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Sunday, October 13, 2019
अनुमोदना बुध्दि
अनुमोदना बुध्दि ..
"सौ बार आदमी, आदमी हुआ, ध्यान किसी ने न दिया
एक बार वह आदमी न रहा, ध्यान सबने उस पर दिया"
जो सादगी और सच्चाई पर रहता था, उसे गँवार कहने लगे। तब आदमी ने छल- कपट, भ्रष्टाचार से खुद को धनवान बना लिया. धन किस नैतिक/अनैतिक व्यवसाय/माध्यम से आया हमने उसे गौड़ कर दिया। महत्व किसी के धनवान हो जाने को दिया। सबका ध्यान
और सम्मान
धनवान को
मिलने लगा। आदमी ने निष्कर्ष निकाल लिया, आदमी रहने की जरूरत नहीं, अपनी उपस्थिति बताना है तो उसे आदमी न रहना होगा।
धिक्कार हमारी अनुमोदना बुध्दि को. आज ज्यादा चर्चित, सिने दुनिया के व्यभिचारी हैं। और एक समाज दायित्व को निभाने वाला गुमनाम है.
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
14-10-2019
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