Friday, November 15, 2019

सुकून तो खुद में रहा, मैं ढूँढता रहा उसे दरख्तों में
दरख्त देते आबोहबा, इंसानियत की बयार बहाने को

कहने के पहले उचित-अनुचित सोचना बहुत पड़ता है
कुछ नहीं कह कर मैं, अनुचित कहने से बच जाता हूँ 

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