के दर्शन में केंद्रित होती थी।  आफ़रीन को यह अजीब लगता था. आफरीन जो स्वयं बला की खूबसूरत थी, उसके लिए तो शाहरुख़ ऐसे पहनावे मंजूर नहीं करते थे मगर इन आधुनिक पहनावों में सजी लड़कियों को सम्मोहित और मुग्धता से  फॉलो करते थे। गर्भावस्था और बच्चों के थोड़े बड़ा होने तक तो आफ़रीन इसे नज़रअंदाज करती रही थी। लेकिन आफ़रीन ने, छोटी बेटी के पहले जन्मदिन पर पहनने के लिए शाहरुख़ से आधुनिक परिधानों को दिलाने की फरमाइश की थी। शाहरुख़, इन परिधानों में सजी लड़कियों को  नेट पर सम्मोहित हो देखा करते और आफरीन के रूप को अनदेखा करते थे। इस पर आफ़रीन की भावनाओं का ख्याल किये बिना ही शाहरुख़ ने सपाट शब्दों में यह कहते हुए कि 'हमारे यहाँ इन पहनावों की इजाजत नहीं' ऐसे वस्त्रों के लिए इंकार कर दिया।  आफरीन को इससे बेहद मानसिक पीड़ा हुई थी। बाद में मॉल/एयरपोर्ट आदि में उसकी मानसिक वेदना यह देख और बढ़ने लगी थी, जहाँ साथ आफरीन तो बुर्के में होती मगर शाहरुख़ का ध्यान (एवं नज़र), आफरीन और बच्चों से अलग वहाँ होतीं मॉडर्न और आकर्षक युवतियों में होता। यह सब सोचते हुए आफरीन ने, शाहरुख़ से सीधे बात करने की ठानी थी। रात जब बच्चे सो चुके तो आफरीन ने शाहरुख़ से बात आरंभ की थी-
आफरीन : जी, आप मुझे वे वस्त्र क्यूँ नहीं दिलाते, जिन्हें पहने, आपको और लड़कियाँ अच्छी लगतीं हैं।
शाहरुख़ : हमारे में इन वस्त्रों की इजाजत नहीं।
आफरीन : मुझे, आपका ऐसी दूसरी लड़कियों में खो जाना अच्छा नहीं लगता। अगर मैं इन्हें पहनूँ तो आप मुझ में खोयेंगे यह मुझे अच्छा लगेगा।
शाहरुख़ (कुछ रुष्ट से) : मैं, देखता बस हूँ प्यार तो मैं तुम्हें ही करता हूँ, ना!
आफरीन (तर्क की मुद्रा में) : अगर ऐसे ही मैं, गैर मर्दों को देखूँ और प्यार तुम्हें ही करूं तो?
शाहरुख़ (झल्लाते हुए) : आफरीन, औरतों को ऐसी इजाजत हमारी सँस्कृति नहीं देती। (फिर बड़बड़ाता हुआ करवट दूसरी तरफ करता है), सारा मूड ही ख़राब कर दिया इसने। 
आशा विपरित संक्षिप्त में और कडुआहट में बात खत्म हुई थी. आफरीन, शाहरुख़ के इस व्यवहार से मानसिक रूप से बेहद आहत और क्षुब्ध हुई थी। शाहरुख़ ने खुद ही चाहा था और आफरीन को निकाह कर लाया था। क्या इसलिए कि उसकी भावनाओं की उपेक्षा करे? और उसे घर बिठाये रखे यह कहते हुए कि औरत को इस बात की या उस बात की इजाजत नहीं !
तीन दिन बाद अम्मी से मिलने पर एकांत में उसने रोते हुए इस सबकी शिकायत की थी। मगर उनने उम्मीद के विपरीत शाहरुख़ के रुख का समर्थन करते हुए, आफ़रीन को ही पाबंदियों में रहना सीखने की ताकीद की थी। आफ़रीन को बेहद निराशा हुई थी। उसे अब आशा सिर्फ आपा से बची थी कि वह उसका साथ दे और शाहरुख को पाबंदियों को कम करने तथा आफ़रीन से प्यार से पेश आने को समझाये। इस वाकिये के लगभग दस दिनों बाद आपा आईं थीं। अकेले में आफ़रीन ने उन्हें हमराज किया था, सब कुछ विस्तार से बताया था। उसे दुखद आश्चर्य तब हुआ जब अंत में आपा कहने लगी - आखिर तुझे तकलीफ क्या है?, तुझे सारे सुख सुविधा मुहैय्या हैं. शाहरुख़ प्यार भी तुझे करता ही है। तुझे समझना होगा दो बच्चों के बाद वैसा प्यार तो होगा नहीं जो नई नवेली दुल्हन से होता है। तू अपने बच्चों में मन लगा उनकी सही परवरिश कर। जहाँ गम है नहीं उसमें तू बेकार गमगीन क्यूँ रहती है भला ? औरतों पर पाबंदी निर्धारित करने वाला शाहरुख़ नहीं है । सब पहले से चली आ रही रीत-रिवाज हैं। हमारी सँस्कृति है, जिसके कारण हम-तुम पर पाबंदियाँ हैं। तू भूल जा सब कुछ, तुझे औरों से ज्यादा अनुकूलतायें हैं उन्हें समझ और ख़ुशी से रहना सीख।   
आपा समझा कर चली गईं थीं. कहीं से साथ नहीं मिलने का आफ़रीन को बहुत अफ़सोस हुआ। उसके मन में विद्रोही विचार आने लगे, उसका मन तर्क करने लगा - 
'सामने सीने और जाँघों के बीच की थोड़ी संरचना के भिन्न हो जाने मात्र से पुरुष आजाद और औरत पर अनेकों पाबंदियाँ! पक्षपातपूर्ण ये भेदभाव क्यों? नारी जीवन को यूँ अभिशापित सा रखना, कौनसी सभ्यता? कहाँ की मानवता? मर्द, मनमर्जी को स्वतंत्र और औरत/लड़कियाँ गुलामी को विवश !'
सब सोचते हुए उसके दिमाग में दिवा दुःस्वप्न सा एक दृश्य कौंधा जिसमें 15-17 वर्ष बाद, आफरीन ख़ुद अपनी बेटी से यह कहती दिखाई पड़ रही है - 'दिया' (नाम), लड़कियों/ औरतों को इजाज़त नहीं अपनी मनमर्जी अनुसार ज़िंदगी जीने की .. 

(नोट - लेखक का अनुरोध, यह किसी कौम विशेष की कहानी नहीं, अपितु नारी-पुरुष की व्यापक कथा है, अपनी सुविधा अनुसार इसे, शाहरुख़ को चेतन, आफरीन को सुरीना, निकाह को विवाह, बुर्के को ओढ़नी,अब्बा को पापा, अम्मी को मम्मी, आपा को दीदी आदि शब्दों में बदल पढ़ा जा सकता है)  
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
02.11.2019

   





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