Saturday, October 12, 2019

आत्महत्या (भाग -4) ..

आत्महत्या (भाग -4) ..

अगली सुबह साढ़े ग्यारह बजे शैलेष, प्रदीप जी के सामने बैठा था। कहने की शुरूआत प्रदीप जी ने की- शैलेष ऐसा होता है किसी किसी किशोर/नवयुवा के साथ जब उसका मर मर के देखा हुआ कोई सपना टूटता है. तब उसे प्रतीत होता है कि जीने के लिए कोई उद्देश्य ही नहीं बचा। लेकिन यह भ्रम होता है। हम ढूँढना चाहें तो जीवन में करने के लिए अनेक उद्देश्य हमेशा उपलब्ध मिलेंगे। एक टूटे सपने के बाद, अनेकों सपने मिल सकते हैं। जिनमें रंग भर कर हम अपना जीवन साकार कर सकते हैं। (फिर कुर्सी पर तनिक पहलू बदलते हुए)- मैं, आगे कुछ कहने के पहले आपसे जानना चाहूँगा कि कल रात यहाँ से जाने के बाद आप कुछ सोचते रहे या नहीं?
प्रत्युत्तर में शैलेष ने स्पष्टवादिता से बिस्तर पर लेटे उसे जो विचार आये थे ज्यूँ के त्यूँ  (भाग-3 में उल्लेखित-) प्रदीप जी को सुना दिए (इसी सब की प्रदीप जी को प्रत्याशा भी थी)। फिर उनसे प्रश्न किया सर, आप प्रतिदिन ई-रिक्शा का किराया मुझे 500 रु. देते थे शाम को मैं बदले में दिन भर में प्राप्त कभी 100 कभी 200 रु  आप को देता रहा। आप परामर्श भी देते हैं और इतनी हानि क्यों उठाते हैं?
प्रदीप जी ने इस पर उसे बताया कुछ एनजीओ हैं, जो मेरी माँग पर मुझे सहायता राशि उपलब्ध कराते हैं। एक ऐसी संस्था देश की प्रतिभा को कुंठा से बाहर निकालने पर खर्च करती है। जिनका लक्ष्य हर प्रतिभाशाली व्यक्ति को ऐसा सामर्थ्यवान होते देखना होता है जिसके कार्य इस समाज/देश की समृध्दि तथा खुशहाली प्रदान करते हैं. आपके लिए मेरी चाही धनराशि वहॉँ से प्राप्त हो रही थी। आप में मेधा का निहित होना और आपका शुक्रिया से मिलने के संयोग ने काम आसान कर दिया है। कहते हुए वे हँसे और उन्होंने शैलेष की तरफ देखा, शैलेष भी शर्माते हुए हँस दिया। 
प्रदीप जी बताने लगे- यह उम्र विपरीत लिंग की तरफ आसानी से आकर्षित होने की होती है। "कभी अवसाद में जाने और कभी अवसाद से निकलने में यह कारण बनता है"। मुझे विश्वास था कि अब तक आप पढ़ने में तल्लीन रहे इसलिए आप पर उम्र असर नहीं कर रही थी। लेकिन अवसाद से निकालने में मेरे द्वारा आपको सड़कों पर ई-रिक्शा ले भटकाया जाना कहीं तो तुम्हें किसी लड़की से मिलवाएगा जिससे आप में जीने की भावना और नए उद्देश्य पुनः संचारित होंगे। कुछ अवसादग्रस्त बच्चों का अवसाद मैंने ऐसे मिटाया है। आप लेकिन उनसे ज्यादा प्रतिभावान हैं। जो हर बात में से सार तत्व ग्रहण कर रहे हैं। आप को अब मेरी जरूरत नहीं। आपको मेरी और एनजीओ की ओर से शुभकामनायें- आप फिर लगन से पढाई करें, डॉक्टर बनें तथा डॉक्टर के रूप में आपके कार्य रोगियों के उपचार तथा अन्य डॉक्टर की प्रेरणा के कारण बनें। 
एक पल की चुप्पी के बाद- आप जब चाहें मुझसे संपर्क कर सकते हैं, कहते हुए प्रदीप जी खड़े हुए. उन्हें ऐसा करते देख शैलेष भी खड़ा हो गया तब प्रदीप जी ने स्नेह से उसे गले लगाया, शैलेष ने अनुग्रही भाव से उनके चरण छुये फिर शैलेष वहाँ से विदा हुआ .
अगले दिन से अपनी असफलता भूल शैलेष एम्स एंट्रेंस, ब्रेक करने की पढ़ाई में फिर जुट गया और यह शैलेष का दृढ़ निश्चय था जिसके समक्ष कठिन स्पर्धा, सरल सिध्द हुई और सफलता सूची में इस वर्ष शैलेष आठवें क्रम पर आया। 
इस बीच शैलेष और शुक्रिया का कोई संपर्क नहीं रहा लेकिन परिणाम घोषित होने के बाद शैलेष, शुक्रिया से मिलने ई-रिक्शा (शौकिया) से पहुँचा उसे मालूम हुआ कि शुक्रिया ने पेपर अब्बा की बीमारी के समय दिया था, तैयारी पूरी नहीं कर पाने से वह सफल नहीं हो सकी। शैलेष ने सहानुभूति दर्शाई। 
फिर चूँकि शुक्रिया ने उसे साधारण मगर दयालु रिक्शा वाला समझा हुआ था इसलिए अपने अवसाद और प्रदीपजी के परामर्श सहित पूर्ण ब्यौरा कह सुनाया साथ ही एम्स की प्रवेश सूची में अपना नाम आठवें स्थान पर होने संबंधी समाचार अखबार में दिखलाया. अपनी सफलता के पीछे उससे मिली प्रेरणा बताते हुए उसे शुक्रिया कहा। 
शुक्रिया और उसकी अम्मी-अब्बा और छोटी बहनें हैरत से सब सुनते रहीं. शुक्रिया इतनी मजेदार और ख़ुशी भरी खबर से अपना दुःख भूल गई। शैलेष ने अपने साथ लाई हुई मिठाई से शुक्रिया के घर में सभी का मुहँ मीठा कराया। उसके अब्बा-अम्मी के चरण स्पर्श कर सब से विदा हुआ और प्रदीप जी के ऑफिस के तरफ निकल पड़ा। 
समाप्त
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
13-10-2019
  

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