Friday, October 25, 2019

बेबसी की दीपावली

बेबसी की दीपावली ..

अकोला जाने के लिए सुरभि, पुणे स्टेशन पर देर से पहुँची थी. वह भाग दौड़ कर सेकंड एसी के कोच में किसी तरह चढ़ ही पाई थी कि ट्रेन चल पड़ी थी. पहले उसने अपनी बर्थ पर सामान व्यवस्थित किया था और बैठ कर अपनी श्वाँस नियंत्रित कर रही थी। तब उसे ध्यान हो आया कि अपने कोच तक पहुँचने की जल्दी में उसने एस-2 कोच में सवार होते जिसे देखा था शायद वह सुशील ही था। उसका विचार आते ही उसे 10-12 वर्ष पूर्व का समय याद आ गया।
सुशील के मेधावी होने से वह, उससे इम्प्रेस रहती थी। पढ़ाई में सहयोग लेने के विचार से एक बार वह बात करने के लिए जब उससे मिली थी तो सुशील ने बदनीयत से उसे छुआ था। सुरभि ने उसकी हरकत का प्रतिकार किया था और बिना आगे बात किये वह लौट आई थी। सुरभि ने तत्पश्चात उससे किसी अपरिचित जैसी दूरी बना ली थी और इस घटना का जिक्र किसी से भी नहीं किया था। बाद में सुशील के कुछ लड़कियों से संबंध के विषय में और ऐसे उसका चरित्र ठीक नहीं होने के किस्से, कॉलेज में चर्चा के विषय रहे थे। इस सबके बावजूद जब कैंपस  का वक़्त आया था तब सुरभि का प्लेसमेंट उसकी ड्रीम कंपनी में नहीं हो सका था, लेकिन आशा अनुरूप सुशील इनफ़ोसिस प्लेसमेंट में सफल हुआ था।
ऐसे में इनफ़ोसिस जैसी कंपनी में काम करने वाला सुशील, स्लीपर क्लास में क्यूँ ट्रेवल करेगा भला! उसे प्रतीत हुआ कि यह भ्रम ही होगा। उस व्यक्ति का गेटअप भी कुछ साधारण सा ही था अतः उसे यह अपना भ्रम ही लगा.
तब भी सुरभि जिज्ञासा नहीं रोक सकी थी और सहयात्री, ऑन्टी को अगले स्टेशन पर लौट आने का बताते हुए वह दौण्ड जँक्शन में उतर कर एस-2 कोच में चढ़ी थी। ढूँढ़ते हुए उसे सीट न. 33 पर वह व्यक्ति बैठा दिखा था। सुरभि उसके पास जा खड़ी हुई थी और उसे निहारने लगी थी, उस व्यक्ति ने उसे यूँ देखते महसूस किया तो उस पर गौर किया फिर अचरज से कह उठा, सुरभि? तब सुरभि का संदेह सच साबित हुआ। आजू-बाजू भीड़ होने से वह और सुशील दोनों साथ कोच के दरवाजे के पास खाली जगह पर आ गए थे। । कुछ बातें उनमें हँसी-ख़ुशी की हुई थी। तब उसके यूँ अव्यवस्थित से दिखने पर सुरभि ने प्रश्न किया था. प्रत्युत्तर में गमगीन हो सुशील ने जो बताया था वह यों था -
'बी टेक पूर्ण करने के उपरांत उस साल उसने इंफोसिस ज्वाइन किया था। अगले चार वर्षों में उसे दो प्रमोशन भी मिले थे। तब उसकी, अपनी जूनियर कुलीग रेखा से लव मैरिज हुई थी। हम बमुश्किल छह महीने साथ रहे थे कि उसके अन्य लोगों से संबंधों की जानकारी होने पर मैं अलग रहने लगा था। और रेखा को डिवोर्स का नोटिस दिया था। जिसके जबाब में रेखा ने मुझ पर और मेरे पेरेंट्स पर दहेज और गृह हिंसा संबंधी झूठे आरोप गढ़े थे। जिसके कारण मुझे लगभग साल भर जेल में भी रहना पड़ा। मैं, नौकरी से भी निकाल दिया गया और केस में हुए खर्चे और सेट्लमेंट के लिए पचास लाख रूपये देने से मेरी जोड़ी गई पूरी धन राशि भी खत्म हो गई। अब फिर रेप्युटेटेड तो नहीं मगर एक कंपनी में फिर जॉब मिला है, जिससे गुजर चल रही है। दीवाली है और माँ की तबियत कुछ ठीक नहीं इसलिए तीन दिनों के लिए अकोला जा रहा हूँ।
सुरभि ने उससे इस सब पर सहानुभूति जताई थी। सुशील को अपना कार्ड देते हुए यह भी कहा था कि किसी प्रकार की सहायता की जरूरत हो तो मुझे याद करना. तब तक अहमदनगर आ गया था। सुरभि ने विदा ली थी और अपनी बर्थ पर लौटी थी। फिर खाना खाया था और लेट गई थी. उस समय उसके मन में सवाल था -
"सुशील खुद जिस चरित्र का था वैसे चरित्र को लेकर उसका अपनी पत्नी रेखा पर प्रश्न खड़ा करना क्या तर्क संगत था"?
उसे साथ ही यह भी विचार आया कि - "उन दिनों अपने टैलेंट और स्मार्टनेस के सम्मोहन में लेकर कॉलेज की लड़कियों के साथ अय्याशी करते हुए सुशील को अपनी ज़िंदगी का हर दिन दिवाली प्रतीत होता रहा होगा, तब उसने ऐसी कल्पना भी न की होगी कि कभी वह ज़िंदगी में ऐसी बेबसी की दीपावली भी देखेगा"।
यह कदाचित समय प्रदत्त न्याय था, सोचते हुए सुरभि निद्रा के आगोश में चली गई थी।  

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
25.10.2019


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